भारत का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर में राजनीतिक सरगर्मियां जोरशोर पर है । राज्य की विधानसभा में जिस तरह से पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती ने हंगामा मचाया है वह नैतिकता के बिल्कुल विपरीत है । साथ ही पार्टी प्रमुख होने के नाते कम से कम उन्हें तरह के उदाहरण नहीं देने चाहिए । विधानसभा में अगर शोपियां मामले पर अध्यक्ष नें बहस को लेकर उनकी मांग ठुकरा दी तो क्या उन्हें अध्यक्ष की कुर्सी तक जाकर माइक उखाड़ने की कोई जरूरत नहीं । इसके विपरीत २००६ के सेक्स स्कैण्डल में वर्तमान मुख्यमंत्री उमर अब्बदुल्ला को निशाना बनाना । परन्तु यहां पर इक बात तब और साफ हो गयी जब सी बी आई ने मुख्यमंत्री को क्लीन चिट दे दी । और विपक्षी पार्टी को मुंह की खानी पड़ी ।
राजनीति में नैतिकता का तो सवाल ही नहीं बनता है चाहे किसी भी हद तक राज्य सरकार या केन्द्र सरकार को गिरना पड़े । लेकिन जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने जिस तरह से सदन में अपनी बात कही वह काबिले तारीफ है । उन्होंने सीधे तौर पर अपना आक्रोश व्यक्त करते हुए अपना इस्तीफा राज्यपाल को दिया । सी बी आई की रिपोर्ट को देखते हुए राज्यपाल ने इस्तीफा ना मंजूर कर दिया । वैसे भी जब तक न्यायालय किसी को आरोपी साबित नहीं करता तब तक किसी को अपराधी नहीं माना जा सकता ।
जम्मू कश्मीर की राजनीतिक हलचल का सबसे ज्यादा फायदा अलगाववादी उठा सकते हैं । इसलिए कम से कम इन नेताओं को सदन या फिर कहीं भी कुछ ऐसा नहीं कहना या करना चाहिए जिससे इस तरह की ताकतें लाभ उठा सकें । और देश तथा राज्य की संप्रभुता को खतरा पहुंचें ।
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