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Wednesday, April 15, 2009

ब्लागर साथी - अब कितनी गालियां और खानी पड़ेगी और मेरी औकात भी बता ही दो ? काहे की कसर बाकी है

आज मुझे गोरखपुर एक मित्र की शादी में शरीक होने के लिए निकलना था । इसलिए सुबह पोस्ट कर ब्लाग से गायब हो गया । किसी को न पढ़ सका एक या दो पोस्ट को छोड़कर । अभी कुछ समय था जाने में तो सोचा कि ब्लाग की यात्रा की जाय । आज की पोस्ट " गरीबी का ही तो दुख है .....................मीडिया चर्चा " सुबह ही कर दी थी । कुल सात लोगों की प्रतिक्रिया आयी । सबसे आखिर में किसी मिथिलेश नाम के व्यक्ति ने मेरे इस पोस्ट पर गाली भरा संदेश देते हुए मेरी औकात बता रहे हैं । आखिर मेरी क्या औकात है यह मेरे लिए कभी विषय न रहा ।

ब्लागजगत में जिस तरह से ये गाली गलौज हो रही है वह बेहद चिंता का विषय है । मुझे कुछ दिन पहले भी एक ऐसा ही मेल प्राप्त हुआ था । जिससे मन विचलित हुआ था ब्लागिंग से । पर इस तरह का व्यवहार कितना उचित है । मैं उन भाई साहब को जानता तक नहीं । और फिर इस तरह की बातें अफशोशजनक है । क्या सही क्या गलत आप लोग भी समझते हैं ? ज्यादा कुछ न कहूँगा । अब जाना है तो निकलता हूँ । फिर वापस आकर फिर से नयी शुरूआत होगी । जितना भी लोगों को गाली देना हैं दें । ॐअब मैं क्या कर सकता हूँ ।

Tuesday, April 14, 2009

गरीबी का ही तो दुख है .....................मीडिया चर्चा



मेरा लड़का डाक्टर बनेगा , मेरालड़का इंजीनियर बनेगा ऐसा सपना हर मां बाप अपने बच्चओं के लिए देखा करते हैं । आखिर कौन नहीं चाहता कि उसके बच्चे खुशहाल रहें। बात शिक्षा की है । सपने देखना अच्छा होता है पर सपनों को सच करना तो थोडा मुश्किल काम होता है हां अगर सही दिशा में प्रयास करें तो कुछ भी सम्भव है । "कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तबियत से तो उछालों यारों " ये एक ऐसा शेर है जो जगाता है आशावादी सोच को कुछ कर गुजरने के माद्दे को।
आज की शिक्षा का स्तर बहुत अच्छा होते हुए भी अच्छा नहीं है .स्कूल के अलावा भी ट्यूशन का फैशन चल निकला है जैशे इसके बगैर शि्षा अधूरी सी हो गयी है।आम आदमी की बात की जाय तो आज के समय में आम आदमी के लिए बच्चओं को अच्छी पढ़ाई करना बहुत ही मुशकिल हो गया है। क्यों कि महगाई की रफतार से आय की रफतार कहीं ज्यादा ही धीमी है। तो ऐसे में अच्छी पढ़ाई के लिए अच्छा पैसा भी होना आवश्यक हो गया है , अगर किसी मध्यम वर्ग के परिवार में दो बच्चे हैं तो बहुत हीहठिनाई के साथ उनको पढ़या जा सकता है । वो भी इण्टर तक{12 वीं क्लास } । इसके बाद की बात की जाय तो लोग आज केवल प्रोफेशन कोर्स को पढ़ना ज्यादा अच्छा मानते है ,और बात भी सही है क्यों कि पढ़ाई कर के लड़का तुरंत हीकमायी करे यही चाहते हैंसभी । पर प्रोफेशनकोर्स कि फीस की बात ही क्या है दिन दूना रात चौगुना बढोत्तरी हो रही है तो आप बताइये कि इतना पैसा आयेगाा कहां से । अगर कहीं से आभी जाता है तो उसकी भर पाई कैसे होगी । दो जून की रोटी जिसको बमुश्किलन नसीब हो रही है वह भला ऐसा रिश्क कैसे ले सकता है।
हां सरकार के द्वारा एजुकेशलन लोन की व्यवस्था जरूर है पर ये लोन उसी को आसानी से मिलता है जिसके पास पहले से कुछ है या फिर मोटी रकम को दिया बैंक के अफसर को। तो इतना झंझट कौन करे हां ।हांपर जिन्होंने किया है वे अपने आप में मिसाल जरूर हैं । रोजगार के अवसर बहुत है पर पैसे वालों के लिए ही।
पढ़ाई का स्तर सुधरा है पर गरीब के लिए नहीं । मतलब जो अमीर हैं वो तो अमीर बनेगे ही न। भला गांव का मजदूर क्या सोचेगा ये सब बस .जिने कमाने में ही पूरा जीवन कट जाय बहुत है ।
कुछ कार्यक्रम बनाने से नही बदल सकता है गरीब घर । और इनको ही बदलना है अब कैसे ?
कोई चमत्कार तो होगा नहीं. करना तो हमको ही होगा न तो हम जो कर सकते है वो करें यह हमारे ऊपर है कि हम क्या कर सकते हैं।।।
सपने के भारत में आखिर इन लोगों का भी तो सपना जुड़ हुआ है न।तो इनके बारे में भी सोचना ही होगा??

अनसुलझी वो ...........[एक कविता]

मुझमें ढूढ़ती पहचान अपनी
बार बार वो ,
जान क्या ऐसा
था
जिसकी तलाश थी उसको ,
अनसुलझे सवाल को
लेकर उलझती जाती
कभी मैंने साथ
देना चाहा था
उसकी खामोशियों को,
उसके अकेलेपन को ,
पर
वो दूर जाती रही
मुझसे ,
अचानक ही एक एहसास
पास आता है
बंधन का
बेनाम रिश्ते का ,
जिसमें दर्द है ,
घुटन है ,
मजबूरियां है,
शर्म है ,
तड़प है ,
उम्मीद है ।मैं समझते हुए भी
नासमझ सा
लाचार हूँ
उसके सामने
शायद बयां कर पाऊं कभी
उसको अपने आप में ।

Monday, April 13, 2009

उत्तर प्रदेश की राजनीति में अब मायावती कहां सो गयी हैं - आखें मूंदने से काम न चलेगा.........देखों देखों

उत्तर प्रदेश एक मात्र ऐसा राज्य हैं यदि यहां से किसी पार्टी को कम सीटें मिलती है तो उसका केन्द्र में सरकार बनाने का सपना अधूरा ही रह जायेगा । उत्तर प्रदेश की राजनीति अन्य प्रदेशों की तुलना में अधिक जातिवादी और तु्च्छ हैं । कुर्सी के लिए जान तक कुर्बान करते हैं और जान लेते हैं । सबसे ज्यादा बाहुबली नेताओं का गढ़ है उत्तर प्रदेश । चाहे बात करें राजा भैया ( विधायक कुण्डा से ) , या फिर अतीक अहमद ( फूलपुर से सांसद ) , अंसारी समेत एक बढ़कर एक माफिया की दुनिया के धुरंधर है । कोई किसी से कम नहीं । अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए अगर किसी प्रत्याशी की जान भी लेनी पड़े तो इशारों में यह खेल हो जाता है । पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रशासन का अस्तित्व इन बाहुबलियों के हाथ होता है । क्या होगा ,? कैसे होगा ? कब होगा ? यह सब यही महानिभाव तय करते हैं । सरेआम हत्या होती है पर एक भी गवाह न हीं मिलता तो आप अंदाजा लगा सकते है कि जनता में कितना भय है इनके प्रति ।

तो इस तरह से हर बार दो चार उम्मीदवारों को जान से हाथ धोना पड़ता है । केश दर्ज होता जरूर है पत अनाम व्यक्ति के ऊपर । फिर बाद में फाइल दब जाती है । हाल की घटना ले लिजिये । जौनपुर सीट से उम्मीदवार ' बहादुर सोनकर ' की हत्या कर बबूल के पेड़ पर टांग दिया गया ।हत्या का आरोप बाहुबली बहुजन समाजवादी पार्टी के नेता धंन्जय सिंह पर है । बहादुर सोनकर को बनारस से ५० किलोमीटर दूर जौन पुर में उनके गांव के पास मिला शव मिला । ऐसी कई वारदातें अभी और भी हो सकती हैं । खेल अभी बाकी है ।

मायावती ने चुनाव में यह वादा किया था कि खुफिया राज खत्म करेंगी (जिससे पार्टी सत्ता में आयी )। लोकतंत्र की हत्या का सररआम होना और इन्ही में से हमें चुनना है देश को चलाने वाला प्रतिनिधि । किस पर विश्वास किया जाये सभी तो नकाब में अपना सर ढ़के हुए है । आखिर मायावती अब क्यों पत्रकार सम्मेलन नहीं बुलाती हैं और जोर जोर अपनी आवाज बुलंद नहीं करती हैं । कहना ही इन नेताओं का काम है और हम मजबूर हैं इनके सुनने के लिए , इनकी काली करतूतों को देखने के लिए । कोई आवाज उठायेगा तो यही हश्र होगा । हाय रे राजनीति सभी हदें पार कर गयी है ।

पति परमेश्वर ...आदर्श भारतीय पत्नी [ एक कविता ] ............प्रिया प्रियम तिवारी की

तुम पति परमेश्वर हो,
तुम्हारे सारे अधिकार
मिले हैं, ईश्वर प्रदत्त,
तुम मेरे मान सम्मान के
रखवाले हो,
पर
जब चाहे मेरे मान सम्मान को
आहत कर सकते हो।

परमेश्वर बनकर मिल गया है
तुम्हें अधिकार ,
मेरे सम्मान को
कुचलने का
मैं तुम्हारी पत्नी हूँ,
श्रद्धा और त्याग की मूरत
अर्पण करूँ खुद को
तुम्हारे चरणों में
अपने अरमानों की चिता पर
पूरे होने दूँ तुम्हारे अरमान
तब मैं पत्नी हूँ "
आदर्श भारतीय पत्नी ।।

Sunday, April 12, 2009

जर्नलिज्म की नहीं जरूरत है जरनैलिज्म की -----सब चाहते है भगत सिंह पैदा हो पर पड़ोसी के घर में[आलेख - ममता सिंह ]

जर्नलिज्म की नहीं जरूरत है जरनैलिज्म की.........................................दैनिक जागरण के जाने माने पत्रकार जरनैल सिंह के जूते ने जर्नलिज्म को नई दिशा दी है । जिस पत्रकारिता का मकसद लोगों के लिए आवाज उठाना था , वह आज सिर्फ पैसा कमाने तक सिमट गयी है । इस बात पर बहस करना बेकार है कि जरनैल सिंह ने सही किया या गलत , पर उनके इस कदम से अगर किसी को फायदा होता है तो इसमें बुरा क्या है ?

मेरा मानना है कि अगर आप उस वक्त नहीं बोले जब आपको बोलना चाहिए, तो क्या फर्क पड़ता है , चिल्लाते रहिये जीवनभर। आज पत्रकारिता का गिरता स्तर देखके बहुत अफसोस होता है । एक पत्रकार पर कितनी जिम्मेदारी होती है , पर आज न ही जिम्मेदारी कहीं नजर आती है और न ही जुनून ..............पत्रकारिता केवल ब्रेकिंग न्यूज तक सिमट हई है । हालाकिं पत्रकार रहकर समाज सेवा करना भी बेवकूफी है पर आप में अपनी आवाज बुलंद करने का जज्बा तो होना ही चाहिए । जिन युवाओं से उम्मीद है कि वह पत्रकारिता के नए युग की शुरूआत करेंगें उनके लिए जर्नलिज्म ग्लैमर से ज्यादा कुछ भी नहीं है।

इसका मतलब यह नहीं है कि आप जूते , चप्पल चलाते फिरें, पर बोलिये वहां जहां कुछ गलत हो.............आवाज उठाइये , वहां जहां किसी की मदद हो सके । इन सबके बाद अगर आप बोलें तो क्या बोले ? इससे बेहतर तो खामोश रहना ही है । सब चाहते हैं कि " भगत सिंह पैदा हो पर पड़सी के घर में

भारतीय हाकी ने अजलान शाह की चौकड़ी पूरी करते हुए फाइनल में मलेशिया को रौंदा

भारतीय हाकी टीम ने चौथी बार अजलान शाह कप जीत लिया है । भारत ने फाइनल में मलेशिया को ३-१ से परास्त किया । भारतीय हाकी ने १३ साल के अन्तराल पर यह खिताब हथियाया है । इसके पहले भारतीय हाकी टीम २००६ और २००८ में फाइनल में पहुची जरूर थी पर खिताब प कब्जा न कर सकी थी । भारत ने सेमीफाइनल में चिर प्रतिद्वंदी पाकिस्तान को २-१ से हराया था । भारतीय हाकी अजलान शाह कप 1985, 1991 और 1995 में विजेता रही थी । हमारे लिए यह खुशी का दिन है ।

कालेज के आखिरी दिनों में " प्यार " का इम्तहान

कभी कभी कुछ अनकहा सा एहसास आखों से पढ़ना था मुझे..........जो कुछ समझना था हम दोनों को बिन कहे ही ..........दिल की दुनिया में हिचक को भूल मैं ऐसा न कर सका जिसका अफसोश मुझे हमेशा ही दुखी करता है ..............काश की मैं बन जाता वो सब जो वो देखना चाहती थी ......कह जाता वो सब जो वो सुनना चाहती थी...........तोड़ देता सारी बंदिशें शर्मों हया की निकल जाता दूर दुनिया की आखों से ............समय का साथ मिला था मुझे जिसको मैं ना साथ दे पाया ..........आज फिर मेरी यादों में बसी वो तस्वीर शायद धुंधली न होती .........।

कालेज के वो आखिर दिन में समय का बीतता हर लम्हां हसीन था जिसमें खो गये थे हम ................कितना कुछ था एक दूसरे को कहने के लिए फिर भी खामोशी अपनी आगोश में लेकर सुकून देती थी ..............शर्म की लाली गालों से ऊपर आखों से होती हुई लबों पर आकर रुक जाती थी...............एक एक लफ्ज में प्यार दिखता ....................उसकी कही सारी बातों को अनसुना करते हुए गौर से सुनता हुआ समय का पास से गुजरना पता ही चलता .........
समय को पकड़ने की ख्वाहिश को कभी न की थी ...........सामने बनता हुआ प्यारा इंद्रधनुषी रंग भी उसके सामने फीका लगता । कभी न सोचा उससे दूर जाने को ..............एक अधिकार था जो अनकहें से प्यार से बन चला था वो भी समझती थी खुद से ........मेरा अपना सा सब कुछ लगता था उन दिनों, सुबह होती तो इंतजार करते मिलने का शाम से रात होती हुई यादों में खो जाती ...............आखिर में क्या कहते कि हम फिर मिलेंगें शायद कभी न उसने मुझसे कहा और न मैंने ही ..............बस समझते समझाते हुए चले जाते । वक्त के साथ ही साथ सब कुछ हमारे साथ बदलता , चलता रहा .........जीवन के उस राह पर खड़े हम दोनों एक दूसरे को देखकर आज खुश नहीं थे .........दोनों की राहें यहां से विपरीत थी ...............एक दर्द जिसको बयां करना मुश्किल था हमारे लिए , एक टीस थी बेबसी की ........... आज मुस्कुराहट थी जरूर पर रौनक गायब थी , बातें वैसी ही ताजगी मुरझाई सी थी ...... चेहरा शांत सा , कोमलता छलकाता हुआ मायूस था मुझे देख ...........अपनी नजरों को इधर उधर करने हुए कुछ बयां करना चाहता था जिसे मैं महसूस करके भी नहीं महसूस कर रहा था । खुद से संघर्ष कर लिया था मैंनें कुछ न कहने का ...............इस पल को जीना आसान न था ............आज एक दिखावा था हम दोनों के बीच में ......कठोर मन की कोमलता झलकती रही पर फिर भी हम इस आह में चुप रहे कि शायद वो सब कुछ कहे दे जो मैं आज सुनना चाहता हूँ .........चुपचाप रहना भी दर्द को दिखा रहा था...........आखिर में चलते चलते अपनी राह में हम चले ही दिये ........उन्ही यादों के सहारे बिन कहे सुने.........।

आखिर मुलाकात की दास्तान हसीन , जवां दफ्न हैं आज भी यादों में ।

Saturday, April 11, 2009

टूटते रिश्ते अब तलाक तक - स्त्री विमर्श ,कितना सही ? कितना गलत ?

भारत में वैवाहिक जीवन अन्य देशों की तुलना में बहुत मजबूत है , प्रेम ही पति पत्नी को एक दूसरे से जीवन के अंतिम समय तक का साथ निभाता है, हमारे यहां की परम्पराये विश्व के अन्य देशों की तुलना में बहुत ही मजबूत हैं। पर समय के साथ ही साथ वैवाहिक जीवन में कहीं न कहीं पर कुछ दूरियां आयी है। जिसका परिणाम होता है अलगाव या फिर तलाक। पश्चात्य परम्परा से ही कहीं न कहीं हम भी प्रभावित हुए है।
पति-पत्नी का रिश्ता हमारे यहां सबसे मजबूत रिश्तों में एक है, और इस रिस्ते में आये विखराव से न केवल पति पत्नी ही प्रभावित होते है बल्कि सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव बच्चों पर होता है । ऐसा नहीं है कि यदि कोई पुरूष अपनी पत्नी का शोषण कर रहा हो तो वहां पर तलाक लेना गलत होगा पर आम बात जो कि आपस में मिल बैठकर सुलझायी जा सकती है उस पर तलाक तर्क संगत नहीं है।

और क्या तलाक होने के बाद स्त्री खुश रह पाती है , और क्या एक अच्छा जीवन जी पाती है तो शायद बिल्कुल नहीं , वैसे पुरूष प्रधान भारतीय समाज में आज भी स्त्री की दशा अच्ची नहीं है पर फिर भी तलाक इसका इलाज नहीं है। अमेरिका में कुछ ही समय में शादियां टूर जाती है जिसका परिणाम होता है बिना पिता के बच्चे । शायद यहां पर महिलाएं खुद के बर्चस्व को भी प्राथमिकता देती है वैसे यह गलत नहीं पर जरा सा अपने को अलग कर सोचे तो तलाक लेने का विचार कितना सही है यह खुद ही समझ में आयेगा।

विष्णु प्रभाकर जी का साहित्य में योगदान - अपूर्णनीय छति

हिन्दी साहित्य के जाने माने साहित्यकार विष्णु प्रभाकर जी का निधन साहित्य प्रेमियों के लिए गहरा झटका है । प्रभाकर जी ९७ वर्ष के थे । एनसीआरटी के १० कक्षा की पुस्तक में उन्हें पहले ही मार दिया था ( यह बाद केदार नाथ की बेटी " संध्या सिंह " से पता चली जब सुबह शैलेश जी ने उनका फोन नं जुगाड़ कर बात की जब ९५ वर्ष के थे तभी ) ।विष्णु प्रभाकर जी का जन्म १२ जनवरी १९१२ को मुजफ्फरनगर जिले के मीरा पुर गांव में हुआ । परिवार में मां एक शिक्षक थी जिससे माहौल साहित्य से जुड़ा रहा । प्रभाकर जी हिन्दी में प्राभकर और हिन्दी भूषण की शिक्षा ली । और अंग्रेजी में स्नातक किया । गरीबी से छुटकारा पाने के लिए पहली नौकरी १८ रूपये में की । नौकरी के सात ही साथ एक नाटक कंपनी में भाग लिया । जिसके बाद नाटक " हत्या के बाद " लिखा जो प्रभाकर जी का पहला नाटक था ।
प्रभाकर जी को उनके उपन्यास अर्धनारीश्वर के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था ।प्रभाकर जी का लेखन देशभक्ति, राष्ट्रीयता और समाज के उत्थान के लिए जाना जाता था । इनकी प्रमुख कृतियों में 'ढलती रात', 'स्वप्नमयी', 'संघर्ष के बाद' और 'आवारा मसीहा' शामिल हैं ।स्वतंत्रता के बाद उन्होंने 1955 से 1957 तक आकाशवाणी, नई दिल्ली में ड्रामा निर्देशक के रूप में काम किया । वर्ष 2005 में उन्होंने राष्ट्रपति भवन में दुर्व्यवहार होने का आरोप लगाते हुए अपना पद्मभूषण सम्मान लौटाने की बात कही थी ।
विष्णु जी ने 1938 में सुशीला नामक युवती के साथ विवाह किया । उनके परिवार में उनकी दो बेटियाँ और दो बेटे हैं । विष्णु जी का अंतिम संस्कार नहीं होगा उन्होंनें अपना शरीर एम्स को दान कर दिया था ।

Thursday, April 9, 2009

शक्ति सामंत हमारे बीच नहीं रहे - एक श्रद्धाजंली

हिन्दी फिल्म जगत में कई सुपर हिट फिल्म देने वाले चर्चित निर्माता शक्ति सामंत अपनी अंतिम यात्रा पर चल दिये सामंत पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे शक्ति दा ने मुंबई के शांताक्रूज में अपने निवास पर अंतिम सांस ली वही उनका अंतिम संस्कार किया जायेगा

शक्ति सामंत का जन्म 13 जनवरी 1926 को पश्चिम बंगाल के बर्धमान में हुआ था. उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा ली। शक्ति सामंत अभिनेता बनने की हसरत लिये हुए मुंबई आये परन्तु सफलता जब नहीं मिली तो अध्यापक बन गये और फिर इसके कुछ समय बाद १९४८ में सहायक निर्देश के तौर पर आये इनके निर्देशन में बनी पहली फिल्म थी " बहू " ( १९५४ में ) शक्ति सामंत ने कटी पतंग,अमर प्रेम और आराधना जैसी सुपर हिट फिल्में दी जो आज भी लोगों की रूचिकर फिल्मों में एक है

शक्ति सामंत ने अपना प्रोडक्शन हाऊस " शक्ति फिल्मस " के नाम से १९५७ में खोला , इसके अन्तरगत पहली फिल्म बनी हावड़ज़ ब्रिज ।आराधना , अनुराग और अमानुष जैसी फिल्मों को खूब सराहा गया तथा फिल्म फेअर पुरस्कार से नवाजा गया शक्ति सामंत ने कुछ ४३ फिल्म का निर्देशन किया इनमें प्रमुख थी -कश्मीर की कली , चाइना टाउन, और इन पेरिस इन नाइट

आज शक्ति सामंत हम सबके बीच नहीं पर फिल्मों में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाता रहेगा शक्ति सामंत को श्रद्धाजंली

पटखनी खाये , दांत चियारे टाइटलर और सज्जन कुमार की औकात बता दिया जनरैली जूते ने

चुनावी दंगल में बिना लड़े ही जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार औंधें मुंह गिर गये । सीबीआई ने जब जगदीश टाइटलर को सिख दंगों में भडकाऊ भाषण से देने के आरोप में सबूत न मिलने पर बरी किया था तो किसी ने यह कल्पना तक न की होगी कि पंजा ही इनकी हार का कारण बनेगा । जनरैल सिंह का जूता इन दोनों कांग्रेसी दिग्गजों पर भारी पड़ा । गृहमंत्री भी बेचारे महौल के मिजाज को समझते हुए माफी की गुहार चिल्लाकर देते रहे । कांग्रेस जहां एक बार फिर से केन्द्र में हाथ हिला हिला कर सबका अभिनंदन करना चाहती है । ऐसे में कोई भी एक गलत कदम इस मंशा को गहरा झटका दे सकता है ऐसे में हाईकमान ने मामले को राजनीतिक दांव पेंच से दूर रखने और खुद को पाक साफ दिखाते हुए टाइटलर और सज्जन कुमार को बाहर का रास्ता दिखाना ही उचित समझा है । वैसे ये दोनों नेता इस चुनाव में भले ही नहीं लड़ेगें पर इनका राजनीतिक कैरियर अभी राज्य सभा से बचे होने के संकेत देते हैं अगर कांग्रेस की सरकार दुबारा सत्ता में आती है तब ।

अब बात जनरैल सिंह की एकाएक अचानक अपने गुस्से को काबू न कर पाने वाले पत्रकार भाई साहब ने जूता दौड़ा कर चुनावी सरगर्मियों में लू काम किया । जनरैली तूफान से सत्ता के इधर उधर जाने का खतरा दिखने लगा यूपीए को । और फिर चली कैंची टिकट पाने वाले वर्तमान सांसद पर । वैसे जनरैल सिंह का गुस्सा होना जायज है और भावावेश में जूता फेंकना भी । अगर इसी तरह सारे पत्रकार एक एक जूता फेंकें तो ऐसे राजनीतिक लोग को कुछ हद तक सबक सिखाया जा सकता है । आग है तो धुआं होगा पर सरकार के स्वामित्व वाली भारत की प्रमुख संस्था ने जगदीश टाइटलर को साफ बेदाग साबित कर दिया । जन आक्रोश पहले से ही था और बाकी का काम सीबी आई ने पूरा किया ।

टाइटलर ने पहले प्रेस कांफ्रेस में कहा था कि वो चुनाव लड़ेगे पर जब दबाव भारी लगने लगा तब बचाव में इतना ही कहते हैं कि पार्टी के लिए हम अपना टिकट वापस लेते हैं जैसे कोई महान कार्य कर दिया है । कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि अगर ये लड़ते तो भारी मतों से विजयी होते , यह अनुमान है यह भविष्यवाणी यह नहीं पता पर फिर क्यों बैठा दिया जा रहा हैं विजयी उम्मीदवार को । जगदीश टाइटलर दिल्ली सदर और सज्जन कुमार बाहरी दिल्ली से सांसद हैं और परिसीमन के बाद टाइटलर पूर्वोत्तर दिल्ली और सज्जन कुमार दक्षिणी दिल्ली से उम्मीदवार थे ।

वैसे कांग्रेस तो यही चाहेगी कि यह मामला जल्दी ठंडा पड़ जाये पर मीडिया ने जो बड़े बड़े मसाले दार न्यूज तैयार की है कि जनता का पूरा मनोरंजन हो रहा है । मीडिया में मामला अभी लंबा खिचेगा ऐसा लगता है जिससे पार्टी को नुकसान हो सकता है । मीडिया पर भी दबाव बनाया जा सकता है ऐसे में कितना सच और झूठ मिलेगा ?

लखटकिया को हम सब लेने को तैयार .............कहीं बीएसएनएल सिम जैसी रेलमपेल तो नहीं

लखटकिया बुकिंग के लिए तैयार है ..............हम भी तैयार है भाई ......अरे गुरूवार तो आने दीजिये । टाटा की इस बुकिंग को देखते बीएसएनएल के सिम की मारामारी का दृश्य और लंबी कतार और धक्कामुक्की , रेलम पेल की याद आ जाती है । कई कई घंटे तक लाइन में लगे प्यास लगी होते हुए भी आराम से अपनी बारी का इंतजार करते हुए काउंटर को बंद होते देखते आंखों से आंसू ही न निकलते । अब क्या ऐसा कुछ तो फिर होने वाला है ऐसा लगता है । कार तो नयी है...............उत्साह भी नया है अब देखना होगा कब तक उछल कूद होती है । आज बीएसएनएल को लेने वाले परेशान है और टाटा को लेकर क्या होता है बस कुछ ही इंतजार बाकी रह गया है । हमारा तो नेटवर्क जाम है अब टाटा रास्ते भी जामकरेंगें कुछ ऐसा ही लग रहा । सिम से बात न होने का दुख है अब क्या कार क्या क्या रंग और दिन दिखायेगी , देखना अभी बाकी है । भीड कार की होगी , हम कार के अंदर होगे और सड़क पर कार होगी । हार्न की आवाज से कान पकेगा पर शान तो बरकरार रहेगी कि कार तो हैं ।
मोटर साइकिल गली में रहती है और कार कहां रहेगी ये पता नहीं । सड़क ही सबसे अच्छी होगी पार्किंग । चोरों के लिए अच्छा है आराम से पार करेंगें इधर से उधर कार को ।

कंपनी का कहना है कि कि नैनो के संभावित ख़रीददार 9 से 25 अप्रैल तक 300 रुपए अदा कर आवेदन पत्र ख़रीद कर कार बुक कर सकते हैं। प्रारंभिक मॉडल की बुकिंग 95 हज़ार रुपए देकर या फिर किसी बैंक से वित्तीय सहायता लेकर कर सकते हैं । नैनो के प्रारंभिक मॉडल के फ़ाइनेंस के लिए कनारा बैंक सबसे कम 2850 रुपए ले रहा है जबकि स्टेट बैंक 2999 में कार फ़ाइनेंस उपलब्ध करा रहा है .

Wednesday, April 8, 2009

मेरा शहर और यहां के लोग ..............आखिर बदलना पड़ा आशियाना मुझे

कल मेरी पोस्ट" मेरा शहर और यहां के लोगों का कारनामा " कुछ बातें आपके सामने पेश की थी बात मैंने सोचा कि खत्म हो चुकी है पर अभी कुछ खेल था शाम को मैं बाहर निकला घूमने के लिए ( बारिश के होने से मौसम सुहावना हो गया था ) तभी मेरे मकान मालिक का फोन आता है कि आप कहां हैं कमरे पर जाईये मैंने कहा कुछ देर में पहुंचता हूँ आनन फनन में कमरे पर आया ( मौसम का मजा किरकिरा लगने लगा ) मेरे मकान मालिक पहले ही से थे मैंने पहुंचते ही हाथ मिलाया फिर कहा कहिये हम हाजिर है ( जैसे मेरी आदालत में पेशी हो किसी मुजरिम की तरह ) मकान मालिक ने कहा - आपको कमरा छोड़ना पड़ेगा ? मैंने कहा - ठीक है उसने बात आगे बढ़ाई - कि लोगों को ऐतराज है लड़कियों के आने से मैंने कहा- आपको भी है ऐसा लगता है और क्या कहा हैं लोगं ने वो भी कह दीजिये पर कुछ खास कहा मैंने कहा - मुझे कुछ भी नहीं कहना क्योंकि मैंने ऐसी कोई गलती नहीं की है कि मुझे झुकना पड़े रही बात कमरे की तो बेशक आपका घर है मैं कुछ एक दो दिन में पलायन करता हूँ


अपना तो क्या कुछ सामान होता है समेटना इसलिए रात ही पैकिंग पूरी कर ली और आज नये आशियाने को तलाशना होगा मेरे जीवन की पहली घटना जिसको शायद ही भूलना होगा आज का दिन कुछ परेशानी लेकर आया वो भी इसलिए क्योंकि समय नहीं निकलता इस काम के लिए

कल
की सारी घटना मैंने अपनी मां से बताई मां हसने लगी कहने लगी यही दुनिया है - तुम वहां से कमरा बदल लो और अपने आपको भी बात मानकर मैंने मां से कहा सही कहा आपने कुछ ऐसा ही करूँगा अब मैं तो कमरा बदल रहा हूँ और सोच भी पर इस लोगों का क्या कभी बदल पायेंगें ये अपनी कायीयां सोच को .............शायद कभी भी नहीं हम वही देखते हैं जो हमें देखना होता है बात नजरिये की है और कुछ भी नहीं
कल की पोस्ट में कुछ लोगों ने अपनी राय दी सभी को धन्यावाद कुछ ऐसा ही हमारा शहर और यहां की सोच