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Wednesday, October 31, 2007

तेरे आने की उम्मीद

रात की तन्हाइयों में जब भी ख्याल आता है,
कि इस जहां में कितने अकेले है हम,
याद आता है तुम्हारा वो वादा,
जब तुमने कहा था कि साथ हम रहेंगे सदा,
कहां गये वो वादे,
वो कसमें, वो इरादे,
जाने से पहले कम से कम कह कर तो जाते,
तुम्हें क्या मालूम नहीं था कि तुम्हारा रस्ता मैं कभी न रोकूगीं।
क्या यही तुम्हारा यकीं था।
बस इसी भरोसे के दम पर ,
हम साथ चले थे, एक दूजे का हाथ थाम कर ।
सोचती हूँ शायद वो दिन फिर से वापस आ जायें ।
इसी उम्मीद में जी रही हूँ कि शायद तुम लौट आओ।


मीनाक्षी प्रकाश की कलम से

Tuesday, October 30, 2007

मुकेश शीर्ष पर

यह तो कमाल हो गया । रिलायंस इंडस्ट्रीज के प्रबंध निदेशक मुकेश अबानी ने पूरी दुनिया में भारत का डंका बजा दिया।तारीख २९ अक्टूबर दिन सोमवार भारत के लिए कई मायनों में आश्चर्य जनक रहा । बीएसई सेंसेक्स ने सारे रिकार्ड तोडकर २०००० का आंकडा छुआ। तो एक ओर इससे बडी खुशी यह रही कि मुकेश अंबानी ने दुनिया के सबसे अमीर होने का ताज पहन लिया। मुकेश ने बिल गेट्स तथा कार्लोस हेलू को पछाडकर यह गौरव हासिल किया .
शेयर मार्केट के ताजा उछाल से मुकेश अबांनी की कुल सम्पति ६३;२ बिलियन डालर(करीब २४४,१०८ करोड रूपये) पर पहुच गयी
मैक्सिकोके उद्योगपति कार्लोस हेलू की कुल सम्पति फिलहाल ६२;२९९३ बिलियन डालर
बिल गेटस साफ्टवेयर सम्राट अब तीसरे नं पर है इस सूची में गेटस की कुल सम्पति ६२;२९ बिलियन डालर है।२०वां देश भारत बन गया है जहां शेयर सूचकांक ने २०००० का आंकडा छुआ है।
अब तक १९ देशों के ३२ सूचकांक ने यह उपलब्धि हासिल की है।एशियाई देश में भारत से पहले हांगकांग का शेयर सूचकांक है जबकि चीन और जापान अभी इसमें बहुत पीछे हैं।

Sunday, October 28, 2007

नक्सल हमलों से जूझता भारत


झारखण्ड में हुए नक्सली हमले में १८ लोगों को जान से हाथ धोना पडा़ ।वैसे यह कोई पहली घटना नही है। इस तरह के विस्फोट करना इन नक्सलियों का उद्देश्य सा होगा है। पर क्या हिंसा के बल पर आज तक कुछ प्राप्त किया जा सका है। तो जवाब है नहीं और न ही इस तरह की कार्यवाही करके ये सफल ही हो घटना में झारखण्ड प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मराडी के बेटे और भाई शिकार हुए। वर्तमान मुख्यमंत्री मधु कोडा ने इस कार्यवाही की भर्त्सना की है। तथा मृतको के प्रति शोक प्रकट किया है। पर यहां पर जो बात सामने आयी है वो है कि सारे आम इस तरह की की आतंकी घटना को अन्जाम देकर भी आज ये लोग खुले समाज में घूम रहें है। और सरकार तथा केन्द्र सरकार हाथ पर हाथ धर कर बैठी है। आखिर कब तक इस तरह के कुकृत्यों को झेलना होगा आम जनता को ।

कुछ ही महीने हुए है कि सांसद सुनील महतो जो झारखण्ड से सांसद थे। उनको भी एक ऐसी ही नक्सली घटना का शिकार होना पडा था। और इस कार्यवाही पर सरकार का वही घिसा पिटा रवैया । केवल संत्वना ही मिलती है घटनाओं से पीडित लोगों को। पर क्या यही समाधान है इस समस्या का । केन्द्र का निराशा जनक प्रयास हमें दुखी करता है । और यदि आज के समय में देखें तो भारत के १८ जिलों में यह बीमारी फैल चुकी है । पं बगाल के नक्सलवाडी गांव से शुरू हुआ प्रयास एक जन आनदोलन के रूप में था ।जो कि जमीदारों के खिलाफ था। जिसका एक सकारात्मक उद्देश्य था। पर आज हम इस आन्दोलन को एक विकृत रूप में पाते है । इसे दुर्भाग्य ही माना जाय की जिस आन्दोलन का कभी दूसरा उद्देश्य था वह आज लोगों के जान का दुश्मन बना है।

Saturday, October 27, 2007

सच्चाई हकीकत और ये मौतें


भारत एक तरफ तो अपने को विकास से विकसित तक मान रहा है ।कभी -२ हमारे सामने ऐसी घटनाएं सामने आ जाती है, जिससे हमें संदेह भरी नजरों से देखा जाता है। हाल ही भारत के कुछ शहरों में हुई किसानों के द्वारा आत्म हत्याएं और कल हुई भूख से मौत । क्या यह घटनायें प्रश्न चिन्ह नही खडा़ करती हैं। एक तरफ तो हम विदेशों में यह ढिढोरा पीटते है कि हमारे यहां पर इतना अन्न उत्पादन होता है कि हम बाहर के देशों को भी अनाज भेजते है परन्तु जो भूख से मौतें हो रही है इसका क्या मतलब समझा जाय ।कल देश की राजधानी नई दिल्ली के ग्रेटर कैलाश इलाके में एक ४५ वर्षीय व्यक्ति की भूख से मृत्यु हो गयी । और इसके दो महीने पहले दिल्ली में भूख से तीन बहनों की हालात इस कदर हो गयी थी जिससे एक जो जान से हाथ धोना पडा ।और दो को गम्भीर हालात में अस्पताल में भर्ती कराया गया । ये हाल है राजधानी के जहां पर की केन्द्र और दिल्ली सरकार दोनों है और ऐसी घटनाओं की अनदेखी कर रही है। तो भला देश के अन्य जगहों का तो हाल क्या होगा यह समझना बहुत कठिन न होगा। आये दिन हमारे बीच इस तरह की घटनाएम हो रही है जिसको की नजरअंदाज नही किया जा सकता है। बल्कि जरूरत है इस परिस्थति से छुटकारा पाने की इस समस्या का हल ढूढने की।क्यों कि कब तक भला सच्चाई से मुह चुराते रहे गे।

Thursday, October 25, 2007

ब्लागर समूह से निवेदन

आज मेरा ब्लागर समूह से मेरा ये निवेदन है कि किसी भी लेख या कविता पर जब हममें से कोई बंधुजन अपनी राय दें तो वहां पर ये ख्याल अवश्य रखें कि जिस लेख या पोस्ट पर टिप्पणी कर रहें हो तो उस लेख या पोस्ट को पूरा अवश्य पढें या पूरा नही पढ पायें हो तो कोई टिप्पणी न करें। नही तो यह लिखने वाले के लिए बेमानी सा होगा। इस तरह से अपनी राय हम आधी अधूरी या फिर यदि कोई और अपनी राय दिया होता है। तो उसको देख कर करते है ,जो कि बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है।वैसे ये बात मेरे एक निकट सहयोगी जी के आग्रह पर, मै पर आप सब के समक्ष इस निवेदन को प्रस्तुत कर रहा हूँ। अगर ऐसी कोई बात कभी हममें से किसी से हो गयी हो, तो दुबारा यह दोहराव न हो यही निवेदन है। वैसे ब्लागर समूह का कोई नियम कानून नही है ।पर यह स्व अभिव्यक्ति ही कही जायेगी और हमारी यही आचार संघिता होगी।

Wednesday, October 24, 2007

विकलांगता एक चुनौती और अभिशाप


भारत में विकलागों की पेशानियों को हम काफी हद तक नजरअंदाज कर जाते है? जबकि यह हमारे समाज की बुराई में बढावा देती है । साथ ही साथ मानवता के नाते हमारा कुछ सामाजिक दायित्व होता है। पर हम इस सामाजिक दायित्व से मुह मोड लेते है ,जो की शिक्षित समाज के लिए एक दुखद बात है। आज भारत में विकलागंता को दूर करने के लिए सरकार द्वारा कई महत्तवपूर्ण कदम उठाये गये है पर फिर भी क्या कारण है कि इस रोग में कमी होने बजाय बढोत्तरी हो रही है। अगर हम भारत के प्रदेशों के नजरिये से देखे ,तो उत्तर प्रदेश में आज सबसे ज्यादा लोग विकलांग हैदूसरे नं पर बिहार और फिर और कई राज्य इस श्रेंणी में अपनी पहचान बनाने में आगे है । जहां तक यदि बात किया कि क्या मूल कारण है कि इतने प्रयास के वावजूद भी भारत इस रोग से छुटकारा नही पा पा रहा है? भारत की पूरी आबादी आज के समय में विश्व में दूसरे स्थान पर है । यह पूरे विश्व की लगभग १६ प्रतिशत आबादी है और आज भारत दिन ब दिन बढती जनसख्या का शिकार हो रहा है ,जिससे भारत में वर्तमान जनसंख्या १अरब १६ करोड के पास पहुचती है। और सरकार के अभियान पूरे देश में एक साथ चलाना एक बहुत बडी चुनौती है पर मैं यह नहीं कहता कि सरकार के ये प्रयास पूरी तरह विफल है पर जरूरत है अभी भी लोगों को जागरूकता की , ग्रामीण क्षेत्रों में अभी लोग अनजान से है। विकलागों की संख्या में और अधिक बढोत्तरी न हो ,यह भी काफी हद तक हमारे प्रयासों को दर्शाता है ।जो लोग इस विकलांगता के दुष्प्रभाव से पीडित है उनको भी नजर से हम नहीं हटा सकते है। तथा हम सब को मिलकर इस समस्या का हल निकालना चाहिए ।जहां तक हो सके सब को इन विकलांग व्यक्तियों की मदद् कर इन्हें समाज की मुख्य धारा में शामिल करना होगा। और सरकार की तरफ से जो प्रयास होगें वो तो अलग बात है ।पर हमारा कर्तव्य यह है कि हम आगे बढ़के इनके भविष्य के लिए कुछ मजबूत रास्तों का निर्माण करें जिसे इन लोगों को यह न लगे कि यह समाज से अलग हट के है ।और भारत के विकास में इनके योगदान को भी शामिल करें।कई गैरसरकारी संस्थान विकलागों के सहयोग के लिए है ,पर ये संस्थान ज्यादा तर स्वहित में ही रह जाते है ।तथा अपने मूल उद्देश्य को भूल जाते है। हम यह प्रयास स्वयं से करना है नकि इस गैरसरकारी संगठन या फिर सरकार के ऊपर निर्भर हो के । क्यों कि इनके जो काम है वो अपना कार्य करगें पर ,हम को अपना काम करना होगा इन लोगों की सहायता करके । वैसे" पहल" नाम का एक युवा संगठन इस क्षेत्र में अपनी भूमिका निभा रहा है ।यह कुछ छात्रों द्वारा चलाया जा रहा है। यह किसी भी विकलाग की हर तरह से मद् द के लिए आगे आ रहा है। हमको ऐसे ही साक्क्षों से सीख लेने की जरूरत है। आइये योगदान करें कुछ काम करें इनके लिए भी। और इस विकलांगता रूपी अभिशाप के मिथक को तोडने की कोशिश करें।क्यों कि भारत विश्व का सबसे युवा देश है और हम विश्व के सबसे ज्यादा उम्मीद रखने वाले लोगों देशों में गिने जाने वाले तथ्य को सत्य सिद्ध करें।

Monday, October 22, 2007

बुराई पर अच्छाई की विजय


बचपन से ही भारतीय संस्कृति के बारे में सुनती चली आई हूँ। किस्से कहानियों के माध्यम से और टेलीविज़न पर धार्मिक नाटकों के माध्यम से रामायण, महाभारत जैसे पौराणिक गाथाओं को सुना, देखा लेकिन कभी महसूस नहीं कर पाती थी। धीरे-धीरे जैसे बड़े होते गए उनके मूल्यों और महत्वों को भी समझते गए। कॉलेज में जब अपने प्रोफ़ेसर से उनके दूसरे पक्षों को सुनती थी तो सोच कर आश्चर्यचकित हो जाती थी कि सत्य क्या है जो बचपन से सुना और देखा या जो कॉलेज में किताबों मे पढ़ कर जानकारी हासिल की।
एक ओर जहाँ राम, कृष्ण, भीष्म पितामह, पाण्डव का नाम सुनते ही एक विनम्र भाव मन में जागृत होती है वहीं रावण, दुर्योधन का नाम सुनते ही मन में एक ख़ीज उत्पन्न होती है।
लेकिन सोचा जाए तो ये भेदभाव आखिर क्यों है? मुख्य कारण है धर्म-अधर्म, नैतिकता और अनैतिकता। शायद इन्हीं कारणों के कारण इन महापुरुषों में भिन्नता देखी जाती है। जहाँ एक वर्ग ने धर्म और नैतिकता का मार्ग अपनाया वहीं दूसरे वर्ग ने अधर्म और अनैतिकता का मार्ग अपनाया।
कल दशहरा था बुराई पर अच्छाई की विजय। जहाँ राम रावण का नाश करते हैं। न जाने कहाँ से मेरे मन में एक सवाल आया रावण का विनाश तो सदियों पहले हो गया था, फिर क्यों इतने लंबे अर्से के बाद भी रावण को जलाया जाता है? आख़िर एक मरे हुए को कब तक मारा जाएगा। और वो वैहशी (आतंकवादी,लुटेरे) जो रावण के भेष में सरेआम आज़ादी की सांस ले रहे हैं उनका नाश कब होगा। लोग उन लोगों को कैसे माफ़ कर देते हैं? क्यों छोड़ दिया जाता है उन्हें ऐसे जो हमारे आस-पास मौजूद हैं। देखा जाए तो रावण मरा नहीं है, वह हर घर में भेस बदल कर रह रहा है। हमें उसे ख़त्म करने की आवश्यकता है। एक पुतले को जलाने से कुछ हासिल नहीं होगा।
प्रीती मिश्रा की कलम से

Sunday, October 21, 2007

युवाओं ने दिखा दिया कगारूओं को


T-२० की बादशाहत को साबित करना बहुत आसान नहीं था भारत के लिए। और वो भी उस समय जब की अभी चंद दिनों पहले जिस टीम से एकदिवसीय श्रृखला में ४-२ से शिकस्त खायी हो। पर शाबाशी देनी होगी हमारे गेदबाज, और बल्लेबाजों को। की उन्होंने कंगारूओं को यह बता दिया की अगर तुम एक दिवसीय के बादशाह हो तो हम भी T-20 के बादशाह है। मैंच के एक दिन पहले रिकीं पोटिग ने अपने वाकयुद्ध में कहा कि" भारत ने T-20 विश्वकप जीता है। पर अब यह बीती बात हो चुकी है यह इतिहास हो चुका है। अर्थात भारत को यह खिताब महज एक तुक्का था कुल मिलाकर भारतीयों की जीत पर संदेह जैसा प्रकट करना था। पर हमारे युवाओं ने यह दिखा दिया कि हम अपने अच्छे खेल के बदौलत जीतते है, न की संयोग वश।
भारत ने अब तक खेले में लगातार ५ मैच जीत कर साउथ अफ्रीका के रिकार्ड की भी बराबरी कर ली है भारत ने अब तक T-20 मैचों ५ जीता, १ हारा १ टाई और १ रद्द रहा है। तो ये रिकार्ड भारत की कहानी कहते है। बादशाहत पर प्रश्नचिन्ह लगाना काम है विदेशियों का।
कल हुए मुकाबले में सब कुछ भारत के हक में ही रहा ।आस्ट्रेलिया ने निर्धारित २० ओवरों में १६६ रन ही बनाने दिया भारतीय गेदबाजों ने ।जिसमे कप्तान रिकी पोंटिग के तेज ( ५२ गेदों पर ७२ रन) शामिल है । भारत ने पारी की शुरूआत करने के लिए सहवाग और गौतम गम्भीर को भेजा पर सहवाज ने पुराने रैवये को अपनाते हुए जल्दी ही अपने घर यानी पैवेलियन की राह पकडी । तब फिर गम्भीर और उथ्प्पा ने अच्छी तरह से खेलते हुए रन गित को गोलओ की रफ्तार से तेज करते हुए ११ रन की दर से रन बनाने शुरू किये और ब्रेट ली और बेन के गेदों को सीमा पार पहुचाया तथा मैच हो १७ओवर और १ गेद में ही भारत ने जीत लिया। गम्भीर को मैन आफ द मैव का खिताब मिला और हरभजन को सबसे अच्छी गेदबाज के लिए तथा युवराज को ज्यादा छक्के मारने और अच्छी फिल्डिग के लिए पुरस्कार मिला । और भारतीयों की बादशाहत का एक और अध्याय जुड गया।

Friday, October 19, 2007

टी आर पी

टी आर पी को बढ़ाने का सपना जैसे सभी चनैलों को लग गया है। और इस काम को लेकर किसी भी हद को पार कर गये हैं ये टी वी चैनल वाले। सभी आगे बढ़ना अच्छा लगता है पर जो तरीका अपनाया जा रहा है वो पूर्णः गलत है। आपने अभी हाल ही की घटना को देखा कि कितनी दुर्भाग्यपूर्ण थी ये(उमा खुराना मामला)। टी आर पी यानी टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट । वैसे माना जाता है कि जिस चैनल की टी आर पी जितनी ज्यादा होती है और उसकी दर्शक संख्या उतनी ही अधिक होती है ।आमदनी भी अधिक होती है। पर क्या टी आर पी को सही मान लेना चाहिए? वैसे ये चैनल भला कितने जगह पर ये मशीनों का प्रयोग करते है ?तो आप को ये बताना चाहूगा कि मात्र कुछ ही शहरों के कुछ ही घरों में ।तो भला कैसे सही मान लिया जाय की किस टी वी की लोक प्रियता अधिक है पर हमारे सामने मजबूरी यही है कि हमारे पास वर्तमान समय में और कोई मानदण्ड नही है किसी चैनल की लोकप्रियता को मापने के, तो यहां ये विवशता है कि चाहे जो भी कहें ये चैनल वाले मानना होता है। आज सभी ये दावा करते है कि हम सर्वश्रेष्ठ है? पर क्या आधार इस बात के ये समझने वाली है तो उत्तर जो मिलता वह कुछ संमझ से परे होता है।यहां पर सरकार को कुछ मानक तय करने चाहिए।

Thursday, October 18, 2007

आइये कोशिश करें


क्या हम लोगों को यह बात मान लेनी चाहिए कि केवल कानून बनाने मात्र से ही लोगों के सोच में परिवर्तन नहीं आने वाला है। तो मेरे विचारों मे यह बात सही है । जरूरत है लोगों को जागरूक करने की । पर इस तरह की जागरूकता लाने के पीछे किस तरह की पहल की आवश्कता की होगी। अगर हम बात शिक्षित समाज की करें तो हम पातें है कि यह शिक्षित समाज ही इस बात के लिए कुछ ज्यादा ही जिम्मेदार है। मैं आज बात करना चाह रहा हूँ धूम्रपान की। आपने देखा होगा कि आमतौर पर खुली जगह जहां पर हर तरह के लोग होते है और वहां पर यदि कोई एक व्यक्ति इस तरह की हरकत करता है तथा उसके इस तरह के कृत्य से आप को या सभी को कोई दिक्कत होती है तो यहां पर हम लोगों का ये दायित्व हो जाता है कि उस अकेले व्यक्ति को धूम्रपान करने के लिए मना कें आम तौर पर हमारे अन्दर यह बात आ जाती है कि भला हम क्यों फालतू का टेंशन ले पर आप को यह जान कर शायद परेशानी हो को आजकल जिस तरह से बीमारियां फैल रही है धूम्रपान से , उसमें सबसे जयादा जो प्रभावित होता है वह है जो कि कभी भी धूम्रपान नहीं करता है। इस लिए आप को यहां पर एक समझदार नागरिक के कर्तव्य का निर्वहन करना चाहिए ।सरकार की मानें तो उसने सभी तम्बाकू के सामान बनाने वाली कम्पनियों को यह निर्देश दिया है कि कम्पनी को अपने उत्पाद को बेचते समय इस बात को लिखना होगा कि यह धूम्रपान सेहत के लिए हानिकारक है। पर इससे क्या कोई फर्क पडता है ?मुझे तो आज तक यह बात समझ में नही आयी और नहीं इस लिखने के पीछे का कोई उद्देश्य ही समझ में आया पर हां एक बात यह जरूर देखने को मिली कि इस उद्योग से सरकार को एक मोटी रकम अवश्य ही प्राप्त होती है। मैनें कई दुकानों पर देखा है कि वहां पर साफ और सुन्दर अक्षरों में यह लिखा हुआ मिल जाता है कि १८ वर्ष से कम उम्र के लोगों के लिए धूम्रपान निषेध है पर वास्तविकता ये है कि यह मात्र हाथी का दांत दिखावा मात्र है और खाने का अलग ही है ।कुल मिलाकर मेरे कहने का जो मतलब है वह है कि एस प्रकार से क्या हम लोगों को यह संदेश देने में सफल होते है कि आप तम्बाकू का सेवन न करें तो मेरा यही मानना है कि आज कि युवा पीढी बहुत ही मस्त अन्दाज में धुएं की गिरफ्त में फसती जा रही है। खुले तौर पर सब कुछ हमारे समाने है पर हम कोई प्रयास नहीं करते है।आप को यह बात अवश्य ही मालूम होगी की सरकार नें धूम्रपान रोकने के लिए एक विधेयक भी पारित किया और इस विधेयक में यह बात साफ तौर पर कही गई है की सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान करना कानूनी जुर्म है । और जो भी इसका उलल्घन करेगा उस पर ५०० का जुर्माना होगा। पर क्या आप ने आज तक किसी को यह जुर्माना होते देखा है या फिर कहीं पर पढा़ शायद आप जवाब होगा नहीं। जी सही भी है कि भला कैसे यह हो ? तो जनाब मेरा सभी से यही अनुरोध है कि हम केवल इतना करें कि जब भी हमारे साथ ऐसी को बात हो तो हम उसका विरोध करें । तो बात कुछ बन सकती है। क्यों कि " कौन कहता कि आसमां में शुराख नहीं हो सकता, अरे तबियत से एक पत्थर तो उछालों यारों। कोशिश करना हमारी आदत है।

Monday, October 15, 2007

वो फिर नहीं आते


सम्मोहित कर देने वाली आवाज से सबके दिलों को सदियों तक सुकन देने का दम रखने वाला अदाकारी और गायकी की दुनिया का जो दमकता सितारा २० साल पहले १३ अक्तूबर के दिन इस जहान को अलविदा कह गया था । वह 'है' मनमौजी हरफन मौला फनकार किशोर कुमार।
४ अगस्त ९२९ को खांडवा (सेट्रल प्राविस एंड बेरार) में अजूबों से भरी इस दुनिया को देखने के लिए पहली बार आंखे खोलने वाले फनकार ने खुद को अभिनय, गायन, संगीत , निर्देशन, शास्त्रीय विधाओं की साधना , स्कीन राइटर , स्क्रिप्ट राइटर, कंपोजर के रूप में मील के पत्थर के तौर पर स्थापित करने के बाद १३ अक्तूबर १९८७ को आखें बंद कर ली।हिन्दी ,मराठी, बंगाली असमी ,गुजराती , कन्नड, भोजपुरी , मलयालम और उडिया भाषा में हजारों गीत गाने वाले किशोर दा ने १९५० से १९७० के दशक में भारतीय फिल्म जगत के क्षितिज पर सुनहरे हर्फों में कामयाबी की जो दास्तान लिखी । उसकी छाप करोडों दिलों पर आज भी देखी जा सकती है।बेरार के जाने- बारे वकील कुंजलाल गांगुली और गौरी देवी की चौथी संतान आभाष कुमार गांगुली ने बचपन में ही उस दौर के सबसे बडें गायक कुदंन लाल सहगल की आवाज की नकल करते हुए गाना शुरू कर दिया था । तब तक उनके बडें भाई अशोक कुमार हिन्दी सिनेमा में स्थापित हो चुके थे।बडे होकर बालीबुड का स्टार बनने का सपना संजोए दादा के पासआने परआभाष कुमार से नाम बदल कर किशोर कुमार रख लिया और बाम्बें टाकीज में कोरस के सिंगर के तौर पर कैरियर शुरू किया।

Thursday, October 11, 2007

वाटर

भारतीय सभ्यता और संस्कृति जिस पर की नाज है सभी भारतीयों के इस भ्रम को तोडती एक फिल्म जिसका नाम है वाटर। फिल्म का निर्देशन दीपा मेहता ने कया और अभिनय की कमान सीमा विश्वास , जान अब्राहम और लीजा रे जैसे चुनिन्दा कलाकारों के हाथ में सौपा गया है । यह फिल्म १९३८ के समय भारतीय सामाजिक व्यवस्था को दिखाती है । बाल विवाह और विधवाओं के रहन - सहन को बहुत बिन्दुवत दिखाती है। भारत के आजादी के पहले की विधवाओं की जीवन शैली , रहन सहन और उसके साथ जो समाज का व्यवहार था । उसको बहुत ही भली प्रकार से दिखाया गया है वैसे तो वाटर फिल्म को भारत में नहीं फिल्माया जा सका इसका स्पष्ट है आर एस एस और अनेक हिन्दू धार्मिक संस्थान । इस फिल्म की शूटिंग श्रीलंका में की गयी है तथा कनाडा की तरफ से आस्कर के लिए भेजा गया था परन्तु दुर्भाग्यवंश इस को आस्कर नहीं मिला परन्तु वाटर जैसी फिल्मों आज भी हमारे समाज के लिए प्रेरणा स्रोत है क्योंकि समय जरूर बदला है पर अभी भी लोगों में इन समाजिक कुरीतियों को लेकर अनेकों भ्रम है इस प्रकार से वाटर एक सामाजिक व्यंग्य है।

Tuesday, October 9, 2007

आखिर मैं क्या समझूँ इसे?

कभी गुस्सा ,तो कभी प्यार
आखिर मैं क्या समझूँ इसे?
कभी खुद ही न बात करना
और फिर
कभी मेरा किसी के साथ बात करने पर नाराज होना,
कभी मेरे साथ रहना,
और
कभी न मेरे पास आना,
कभी मुझको अपने हाथों खिलाना,
और
कभी न मेरे साथ खाना।
आखिर मैं क्या समझूँ इसे?
कभी मेरे साथ चलती हो दूर तक ,
और फिर
कभी देती नहीं हो दो कदमों का साथ।
आखिर मैं क्या समझूँ इसे?

" नहीं कुछ बोलकर बोलती हो तुम सबकुछ,
क्या समझ रखा है मुझे नादां इतना।
तुम भी बडी नटखट हो ये जानता हूँ मैं,
मगर तुम भी हो चुप और मैं भी हूँ चुप।।"

Monday, October 8, 2007

ट्रैक सुपर स्टार का दुखद अन्त




अमेरिका की ट्रैक सुपर स्टार मरियन जोंस ने प्रतिबन्धित दवा लेने का गुनाह कबूल करते हुए अपने रिटायर मेंट की घोषणा कर दी है। ३१ साल की जोंस ने मीडिया के सामने यह बात स्वीकार की । कि उन्होंने अपना प्रदर्शन सुधारने के लिए प्रतिबन्धित दवा का सहारा लिया था।
जोंस की आखें भरी हुई थी।और अपने प्रशंसको और परिजनों के सामने रूधे हुए गले से यह कहा कि " मैने आप सबका विश्वास तोडा है ।,और मेरा सिर शर्म से झुका हुआ है। जोंस ने कहा कि आपके साथ बेईमानी की और आपको नाराज होने का पूरा हक है।।
जोंस से ओलम्पिक पदक वापस करने को कहा गया है। जोंस ने टेट्रा हाइड्रो जेस्ट्राइनोन(टी एच जी) का सेवन किया था। सिडनी ओलम्पिक में जोंस ने १००, २०० चार गुणा ४०० मीटर में स्वर्ण और लम्बी कूद व चार गुणा १०० मीटर में कास्य पदक जीता था।
वैसे तो देखा जाय मरियन जोंस एक प्रतिभावान जैसी धावक तो थी। ही पर इस स्तर पर पहुच कर प्रतिबन्धित दवा लेना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण बात है। यहां ओलम्पिक संघ को यह बात ध्यान देनी चाहिए कि ऐसी घटनाएं दुबारा न हों। तथा खेल में शामिल होने वाले खिलाडियों की चिकित्सा जाँच हो जिससे प्रतिबन्धित दवाओं के सेवन पस रोक लगाया जा सके।

Sunday, October 7, 2007

उल्टा पुल्टा

१-
मालिक; (ड्राइवरसे) अरे भई; गाड़ी जरा धीरे चलाओ। इतनी तेज रफ्तार देखकर डर लग रहा है।
ड्राइवर ; डर तो मुझे भी लग रहा है । पर क्या करूँ गाडी के ब्रेक फेल हो गये हैं।
२-
मीनाः डाक्टर साहब। मुझे घुडसवारी का शौक है, इस कारण मेरे पति मुझे पागल समझते है। क्या घुडसवारी पागलपन है?
डाक्टरः बिलकुल नहीं। ऐसा कहने वाला स्वयं पागल होगा।
मीनाः सच , डाक्टर साहब। चलिए, अब आप घोडा बनिये।
३-
एक कंजूसः(मेहमान से)कहिए जनाब क्या लेगें, ठण्डा या गरम?
मेहमानः (नौकर से) राजू। पहले ठंडा पानी ले आओ फिर गरम पानी ले आना।
४-
साधूः बेटा, बाबा को कुछ दक्षिणा दो। प्रभु की लीला देखना, तुम पे उनकी अपार कृपा होगी।
रमेशः माफ करें बाबा। एक लीला(पत्नी) से तो पहले ही परेशान हूँ।
५-
शिक्षकः (छात्रों से) बच्चों, बर्फ का प्रयोग करते हुए वाक्य बनाओ।
छात्रः- पानी बहुत ठंडा है।
शिक्षकः इस वाक्य में बर्फ शब्द कहां पर है?
छात्रः सर । वह तो पिघल गयी है , तो देखेगी कैसे?
६-
पायलट की ट्रेनिंग के लिए इंटरव्यू के दौरान अधिकारी ने रोहित से पूछाः-
" अगर तुम्हारा विमान आकाश में उड़ने के दौरान अचानक रूक जाए तो तुम क्या करोगे?"
रोहितः करना क्या है सर, सभी यात्रियों को उतार कर धक्के लगवा दूगां।
७-
मां ने अपने बेटे से पूछा, तुमने पापा को बताया, कि तुम्हें भाषण -कला में पहला ईनाम मिला है।
" हां मम्मी। बताया"
" तो वो क्या बोले?"
" कहने लगे कि तुम में अपनी मां के गुण पैदा होते जारहे हैं"
८-
एक पहलवान ने वकील से पूछा , " आप मेरा केस लड़ सकते है?"
,"केस तो लड़ सकता हूँ, लेकिन फीस के लिए तुमसे कौन लडेगा?"

Saturday, October 6, 2007

टी वी चैनलों का उद्देश्य और पत्रकारिता


टी वी चैनलों की दिनों दिन लगातार तीव्रगति से बढोत्तरी हो रही है, जिस वजह से सूचना के क्षेत्र में क्रान्ति आ गयी है ।और रोजगार के अवसर में वृद्धि हो रही है। पत्रकारिता के छात्रों के लिए यह बहुत ही सुखद बात है। और साथ ही साथ आम जनता के लिए भी खुशी की बात है क्योंकि जनता को अब कई विकल्प मिल गया है समाचार एवं जानकारियों को प्राप्त करने के लिए। परन्तु इस भाग दौड़ और प्रतियोगिता के दौर में टी वी वैनलों का अस्तित्व खतरे में है ।और अस्तित्व बचाना मुश्किल हो गया है। क्योंकि सूचना को सही और वास्तविक तौर से प्रस्तुत करना और दर्शकदीर्धा को अपनी ओर आकर्षित करना कोई आसान बात नहीं है। तो इसलिए टीवी चैनलों को सारी बातों को ध्यान में रखकर चलना पड़ता है। परन्तु आजकल के टी वी चैनलों में जो होड़ देखने को मिल रही है वो है स्टिगं आपरेशन की । तथा परदे के पीछे के सत्य को आगे लाने की। पर यहां पर एक बात यह गौर करने की है कि सत्य को सत्यता से हासिल किया जाय तो सही होगा। परन्तु हो क्या रहा है ? पत्रकार अपनी हर तरह की तकनीक का प्रयोग करता है ,नाम पाने के लिए और पैसा कमाने के लिए। जो कि एक गलत संकेत है हमारे लिए। टी आर पी (टेलीविजन रेटिगं प्वाइटं) भी एक बड़ी समस्या है इसके बढा़ने के प्रलोभन में आकर टीवी चैनल गलत हथकड़े अपना रहें है । यहां पर व्यवसायिकता का बोलबाला देखने को मिल रहा है ।अगर बात टीवी चैनल के उद्देश्य की की जाय तो केवल पैसा कमाना ही लक्ष्य नजर आ रहा है। वैसे जीविकोपार्जन करना गलत नहीं है, परन्तु गलत उद्देश्यों को लेकर क्या ये टी वी चैनल अपनी इमारत की नीव को नहीं कमजोर कर रहें है ।जिसका परिणाम यह है कि कभी सरकार तो ,कभी निजी करणों से ही ये टी वी चैनल बंद हो रहें है । वैसे एक सर्वे से पता चला है कि दुनिया में लगभग प्रतिदिन १० चैनल बंद हो जातें है। तो यहां कारण स्पष्ट है आगे बढ़ने की होड़। जो बात ध्यान देने की है कि पत्रकार भी अपने दायित्वों का निर्वहन पूर्ण सत्यता के साथ नहीं करते है। पत्रकार भी टी वी चैनलों के जाल में फंस जाते है और उनके ही बताये रास्ते पर चलते है। और जिस कारण इस स्थिती को पहुँच जाते हैं । यदि बात टी वी चैनलों में प्रसारित होने वाले कार्यक्रम की बात की जाय, तो हम यह पायेंगें कि कुछ चैनल तो इस हद तक नंगेपन को परोशने पर ऊतारू हो गयें है। कि हम परिवार के साथ समाचार चैनलों को नहीं देख सकते है। इस पर टीवी चैनलों की प्रतिक्रया होती है कि " जनता जो मांग करती है ।हम वही दिखाते है " जबकि बात उलटी होती है। ये चैनल जो दिखाते है वही हम देखते है। कुल मिला कर निष्कर्षतः यही बात निकलकर सामने आती है कि इस तरह के चैनलों को प्रतिबन्धित किया जाना चाहिये जो समाज की बुराईयों को और बढा़ रहे हैं और अपने उद्देश्यों से भटक गये हैं।

Friday, October 5, 2007

बस यात्रा का सच


वैसे तो बहुत से मुददे हैं लिखने को। पर कुछ बातें आप को प्रेरित करती है कि उस पर लिखा जाय तो एक ऐसी ही बात मुझे आज ये कुछ बातें लिखने को मजबूर कर रहीं है। शायद आपके साथ भी कभी हो सकता है अगर आप यात्रा करने में विश्वास करते होगें या फिर मजबूरी में करना पडता है तो आप ध्यान दे इस बात को । वैसे जो बात मैं आप सभी के सामने रखने जा रहा हूँ वो एक आम बात ही है । मैं तो रोज ही लगभग ५ घटें का सफर दिल्ली से नोएडा के लिए करता हूँ। (आने और जाने में) और आज कल मैं हिन्दी का उपन्यास "कितने पाकिस्तान" कमलेश्वरजी का पढ़ रहा हूँ तो सफर आसानी से कट जाता है ।पर आज मेरा कुछ खास पढ़ने का नहीं हुआ तो मैं बस पर बैठे -२ ही बाहर आती जाती सवारियों को निहार रहा था। साथ ही साथ जो पेड़ और बड़ी इमारतें (जो कि मैं रोज ही देखता था) थी उनको भी देखता जा रहा था । समय नहीं कट रहा था तो ऊबन हो रही थी बैठे - बैठे। तभी एक महिला जिसके साथ दो छोटे-छोटे बच्चे थे वो बस पर चढ़ी। और वो महिला सीट की तरफ बढ़ी। जिस सीट की तरफ वो महिला बढी थीं उस पर एक युवा पुरूष बैठे थे । तो महिला ने उन महाशय जो उठने का निवेदन किया तो महाशय ने न उठने का इशारा किया। तो महिला ने दुबारा आग्रह किया और अपने बच्चों को दिखाते हुए अपनी परेशानी को बताने का प्रयास किया ।परन्तु उन महाशय पर कोई असर नहीं हुआ, तो फिर उस महिला ने महापुरूष को बुरी तरह से लताड़ा ।और कहा कि क्या आप को ये नहीं दिख रहा है कि मेरे पास दो बच्चे है और वैसे भी शायद आप ये अच्छे कपडे पहन कर ये सोच रहें है कि आप हो गये एजुकेटेड हैं ।पर आप पहले अपने अन्दर की गन्दगी को साफ करिये ।और लगता है आप के यहाँ मां या बहन नहीं है इसी लिए ये संस्कार नहीं मिला है आप को। और मैं वैसे भी नहीं बठैती पर मेरे पास दो ब्च्चे हैं तो मै आपसे कह रही हूँ। अगर आप महिला है तो बैठिये?अब मामला गरम हो चुका था, ये देखते हुए पीछे बैठे एक महाशय ने अपनी सीट छोड़ कर महिला को बैठने का आग्रह किया ।पर महिला ने कहा कि देखती हूँ कि कैसे नहीं उठते हैं। तभी महिला सीट पर बैसे महाशय ने निर्लज्जता से कहा कि क्या आप मुझको थप्पड़ मारेगी? फिर तो महिला ने एकदम से उन महाशय को धो दिया और फिर वो महिला सही थी तो कुछ लोगों ने महिला का समर्थन किया और महिला सीट पर बैठे पुरूष को आखिर में उठना पड़ा ।और जब तक पुरूष महाशय यात्रा करे वो किसी से नजर नहीं मिला पायें और न जाने कहां पर उतर भी गयें । तो मेरा बस इतना कहना है कि यदि आप कभी महिला सीट पर बैठे तो जब कोई महिला आपके पास आकर खड़ी हो जाये तो आप बिना कुछ कहे ही सीट दें तो अच्छा होगा । क्योंकि हम खड़े हो कर जा सकते है पर महिलाओं को हमसे ज्यादा परेशानी होगी। इसलिए यहां पर शिष्टाचार का परिचय दें।
वैसे भी मेरा ये अनुभव रहा है कि जब हम अपने से बड़े लोगों के सामने सीट पर बैठे रहते तो कुछ अजीब सा लगता है क्योंकि हमारे संस्कार में ही बड़ो को सम्मान देना सिखाया जाता है।यही हमारी संस्कृति है परम्परा हैजिसपर हम गर्व करते है। तो भला कैसे हम ये बात भूल जाते हैं?

Thursday, October 4, 2007

फिर भी करता हूँ इंतजार


करता हूँ तेरा इंतजार आज भी,
उसी पीपल के पेड़ के नीचे,
जहां वादा किया था तुमने मिलने का।
मद्धम - मद्धम हवाओं से लहराती जुल्फों से
तुम्हारे चेहरे को परेशान करते कुछ बाल।
चिडियों की चहचहाहट ,
और
मेरा एक टक तुमको निहारना,
तुम्हारा पास की घास को बेवजह ही उखाडना,
और
फिर न जाने क्यूँ एक लम्बी सांस लेना,
फिर अनन्त आकाश की ओर दूर तक कुछ खोजना ,
न जाने क्या?
वैसे अक्सर तुम ही पहले आया करती थी मिलने के लिए मुझसे,
और
मैं तुम्हें तड़पाने के लिए कुछ देर बाद ही जाता था।
जबकि मैं खुद भी जानता था
इंतजार की लम्बी घडियों को,
जिसमें समय ठहर सा जाता है।
एक -एक पल बिताना ,
कितना मुश्किल हो जाता है,
कितना असहय हो जाता है,
पर फिर भी मैं शरारत करता था तुम्हारे साथ ।
जानबूझ कर गुस्सा दिलाता था तुमको,
मुझे अच्छा लगता था तुम्हारा गुस्सा होना।
तुम्हारा यूँ परेशान होना,
तब तुम रो भी देती थी,
और मैं इसी अदा पर मरता था तुमपे।
कितनी मसूमियत,
कितना भोलापन था तुम्हारे चेहरे में,
वही ढूढ़ता हूँ मैं हमेशा पर,
नहीं दिखता वैसा कोई,
इसी इंतजार में आज भी जाता हूँ,
उसी जगह पर जहां मिलते थे हम दोनों।
और करता हूँ घंटों तक कि शायद आओगी तुम?
पर नहीं आओगी तुम जानता हूँ
फिर भी दिल नहीं मानता हैं,
और
बार- बार देखता है तुम्हारी वो राह जिधर से आती थी तुम।।।।।।।

Wednesday, October 3, 2007

वोडाफोन भारत में


आर्थिक वैश्विकरण के दौडं में अधिग्रहण तथा विलय एक यथार्थ बन चुकी है, इस तर्ज एवं में वोडाफोन ने १२ फरवरी २००७ को हचिसन-एस्सर का अधिग्रहण कर भारतीय संचार क्षेत्र में अपना रास्ता प्रशस्त किया। हचिसन-एस्सार में हांगकांग की हचिसन टेलीकाम इन्टरनेशनल की ६७ प्रतिशत हिस्सेदारी थी।
वोडाफोन विश्व में अपनी पहुचं बनाने के बाद भारत में कदम सही समय पर रखा है । हचिसन के २;३६ करोड़ टेलीकाम उपभोक्ता के साथ ही १५ प्रतिशत टेलि घनत्व वाला भारत मिला अर्थात बाजार विस्तार की पर्याप्त सम्भावना है।यह अधिग्रहण विश्व के इस महारथी टेलीकाम कंपनी के लिए इसिए भी महत्व पूर्ण है कि भारत में २००८ से ऊर्जा की शुरूआत होने वाली है। मोबाइल, टी वी, वीडियो और आडियो डाउनलोड की ओर दुनिया भाग रही है, भारत भी पीछे नही हैं, इसका मतलब है कि वोडाफोन सोने की खान पर बैठा है।
अन्ततः विलय एवं अधिग्रहण की बिसात ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भूमंडलीकरण का कोई विकल्कप नहीं है और संदेश साफ है जो जीता नही सिकन्दर।

Tuesday, October 2, 2007

हमारे बापू जी और विश्न अहिंसा दिवस


बापू के १३८वें जन्मदिन पर शत शत नमन।
दो पग चले तो कारवां ही चल दिया। आज पूरा जगत प्रथम "विश्व अहिंसा दिवस" के रूप में मना रहा है २ अक्तूबर को। गांधी जी की विचार धार का प्रवाह समस्त मानव समाज में कण-२ में विद्यमान है। सत्य अहिंसा का जो हथियार गाधी जी ने दिया वह अदभुत था ।भारत में ब्रिटिश हुकूमत के विरूद्ध स्वतन्त्रता प्राप्ति आन्दोलन को चरम सीमा पर लाने में गाधी जी का योगदान महत्तवपूर्ण था।
गांधी जी को सारा देश बापू के नाम से पुकार करता था । भाईचारा और देशप्रेम के संदेश को जन-जन तक पहुचा पाना सम्भव नहीं था पर बापू के अथक प्रयासो से यह सम्भव हो सका । डाण्डी मार्च या फिर असहयोग आन्दोलन आदि में गाधी जी ने सम्पूर्ण भारत को एकता के सूत्र में पिरो कर सम्पूर्ण शक्ति को एकत्रित कर यह दिखाया कि हम अलग जाति ,धर्म एवं समप्रदाय के भले ही है। परन्तु हम सब भारतवासी है उसके बाद कुछ और । अनेक आन्दोलनों के दौरान जेल जाना पडा था बापू को। और अपनी जिद और भूख हडताल से ब्रिटिश शासन को झकझोर दिया था। और अन्तत बापू ने " अग्रेजो भारत छोडो" के साथ भारत की आजादी के द्वार को खोल दिया। बापू का एक और सम्बोधन था "महात्मा" का। यह सम्बोधन रवीन्द्र नाथ टैगोर ने दिया था।
एक ऐसा व्यक्तित्व इस दुनिया में आया था जिसने न धर्म, न जाति , न सम्प्रदाय और न रंगभेद, न क्षेत्रियता बल्कि मानवता का पाठ सम्पूर्ण विश्व को पढाया । एक बार गांधी जी को साउथ अफ्रीका में रंगभेद को लेकर ट्रेन में चढ़ने नहीं दिया गया। तब उस समय गांधी जी वकालत कर रहे थे।तभी से गांधी जी समाज में व्याप्त बुराईयों केखिलाफ लड़ने संकल्प किया।
आज हम सभी ने बापू के विचारों से भटक गये । सत्य और अहिंसा के रास्ते को छोड़ असत्य और हिंसा के रास्ते का रास्ता पकड कर चल रहें हैं। न भाई चारा और न बन्धुत्व कुछ भी देखने को नहीं मिल रहा है , सब कुछ स्वार्थ पर आकर खत्म हो चुका है। निर्धन असहाय को शोषित किया जा रहा है ।
भष्टाचार अपने चरम सीमा पर है , किसी को कोसी से कोई मतलब नहीं । सब स्वहित के भावना से प्रेरित है। यदि आप हम इसी तरह के कार्य में लिप्त होकर बापू को याद करते है तो यह धोखा देना है स्वयं को। अगर बापू को याद करना है तो उनके दिखाये सत्य मार्ग का पालन करो। मानवता को मत भूलो।
२अक्तूबर को हम पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के जन्मदिन भी मनाते है। परन्तु एक दुखद बात यहहैकि सारा देश शास्त्री को उपेक्षित करता है ।

Monday, October 1, 2007

रामू की सोच

एक दिन सोचा रामू ने,
मैं भी पंक्षी होता।
पंख कोलकर दूर गगन में,
मैं भी उडता होता।।

जहां चाहता वहाँ को जाता ,
उडता झूम-झूम कर।
नदी,पहाड,समुद्र और झीलें,
देखता घूम-घूमकर।।

फिर मैं देखता पंख मोर के,
कितने होते हैं।
शेर ,हिरन,भालू जंगल में ,
कहां-कहां सोते हैं।।

बागों में जाकर फल,
अच्छे-अच्छे खाता ।
और शाम होते ही वापस,
घर को आता।।

लेखक-
शशि श्रीवास्तव
मो- ९९६८१५१४०५
email-para_shashi@yahoo.com