जन संदेश

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Wednesday, February 25, 2009

"खामोश रात में दस्तक देती है तुम्हारी यादें"

खामोश रात में तुम्हारी यादें,
हल्की सी आहट के साथ ,
दस्तक देती हैं,
बंद आखों से देखता हूँ,
तुमको,
इंतजार करते-करते परेशान,
नहीं होता हूँ अब,
आदत हो गयी है तुमको,
देर से आने की,
कितनी बार तो शिकायत की थी,
तुमसे ही,
पर
क्या तुमने किसी बात पर गौर किया?
नहीं ना,
आखिर मैं क्यों तुमसे इतनी,
उम्मीद करता हूँ?
क्यों मैं विश्वास करता हूँ?
तुम पर
जान पाता कुछ भी नहीं,
पर ,
तुमसे ही सारी उम्मीदें जुड़ी हुई हैं,
तन्हाई में,
उदासी में,
जीवन के हर पल में,
खामोश दस्तक के साथ,
आती हैं तुम्हारी यादें,
महसूस करता हूँ-
तुम्हारी खुशबू को,
तुम्हारे एहसास को,
तुम्हारे दिल की धड़कन का बढ़ना,
और
तुम्हारे चेहरे की शर्मीली लालिमा को,
महसूस करता हूँ-
तुम्हारा स्पर्श,
तुम्हारी गर्म सांसे,
उस पर तुम्हारी खामोश
और आगोश में करने वाली मद्धम-मद्धम,
बायर को,
खामोश रात में बंद पलकों से,
इंतजार करता हूँ,
तुम्हारी इन यादों का............

जैसे इन सब को पता है कि..............................................तुम आ चुकी हो,

हवाओं में प्यार की खुशबू,
बिखरी हुई है ,
फिजाएं भी महकी,
हुई है,
खामोश रातें रौशन ,
हुई हैं,
चांदनी भी चंचल ,
हुई है ,
बूदें जैसे मोती,
हुई हैं,
सूरज की किरणें चमकीली
हुई हैं,
बागों की कलियां खिल सी ,
गयी हैं,
अम्बर से घटाएं ,
बहने लगी हैं,
मिट्टी की खुशबू,
फैली हुई हैं, चारो तरफ
जैसे इन सब को पता है कि-
तुम आ चुकी हो,
वापस आ चुकी हो।।

Tuesday, February 24, 2009

ब्लाग पर आपत्तिजनक बाते, तो दर्ज होगा केस........

ब्लागर्स हर मुद्दे पर अपनी दबी हुई आवाज, भावानाओं का इजहार ब्लाग पर नहीं कर सकते हैं।सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, ब्लाग पर मौजूद सामाग्री के लिए ब्लागरखुद ही जिम्मेदार है।और इसके लिये उसे मुकदमें का सामना करना पढ सकता है । यानी किसी मुद्दे पर ब्लाग शुरू करके दूसरों को उस पर मनचाहे और अनाप-शनाप कमेंट पोस्ट करने के लिए बुलाना अब खतरनाक है ।


चीफ जस्टिस के.जी.बालाकृष्णन और जस्टिस पी सतशिवम की पीठ ने कहा कि ब्लाग पर कमेंट भेजने वाला जिम्मेदार है,यह कहकर ब्लागर बच नहीं सकता है। ये बातें केरल के १९ साल के कंप्यूटर सांइस के स्टूडेंट ठर ब्लागर अजीत से जुड़े केस में कही। मामला था सोशल साइट पर शिव सेना के खिलाफ एक कम्युनिटी शुरू करना। इसमें पोस्ट पर कई लोगों की पोस्ट और कई चर्चाएं थी, जिसमें सिवसेना पर धर्म के आधार पर देश को बांटने का आरोप लगाया गया था। इस पर शिवसेना की ओर से दाखिल शिकायत की गई।


इसलिए सभी ब्लागर इस चीज को समझ ले कि आपके ब्लाग पर कुछ भी अनौपचारिक न हो अन्यथा कानूनी दांच पेंच में पड़ना पड़ सकता है ।

तुम ही कहो मैं क्या करूँ ? ये मेरे दिलनसीं

एक अहसास ,
एक विश्वास,
टूट रहा है,
साथ तुम्हारा छूट रहा है।
एक भरोसा ,
एक उम्मीद ,
जो दी थी तुमने,
वो तो धूमिल हो चली।
करूँ मैं क्या ?
ये मेरे दिलनसीं।
" रोशन दिये बुझने को है,
मंजिल से रास्ते छूटने को है,
हौसला अब टूटने को है,
सांसे अब थमने को है,
जिंदगी हमसे रूठने को है"
तुम ही कहो मैं क्या करूँ ?
ये मेरे दिलनसीं।।

भारत में १९६ भाषाएं लुप्त होने के कगार पर .............................बचाव कैसे?

आज दुनिया की अनेक भाषाएं लुप्त होने के कगार पर हैं। उन्हें बोलने वालोंकी संख्या में दिन ब दिन कमी आयी है ।यूनेस्को की ताजा जारी खबर के अनुसार विश्व में लगभग ६००० भाषाएं है , जिसमें से २५०० पर लुप्त होने का खतरा मडरा रहा है । भारत में १९६ बोलियों पर संकट है लुप्त होने का । जबकि उसके बाद अमेरिका है दूसरे नं पर जहां लगभग १९२ भाषाएं लुप्त होने की कगार पर हैं। विश्व में १९९ भाषाएं ऐसी है जिन्हें १० लोगो से भी कम बोलते हैं।
भाषा के खत्में से संस्कृति पर भी खतरा आयेगा जो कि एक विशिष्ट पहचान होती है । तो क्या दुनिया से विविधता समाप्त हो जायेगी ? और संसार एकरंगी हो जायेगा । भाषाओं के कमजोर होने का मामला गहराता रहा है । दरअसल भाषा का संबध विकास से है । जो समुदाय जितना विकसित हुआ उसकी भाषा भी उतनी ही विकसित हुई।और ताकतवर भाषा ने छोटी भाषाओं को अपने धार में बहा ले चली ।
भाषा के जरिये व्यक्ति अपना परिवेश से रिश्ता कायम रखता है । जब भाषा का स्तर वृहत न होकर कम हो जाता है । तो व्यक्ति मजबूत भाषा को अपनाता है। और फिर हम अपनी जुबान बदल लेते हैं।भूमंडलीकरण ने भूगोल की सारी दिवारें तोड़ दी । हर किसी को एक भाषा अपनानी पडी। आज रोजगार के लिए,व्यापार और तकनीक के लिए एक ही भाषा है वह है अंग्रेजी । ऐसे भारत जैसे देश पर भी भाषा का संकट है । यह दुर्भाग्यपूर्ण है पर सच्चाई यही है ।

Monday, February 23, 2009

रिश्ते की ताजगी न रही............................तुममें वो सादगी न रही,

रिश्ते की ताजगी,
न रही,
तुममें वो सादगी,
न रही,
कहती हो प्यार,
मुझसे है,
पर
ये बातें सच्ची न लगी,
तुम कहती थी,
तो
मैं सुनता था,
तुम रूठती थी,
तो
मै मनाता था,
तुम चिढ़ती थी,
तो
मैं चिढ़ाता था,
तुम जीतती थी,
तो
मैं हार जाता था,
ये सब अच्छा लगता था,
मुझे
वक्त ने करवट ली,
मैं भी हूँ,
तुम भी हो,
साथ ही साथ हैंं,
पर
वो प्यार न रहा,
वो बातें न रही,
तुम कहती हो कि-
मैं बदल गया,
शायद हां- मैं ही बदल गया।
क्योंकि
तुम्हारा जीतना,
तुम्हारा हसना,
तुम्हारा मुस्कुराना,
अच्छा लगता है अब भी,
चाहे मुझे हारना ही क्यों न पड़े ।।

बनके खुशबू गुलशन को मेरे महकाती

बनके खुशबू गुलशन को मेरे महकाती ,
ख्वाबों में आकर ,जिंदगी तुम रंग जाती,
करती न बात कोई, बस यूँ ही मुस्काती।
अटखेलियों में गुजरता वक्त, जब तुम आती।।
मन्नतों में मांगता ,क्या खुदा से साथी,
बंद आखें करता तो ,तुम ही नजर आती ,
इश्क के साये से क्यों तुम दूर जाती ,
पा जाता तुमको , किस्मत गर ठहर जाती।।

Sunday, February 22, 2009

जिसका मुझे था इंतजार, जिसके लिये था दिल बेकरार , वो घड़ी आ गयी............आखिर जीत ही लिया आस्कर


जिसका मुझे था इंतजार, जिसके लिये था दिल बेकरार , वो घड़ी आ गयी ये गाना अपने आप ही जुबान पर आ गया । स्लमडाग ने वो कर दिखाया जो अब तक कोई भारतीय फिल्म ने नहीं किया । वैसे लगान , देवदास जैसी फिल्मों ने आस्कर पाने दौड़ में शामिल जरूर रही थी । पर अन्तत मायूसी ही हाथ लगी ।
स्लमडाग ने ६ पुरस्कार जीता है । और रहमान के "जय हो" को सभी ने खूब सराहा है । बेस्ट ओरजीनल कम्पोजिशन के लिए रहमान को आस्कर मिला है। साथ ही एक बड़ी कामयाबी यह भी रही कि "पिंकी "को सर्वश्रेष्ठ डाक्यूमेट्री के लिए चुना गया है । आज भारत की धूम है । हमारे लिए यह दिन खास है । ऐतिहासिक दिन में खूब मजे करें और सुने " जय हो"।

"आज तुम फिर खफा हो मुझसे"""""""जानता हूँ मैं,


आज तुम फिर खफा हो मुझसे,
जानता हूँ मैं,
न मनाऊगा तुमको,
इस बार मैं।
तुम्हारा उदास चेहरा,
जिस पर झूठी हसी लिये,
चुप हो तुम,
घूमकर दूर बैठी,
सर को झुकाये,
बातों को सुनती,
पर अनसुना करती तुम,
ये अदायें पहचानता हूँ मैं,
आज तुम फिर खफा हो मुझसे,
जानता हूँ मैं।
नर्म आखों में जलन क्यों है?
सुर्ख होठों पे शिकन क्यों है?
चेहरे पे तपन क्यों है?
कहती जो एक बार मुझसे,
तुम कुछ भी,
मानता मै,
लेकिन बिन बताये क्यों?
आज तुम फिर खफा हो मुझसे,
जानता हूँ मै।।

Saturday, February 21, 2009

एक बार देखी जा सकती है दिल्ली-६


दिल्ली-६ फिल्म देखने के पहले बहुत ही उत्सुकता थी । राकेश ओम प्रकाश मेहरा की ये फिल्म प्रदर्शित होने से पहले बहुप्रचारित की गयी। फिल्म में पुरानी दिल्ली की गलियों को छानमारा गया है । फिल्म में कहानी के नाम पर तो कुछ खास नहीं है । जिससे पहले हाफ में फिल्म दर्शकों को बंधाने में असफल रहती है । लेकिन दूसरे हाफ में मेहरा साहब अच्छी वापस करते हैं और फिल्म को कुछ रोमांचक बनाने में सफल हो पाते हैं। दूसरे हाफ में फिल्म को हिन्दू मुस्लिम दंगों की पृष्ठभूमि से जोडते हैं। और अन्तत फिल्म का सुखद अन्त होता है ।
अभिनय के मामले में अभिषेक बच्चन के मुकाबले सोनम कपूर ज्यादा बेहतर नजर आती है । बाकी दिव्या दत्ता , विजय राज और कुलकर्णी के साथ साथ प्रेम चोपडा और ओमपुरी ने भी बढिया अभिनय किया है। फिल्म की पटकथा खास न होते हुए भी फिल्म अपने गानों के दम पर पैसा वसूल सकती है । ए.आर.रहमान का संगीत लाजवाब है । फिल्म में ससुराल गेंदाफूल............., और मसकली, और रैना , ये सभी गाने पहले ही हिट हो चुके हैं।
फिल्म को एक बार देखने में ज्यादा परेशानी न होगी । और साथ ही पुरानी दिल्ली सिल्वर स्क्रीन पर कैसे जचती है ।

Friday, February 20, 2009

प्रिये...............आजकल तुम नहीं आती हो.......मेरे ख्यालों में,

प्रिये,
आजकल तुम नहीं आती हो,
मेरे ख्यालों में,
अकेलापन अच्छा नहीं लगता,
ये जानती हो तुम,
कमरे के अंधेरे में,
आंखें ढूढती है तुमको,
एक आस लिये,
कि शायद आज आओगी,
पर
तुम नहीं आती हो,
एक उम्मीद लिये सोता हूँ मैं,
कि शायद आज आओ,
पर नहीं आयी तुम,
मेरे कमरे का वातावरण,
बार-बार तुम्हारी याद दिला ,
रहा है ,
खुद में महसूस कर रहा हूँ
तुम्हारी खुशबू को,
बंद आंखे दिखा रही हैं,
तुम्हारा चंचल यौवन ,
और
स्वछंद मन को,
चेहरे पर बिखरी मुस्कान को,
चांदनी को देख ,
ऐसा लगता है मानों तुम्हारा नूर हो,
तुम ही उतर आयी हो ,
प्रकृति के गोद में,
खामोश हूँ- सोचता हूँ तुमको,
कि शायद आज आ जाओ?
बहुत दिन बीत गये हैं,
मुझे सोये हुए,
आज सो रहा हूँ ,
यही सोच कर की शायद
तुम आओगी,
तुम आओगी प्रिये।

Thursday, February 19, 2009

अध्यक्ष जी का श्राप- वे सब हार जायें चुनाव

शांत हो जाइये , प्लीज आप लोग शांत हो जाइये । पर कौन सुनता है लोकसभा अध्यक्ष की ये बात। टीडीपी के येर्रन नायडू आंध्र प्रदेश के मुद्दे पर खड़े थे। तो शोरगुल में पीएमके के ए.के.मूर्ति और कुछ अन्य सदस्य स्पीकर के सामने पहुँच गये।साथ ही बीएसपी के संसद एसटी,एससी मामले परनारेबाजी करने लगे। इसी व्यवहार पर अध्यक्ष जी नाराज हो गये । और कहा कि -"वे चुनाव हार जायें । जनता अपना फैसला सुनाएगी और सिखायेगी । जनता आप लोगों को देख रही है" ।
अध्यक्ष जी का श्राप - (उत्तेजित सदस्यों पर) जनता के धन में से आप लोगों को एक पैस भी नहीं मिलना चाहिए। सदन को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया जाना चाहिए , ताकि आप जैसे लोगों पर जनता के धन के दुरपयोग को रोका जा सके । सबका व्यवहार निंदनीय है । आपको कड़ा सब सिखाया जाना चाहिए। उम्मीद है , देश की जनता आपको पहचानेगी और आने वाले चुनावों में' सही फैसला' करेगी ।
चाहे उत्तर प्रदेश विधान सभा हो या फिर आंध्र प्रदेश पर सदन में जो कुछ भी हुआ वह संविधानिक गरिमा के खिलाफ है । राज्यपाल पर कागज के गेंद बनाके फेंकना। या फिर स्पीकर के सामने जाकर प्रदर्शन करना । यह हमारी संसदीय पंरपरा के विरूद्ध है । और यदि लोकसभा अध्यक्ष ने ऐसा कहा तो वह बिल्कुल उचित है । संसदों को कोई मान मर्यादा की कोई परवाह ही नहीं । लोकतंत्रीय प्रणाली का दुरपयोग है पूरी पूरी तरह से । पर इस प्रजातंत्र में जाने क्या-क्या हो जाये वो भी कम है ।

बिन दुल्हन लौटे दूल्हे राजा ......पूनम जैसी लड़की पर है गर्व

कोई हवा में ले रहा है फेरा ,तो कोई लौट रहा है बिना दुल्हन के। बिहार के पटना की घटना है । शादी के लिए बारात धूम धाम से निकलती है । सभी लोगों तो एकाएक तब झटका लगता है । जब पूनम ने मंडप में शादी से इनकार कर दिया । हुआ कुछ यूँ कि दुल्हा मंडप से किसी कारण उठा और लडखडा गया । पूनम को आभास हुआ कि लड़के ने शराब पी हुई है । तुरंत ही पूनम मंडप से चली गयी और शादी के लिए न बोल दिया । दोनों तरफ से पूनम को लोगों बहुत समझाया और दबाव भी डाला पर पूनम ने किसी की एक भी न सुनी । और पुलिस का सहारा लिया । तब जाकर मामला शांत हुआ । बिन दुल्हन दूल्हे राजा नशे में बैरंग वापस आ गये ।
ये किस्से हंसी - मजाक से लगते हैं । पर यहां पूनम ने जो किया सही किया । ऐसे फैसले कुछ परेशानी जरूर पैदा करते है वर्तमान में । परन्तु भविष्य के लिए अच्छे होते हैं । सहनशीलता या फिर डर के मारे , या समाज में बदनामी को यदि पूनम ध्यान देती तो वह शायद कभी खुश न रह पाती । परिस्थिति से समझौता न करके एक सही कदम उठाया पूनम ने । और एक मिसाल भी दी कि शराब का शबाब कैसे उतरा जाता है । जोर का झटका धीरे से दिया । इसलिए शादी ब्याह में इसका खास ख्याल रखें । अन्यथा जो शराब के दीवाने हैं उनकी थू थू हो सकती है ।

Wednesday, February 18, 2009

ये राजनीति है सब चलता है।


ये है असली राजनीति । मुलायम सिंह ने भी अपने चुनावी राग अलापने शुरू कर दिये हैं। कांग्रेस से गठबंधन को लेकर कुछ मतभेद होने पर भाजपा से गठजोड़ होने का इशारा किया है ,पर शर्त रखी है कि भाजपा अपना हिन्दुवादी विचार धारा को बदल ले। पर यह सभंव नही है । हिन्दुत्ववादी ढ़ाचे पर तो भाजपा टिकी हुई है यदि यही विचारधारा बदल लेगी तो उसके पास बचेगा क्या? वैसे सपा सुप्रीमो ने शरद का दामन पकड़ कर दोनों एक दूसरे के प्रधानमंत्री पद के दावेदारी को मजबूत किया है । सपा को बहन मायावती से सबसे ज्यादा चिंता है ।


उत्तर प्देश में मायावती और मुलायम सिंह में जबददस्त चुनावी जंग शुरूहो चुकी है । मुलायम ने भाजपा से कल्याण को सपा में बुलाकर नया गेम खेला पर यह दाव कुछ उल्टा ही पड़ता दिख रहा है । जहं कल्याण के सपा में आने से लोध और कुर्मी तबका सपा की तरफ आयेगा । वही मुसलमान के वोट गवाने पड़गें ।


काग्रेस और भाजपा का कोई खास प्रभाव नहीं दिख रहा है । चुनावी तालमेल से ही कुछ सीटें मिल सकती है पर । काग्रेस के लिए २५ और १५ में मामला गहराता जा रहा है । कौन किसेके साथ जायेगा ये तो पता नहीं । पर विचार और विचार धारा सब अभी गठजोड पर ही लगी है , कि कैसे चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीट हासिल कर संसद पहुँचा जाये । येये राजनीति है सब चलता है ।ा

"अब कुछ बदले- बदले से हैं हम".............................कहती हैं वो,

अब कुछ बदले- बदले से हैं हम,
कहती हैं वो,
पहले जैसे अब न रहे हम,
कहती है वो,
पूछती है हाल मेरा मुझसे ही,
हंसके कह देता हूँ मैं भी,
खुश-हाल हैं हम।
आंखें नम हो जाती हैं,
बातों बातों में,
फिर
वो भी चुप हो जाती है,
एक हिचकी उभर आती है,
कहती है वो-
क्यों दूरियां बढ़ती गयी,
कुछ बातों से,
क्यों कभी याद आती है ,
रातों में,
हम पहले जैसे हो जायें ,
तो अच्छा होता ,
मैं सुनता चपुचाप ,
कहती है जो भी,
पर
अब ये मुमकिन नहीं,
बस होती रहे बात यूँ ही।
साथ था जितना ,
वो मिलता रहे सदा ,
हों दूर या पास ,
न रहे इसका गिला ।।

Tuesday, February 17, 2009

राजू का हास्य अब चुनावी अखाडे में


कांग्रेस ने इस बार और पार्टियों की ही तरह इलाहाबाद से हो सकता है, कि राजू भैया को चुनाव में उतारे। ऐसे लोगों का चुनाव में आना मतलब चुनाव सभाओं में हास्य का अच्छा दृश्य देखने को मिलेगा। इस बार कांग्रेस ने युवाओं को ज्यादा प्राथमिकता देने की बात कहीं है । इसी तरह इसके पहले अमिताभ जी इलाहाबद से चुनाव लड़ चुके हैं। इस बार राज बब्बर सपा के साथ न होगें पर जया प्रदा जी को साथ ले लिया है । लखनऊ से संजय दत्त को टिकट देने की बात पहले ही हो चुकी है।

इस तरह से चाहे फिल्म एक्टर हो या फिर क्रिकेटर हो या हास्य से जुड़ा कलाकार पर टिकट उसी को दिया जायेगा जो जीत सके। और इस बात से यह भी बात साफ हो जाती है कि इस बार की राजनीति नेता , बाहुबली से लेकर अभीनेता तक है ।

अाने वाले दिनों में सारी बातें साफ हो जायेगी । कि कौन किसे कितना फायदा देने वाला है । चाहे वो राजू हों या फि संजू बाबा ।

" सेक्स एजुकेशन " भारत में फिलहाल नहीं , एल्फी और चैटिल ने बढ़ाई सामाजिक समस्या ...........

बाप बनना किसी के लिए एक सुखद अनुभूति देता है । १३ साल का एल्फी और १५ साल की चैंटिल स्टीडमैन भले ही ब्रिटेन के हैं । लेकिन आज दुनिया उनको जानती है । और इसका कारण है कि इतनी कम उम्र में उनका माता- पिता बनना । कम उम्र में गर्भधारण करने से मौत या फिर नजायज संतानें । दुनिया भर में यह समस्या व्याप्त है ।
जहां एक तरफ गरीबी वहीं विकासशील देशों में बाल विवाह और सस्ते सेक्स सम्बंध ही इसकी प्रमुख वजह है । अगर सेक्स एजुकेशन की बात की जाय तो यहां पर लोगों की दूरी करेले पर नीम चढ़ाने जैसा है । जबकि विकसित देशों में सेक्स एजुकेशन है । पर वहां टूटे परिवार और विवाह संस्था के खत्म होने से यह समस्याएं होती हैं।
भारतीय परिदृश्य में इतनी कम उम्र में मां-बाप बनना समाज के लिए कंलक है । यहां पर हम कमजोर हो रहे हैं । हमें विवाह संस्था को और मजबूत करना होगा । और साथ ही साथ बच्चों का ख्याल रखना होगा । जिससे वे सही और गलत का फर्क समझ सकें ।
एल्फी और चैंटिल ने दुनिया को झकझोरा है । तमाम मंच पर यह बात हो रही है कि स्कूली स्तर पर सेक्स शिक्षा दी जाय ।परन्तु भारत जैसे देश में यह बात मुमकिन नहीं लगती । जबकि बच्चों को शारीरिक विकास और शरीर के बारे में सारी जानकारी दी जानी चाहिए । इस तरह की घटनाएं समाज के लिए हानिकारक है साथ ही साथ हम सभी के लिए भी।

Monday, February 16, 2009

" चेंज एंड चालान "पर धूम स्टाइल करती ' दिल्ली पुलिस "


यातायात नियम तोड़ने वाले हो जाओ सावधान क्योंकि अब ट्रैफिक पुलिस का स्टाइल 'धूम" फिल्म के रितिक रोशन और जान इब्राहम जैसा हो चला है । कल ट्रैफिक पुलिस के बेडे में २०० और नई बाइक शामिल की गयी । जिसके चलते अब उन लोगों को परेशानी हो सकती है । जो ट्रैफिक नियम का कोई खास ध्यान नहीं रखते हैं । पल्सर बाइक के अलावा ट्रैफिक पुलिस के बेडे में ५० नई मल्टी पीसीआर वैन को भी शामिल किया गया है ।

लोगों का मानना है कि ट्रैफिक पुलिस छुपकर चालान काटती है। जिसके चलते पिछले साल २१० नयी बाइक को लाकर " चेंज एंड चालान " का नया तरीका अपनाया गया। इसके तहत ट्रैफिक पुलिस के जवान नियम तोड़ने वाले बाइक का पीछा करके उनका चालान काटते हैं। इसलिए अब यह गुजारिश है कि यातायात नियमों का पालन करें ।
अन्यथा आपके पीछे धूम बाइक में पुलिस जी आ धमकेगें ।

तेज रफ्तार से अब न बच सकोगें इसलिए करें नियम का पालन और बचें खुद । साथ ही दूसरों को भी ।

Sunday, February 15, 2009

इलेक्ट्रानिक मीडिया के प्रलोभन पर न करें विश्वास , नये पत्रकारों का हो रहा है शोषण...............

मीडिया समूह द्वारा मेरे दोस्त को प्रलोभन दे कर ट्रेनी के तौर पर रखा गया । कुछ महीने का वादा कर आईसीएल मैच तक खूब का कराया गया । मैच खत्म होते ही उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया । साथ ही साथ कुछ स्थाई तौर पर काम कर रहे लोगों को भी नौकरी से हाथ धोना पड़ा । जवाब मिला की आर्थिक कारणों से आपको निकाला जा रहा है ।
कोई ऐसा पहली बार नहीं हुआ है । इस तरह से मीडिया समूह नये पत्रकारों का शोषण करते रहते हैं । बिना पैसे दिये हुए काम लेना फिर लात मारकर निकाल देना । और इसके बाद वह व्यक्ति सिवाय अफसोस के और कुछ भी नहीं कर सकता है ।
जाब पाना वो भी इलेक्ट्रानिक मीडिया में समंदर से मीठा पानी निकालने जैसा ही है । आपके पास जुगाड हो तभी आपको प्रवेश मिल सकता है वरना मुश्किल है । काबिलितय को एक तरफ और जुगाड एक तरफ ये दोनों आप के पास होना चाहिए तभी सम्भव है कि आप टीवी पर आने का सपना साकार कर पायें।
आर्थिक मंदी का दिखावा कर ये मीडिया जगत सरकार को उल्लू बना रही है । नयी नौकरी का अकाल सा पड़ गया है । कई ऐसे लोगों को सड़क पर आना पड़ गया जो कई साल से संस्थान से जुड़े हुए थे । सवाल पैसे का है और कुछ भी नहीं । लोगों को चाहे कोई भी परेशानी क्यों न हो ? साथ ही उस पोस्ट के लिए कम पैसे में काम करने के लिए लोगों को एक अच्छी लाइन मौजूद है पहले से ही ।

कल मेरी शादी नहीं हुई, और शायद अब आप लोग जरूर आमंत्रित होगे शादी में ?


काश मेरा सपना सच हो जाता तो मैं आप लोगों को लड्डू जरूर खिलाता पर कांच की दीवार के लिए हवा का एक झोंका ही बहुत होता है । कल का दिन कैसे गुजरा ये तो मेरा दिल जानता है । मैंने शादी की उम्मीद लिये गली कूचे , बाग बगीचे घूमता रहा पर वो न मिले जिसकी तलाश थी । शादी कराने का झूठा नाटक था इस संगठन का । मैने तो सोचा क्या था और क्या हुआ । पर ठीक है इस बार न सही कभी न कभी तो शादी होगी ही और आप सब जरूर आयेंगे तो और भी अच्छा रहेगा । शहनाई न होगी तो कम से कम ढोल और बाजा तो बजेगा ही ।
प्यार का दिन गुजरा । कुल मिलाकर बेकार ही रहा जेब पर ऐसा चूना लगा कि यह महीना तो अब जल्दी बीत जाये बस यही सोचता हूँ । जब लडकी साथ हो किसी लड़के के साथ तो वह भला कैसे कुछ खर्च कर सकती है । वरना हमारी परम्परा न बदल जायेगी । किराया , पिज्जा हट से लेकर रिचार्ज कूपन का ऐसा तगड़ा झटका लगा कि अभी भी सोचता हूँ तो बस यही बात आथी है मेरे दिमाग में कल काश मैं वेलेटाइन न मना पाता । इसलिए जो दोस्त या भाई बच गये वो बहुत ही भाग्यशाली और खुशकिस्मत थे । ऐसा अब में कह सकता हूँ । जो फूल १० रूपये में मिलता है रोज उसका भाव कल के दिन ५ गुना था । वो मरीजों जैसा मुह बनाये हुए गुलाब की कीमत। अगर खिलखिलाता हुआ लेना होता तो आज मैं कैफे में आकर ये सब बात लिख भी न पाता । बस एक ही कहावत याद आ रही है - " जान बची लाखों पाये "।
झूठ पर दुनिया है ,पब्लिकसिटी है । कुछ भी कह दो और कुछ भी न करो यही राग अलापो तो ठीक है ।वरना सच तो बस सच ही है ।

Friday, February 13, 2009

.........वो आयेंगे जरूर.........

रात बीती प्यार में उनके,
खामोश जुबान को ,
धड़कते दिल को,
एक आश थी,
पर
वो नहीं आये ,
और
न ही आया कोई
पैगाम उनका ,
वक्त गुजरा है बस ,
उनके इंतजार में ।
कहने की हसरत लिए,
चेखने की चाहत लिए,
देखता उन गलियों को,
बार-बार में,
जिस पर आना था उनको,
पर वो नहीं आये ,
अब बहकने लगी है आरजू,
सब्र का दायरा टूटता है ,
उम्मीद का दामन छूटता है,
विश्वास की डोर कमजोर होती है ,
फिर भी न जाने क्यों?
दिल में एक आश है कि-
वो आयेगें जरूर ।
वादा किया है आने का ,
साथ निभाने का ,
कुछ दूरियां है अभी,
कुछ मजबूरियां है अभी,
उनकी,
ये पल वो साथ
नहीं तो क्या ?
दिल में विश्वास है ऊनका कि-
वो आयेंगे जरूर,
साथ निभायेंगे जरूर ।।

कल हमारी शादी हो सकती है ? पर आप आमंत्रित नहीं होगें शायद ?


कल हो सकता है कि मेरी शादी हो जाये । क्यों कि कल वेलेटाइन डे जो है । इसलिए आप सब चकित न होइएगा।एक संगठन ने हमारी समस्या का समाधान कर दिया है । कल डेट पर जाना ही है और लगे हाथ शादी भी होने का आफर है वो भी रजिस्टर्ड । को क्या कर लेगा जो एक बार शादी हो गई तो । चलो अच्छा ही है इस बार का वेलेटाइन डे ।बिना खर्च ही सब कुछ निबट जाये । काश कल कैमरे और पुरोहित जी कि नजर हम पर जरूर पडे। मैं खुश हूँ और आप भी हमारी खुशी में शरीक हो सकते हैं पर कल ।
आधुनिक भारत में प्यार और फिर शादी बहुत कम ही देखने को मिलता है पर अब यह सब कुछ बहुत आसान लग रहा है । इस बार न लाठी और न ही लात घूसे बल्कि फूलों की माला से मनायेगें प्यार का दिन " वेलेटाइन डे "।अच्छे आफर की तलाश में सभी होते हैं पर मैं जितना खुश हूँ शायद ही कोई खुश होगा । मां को बहू , मूझे बीबी परिवार एकदम भरापूरा हो जायेगा ।
कैमरा कहां मिल जाये बस वही जगह तलाशेगें । अपनी दोस्त जो कि बीबी हो सकती है को यही बात मालूम हो जाये तो शायद वि न या फिर कोई बहाना कर दे । लेकिन जब बिन बताये यह सब होगा तो क्या बात होगी ?कितना मजा आयेगा इस नयी रस्म में । दहेज प्रथा और फिजूलखर्ची दोनों का निदान दिखता है बार वेलेटाइन डे में। मैं तो ऐसे अभियान चलाने वालों के साथ हूँ जो प्यार को रिश्ते की पायदान तक ले जा रहें हैं । हां बस दुख यही होगा कि साहस देने वाले बराती साथ न होगें और ये गाना न बजेगा " कि आज मेरे यार कि शादी है " ।
कुछ मिलेगा यही सोच कम का प्लान बनाया है । अब क्या किसी भाई कि कृपा होती है हम या नहीं ? देखते है कल । कुछ हो या न हो प्यार तो होगा ही । इजहार और इनकार के बीच हमारा प्रेम दिवस यानी वेलेटाइन डे पर आप फूले फले ऐसी हमारी कामना है ।

Wednesday, February 11, 2009

दूध के धुले वो भी नहीं , तो फिर क्यों उछालते है कीचड । मीडिया रेग्युलेटरी पर आपकी क्या है राय?

मीडिया रेग्युलेटरी को लेकर पत्रकारों ने जंतर मंतर पर मार्च करके इसके खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया । भारत में वैसे तो मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है । पर इस स्तम्भ को कमजोर करने के लिए सरकार के द्वारा जो प्रयास किये जा रहे हैं वो निंदनीय है ।लोकतंत्र के और तीनों स्तम्भ को देखा जाय तो यह चौथा और आखिरी पाया बहुत ही मजबूती से अपना कार्य कर रहा है । अन्य तीनों पायों के तुलनात्मकता के हिसाब से यह पाया अभी भी बहुत हद तक सही दिशा में कार्य कर रहा है । मीडिया पर हमेशा ही यह आरोप आता रहा है कि वह अपनी मर्यादा से बाहर काम करती है । जो मुद्दे नहीं दिखाने चाहिए उसे भी बहुत ही मसाले दार तरीके से दिखाया जाता है । पर यहां पर मीडिया अपनी बात बहुत ही बेबाकी से कहती है कि " हम वही दिखाते हैं जो समाज में हो रहा है । और लोग वही देखना भी चाहते हैं। " पर कुछ जगह पर मीडिया अपनी आचार संघिता का उल्लघन भी करती है । पर इसका यह मतलब तो नहीं कि इसे प्रतिबंधित किया जाय ।
भारतीय संविधान की धारा १९ ए में स्वातंत्रता और अपनी बात को कहने का अधिकार देती है और दूसरी तरफ इस कानून के विपरीत नया प्रावधान लागू करके दायरे को सीमित करना चाहती है । यह बात बहुत ही निराशा पूर्ण है । मीडिया का अर्थ मात्र प्रिंट और इलेक्ट्रानिक न होकर फिल्म , एडवर्टाइज, एवं अन्य विधाओं से भी होना चाहिए ।क्यों कि समाज का स्वरूप हमें मीडिया के हर हिस्से से मिलता है न कि केवलम समाचार से ही । यहां यह बात साफ करनी होगी सरकार को कि किस मीडिया की बात सरकार कर रही है ।
खामियां सब में हैं । पहले कार्यपालिका और न्यायपालिका में सुधार करें तो यहां पर बेहतरी की ज्यादा उम्मीद करें । कोई भी सरकार आपने को दूध का घुला नहीं कह सकती है । तो पहले ऐसे में अपना दामन देखें फिर दूसरओं पर उंगली उठायें।
मीडिया का स्वरूप भी समाज ही तय करता है । समाज के क्रिया कलाप से ही मीडिया खबर खोज कर दिखाती है । तो व्यवस्था में सुधार से ही सब सुधार सम्भव है । पर यह मुमकिन नहीं है कल्पना मात्र है । तो प्रयास यह होना चाहिए कि जो भी परिवर्तन किये जाये वो आम राय और आम सहमति से हो तो बेहतर होगा । अन्यथा चारों स्तम्भ का एक साथ , एक जुट होकर काम करना सम्भव न होगा । ऐसे में स्थिति बेहतर के बजाय बद्तर हो सकती है ।

Monday, February 9, 2009

" ताजमहल गुलाब " से मनाओ इस बार वेलेटाइन डे । पर जेब का खास ख्याल करके


वेलेटाइन का खुमार भारतीय युवाओं पर जोर शोर से देखा जा सकता है । प्यार की सारी सीमाओं को तोड़ता यह प्रेम दिवस हमारे युवाओं की खासी दिलचस्पी को दिखता है । ऐसे बाजार का भी जोर से रूझान युवा जोड़ों पर केन्द्रति है । अच्छे आफर मिल रहें है रेस्तरां और पब में । सभी अपनी-अपनी भुनाने की होड़ में लगें हैं । गिफ्टों की भरमार है दुकानों पर । एक कार्ड के साथ कई आफर तक दिये जा रहें हैं । प्यार का पर्व अभी कुछ ही दिन रह गया है पर अखबार वालों ने भी अपना बिजनेस कमाने के लिए कई प्रतियोगिताओं को शुरू किया है । विजेता जो कैडल लाइट डिनर और गिफ्ट हैंपर भी है ।
लाल गुलाब को प्यार के प्रतीक है इजहार के लिए जमानों से प्रयोग में लाया जाता रहा है । ऐसे माली हाई प्रोफाइल गुलाब बेचनें में भला क्यों पीछे रहें । वेलेटाइन आते ही गुलाब के फूलों का दाम आसमान छूने लगता है । १० रूपये से लेकर ५०० तक के फूल मार्केट में उपलब्ध है । वेलेटाइन मनाने वाले युवाओं के लिए सबसे आकर्षक गुलाब है -" ताजमहल गुलाब" । बगलूरू से (ताजमहल गुलाब को) इस साल भारतीय गुलाबों को दुनिया भर में प्यार फैलाने के लिए बाजार में उतारा जायेगा । अभी तक १ करोड़ भारतीय गुलाब विश्व में अपनी महक से प्यार को सुगंधित करेंगे।
युवाओं को अपनी जेब का खास ख्याल होगा वरना अच्छा खासा चुना लगने वाला है । साथ ही बजरंग दल वालों की निगाहों से भी बचना होगा । वरना ........। प्यार को कोई जंजीर आजतक जकड़ नही पायी है पर फिर भी मचलते युवा मन को लाठी डण्डे इत्यादि से मुखातिब होना पड़ सकता है । जै हो वेलेटाइन दिन की ।

Friday, February 6, 2009

सामाजिक अस्थिरता को बढ़ावा दे रही हैं ऐसी घटनाएं .....जिया और चांद मोहम्मद दोषी कौन ?


चंद्र मोहन से बने चांद मोहम्मद अपना धर्म परिवर्तन कर प्यार को पाया । एक पत्नी के होते हुए दूसरी महिला से प्यार हो जाना आजकल का आम ट्रेंड हो गया है । जिया ने खुलकर अपने प्यार का इजहार बेझिझक कर डाला । यहां तक तो सब कुछ ठीक चल रहा था । पर एकाएक चंद्र मोहन को अपनी पहली पत्नी और एक बेटी की याद आ गयी । और जिसके चलते वो अपनी दूसरी पत्नी जिया से नाता तक तोड़ने को तैयार हैं । इस तरह से देखा जाय तो चंद्रमोहन ने सारे नाते रिश्तों को मजाक बनाते हुए दो जिंदगी को बर्बाद कर दिया है । क्या चांद मोहम्मद को करना चाहिए जिससे सारे सरोकार बने रहें । सामाजिक रूप से दो पत्नी के पति हमारी परम्परा के खिलाफ है । और इस तरह के फैसले से सामाजिक असमानता आयेगी ।
जिया (चांद की दूसरी बीबी ने )चांद मोहम्मद को ४८ घंटे का समय दिया है । कि अगर वे वापस उसके पास न आये तब कानून का सहारा लेगीं। यहां पर जिया और कुछ कर भी नहीं सकती । मामला अगर कोर्ट में जाता है तो लम्बा खिचेंगा। और न्याय के रूप में जो भी फैसला आयेगा वह किससे पक्ष में जायेगा यह देखने वाली बात होगी । पर यहां पर महिलाओं को चांद मोहम्मद जैसे लोगों से सोच समझ कर ही प्यार या फिर कोई रिश्ता बनाना चाहिए था। इस तरह की स्थिती से समाज में अस्थिरता आयेगी । साथ ही साथ कई जिंदगियों के साथ खिलवाड़ हो रहा है जिसका परिणाम अच्छा तो कतई न होगा ।
भारतीय समाज में प्यार को कतई प्राथमिकता नहीं दी हुई है । पर संविधान में प्यार को पूरी छूट है अगर महिला और पुरूष बालिग है तब । लेकिन सवाल यह है कि इस तरह से गैरजिम्मेदाराना हरकत और उसके बाद जो स्थिति बनती है उसका क्या उपाय होना चाहिए । किसका दोष दे इन परिस्थिति में । गुनहगार कोई भी क्यों न ? हो पर इसका असर हमारे समाज के लिए हानिकारक है । प्यार को खिलवाड़ बनाना कितना उचित और इसका क्या परिणाम होता है हमारी नस्लों पर इसका कोई जवाब नहीं है ।

Thursday, February 5, 2009

बच्ची तो बच्ची है ,पर पुलिस तो है हैवान,..... रिपोर्ट ने किया देश और समाज दोनों को शर्मसार .....

इटावा की छह वर्षीय दलित लड़की कोमल की पिटाई का मामला देश भर को शर्मसार किया । मामले की छानबीन से पता चला की अंजू नाम की महिला द्वारा २८० रूपये की चोरी का लगाया गया आरोप झूठा था। ऐसे में बाल सुरक्षा कानून को कड़ाई से लागू होना चाहिए । जिससे इस तरह की घटना दुबारा न हो। इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने एक डीएसपी , एसएचओ, ठर दो पुलिसकर्मियों पर कार्यवाही हो चुकी है ।
आये दिन पुलिस की बर्बरता के नमूने सामने आते रहते हैं । कुछ समय बाद ये मामले दब जाते हैं । और फिर कुछ दिनों बाद कोई न कोई ऐसी घटना होती है ,जिससे समाज और देश का सर झुकता है । कानून ने सभी को बराबरी का दर्जा दिया है पर यहां ऐसी घटनाएं कानून को धता बताती हैं ।कोमल जैसी लड़की के साथ हुआ बर्ताव पुलिस कि गैरजिम्मेदाराना हरकतों को उजागर करता है । उच्च वर्ग की कठपुतली बनता हुआ प्रशासन निम्न वर्ग के लिए खतरा है । ऐसे में प्रशासन की खामियों को दूर करने के लिए सरकार को सख्त कदम उठाये जाने चाहिए ।
गुरूवार को राष्ट्रीय बाल पुरस्कार वितरण समारोह में यूपीए अध्यक्ष सोनिया जी ने बच्चों को भगवान का रूप कहा और ऐसी घटनाओं की भर्त्सना की । पर यहां पर मेरा ये मानना है कि केवल सरकार ही क्यों ? समाज को ऐसी घटना के प्रति आवाज उठानी चाहिए। तथा नन्हें बच्चों पर ऐसे किसी प्रकार का अत्याचार न हो । क्या समाज में अभी ये भेदभाव कम हुआ है ? तो जवाब यही आयेगा कि नहीं । तो हम अपने आसपास को अच्छा बनाये जिससे अब कोमल जैसे बालिका को इस तरह के अत्याचार से गुजरना न पड़े। और पुलिस को कारर्वाही करने से पहले पूरी छानबीन करके ही को कदम उठाये। कुछ मुट्ठी भर पैसे के लिए न बिके ये रखवाले। तो ही समाज में ऐसी बुराई को कम किया जा सकेगा ।

मेरा काव्य- "घड़ी "


दीवाल पर टंगी एक घड़ी कहती है -
टिक-टिक, टिक-टिक
बदलता है समय,
एक पल को वर्तमान,
और
फिर वही पल,
अतीत बन जाता है ।
एक परिधि में घूमती हैं,
घड़ी की सुईयां,
अनवरत ही , बिना रूके,
कुछ ऐसे ही-
जिंदगी का सफर होता है ।
लीक पर चलते चलते,
रूकते हैं हम,
थकते हैं हम,
सुसताते हैं हम,
पर
टिक-टिक, टिक-टिक
बदलता है समय,
बिना रूके,
बिना थके,
बढ़ते रहो, चलते रहो,
राह पर अपने ,
समय के साथ-साथ ।।

Wednesday, February 4, 2009

बच्ची तो बच्ची है और पुलिस ......? कैसे मिले निजात ?

उत्तर प्रदेश पुलिस का एक नमूना हाल ही में सामने आया । अंजू नाम की महिला ने एक छह साल की दलित बच्ची पर २८० रूपये चुराने का आरोप लगाया । इसके बाद पुलिस वाले बच्ची को थाने ले जाकर बेरहमी से पिटाई करते हैं। यह कोमल नाम की बच्ची पर पर्स से पैसे चुराने का आरोप अंजू ने लगाया ।और कहा कि कोमल ने ये पैसे निकाल किसी और बच्चे को दे दिया । इस आरोप के मद्देनजर पुलिसवालों ने थाने में कोमल की पटाई की।
जब मामला मीडिया में गरमाया तो मुख्यमंत्री मायावती ने दो पुलिसकर्मी को बर्खास्त कर दिया । बाल विकास मंत्री रेणुका चौधरी ने इस मामले को लेकर मुख्मंत्री मायावती पर हमला बोल दिया । जिसके चलते मजबूर होकर मायावती को एक डीएसपी और एसएचओ चंद्रभान को सस्पेड कर दिया ।
बात केवल उत्तर प्रदेश की नहीं है बल्कि बिहार, मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ जैसे प्रदेशों में इस तरह की वारदात आये दिन होती रहती है । जिसका मामला मीडिया में आता है उस पर कार्यवाही होती है । वर्ना सब जस का तस । न तो दलित समाज इस पर कुछ कर पाता है और न ही प्रशासन ही ।
इस तरह की घटनाएं होने से हमारे समाज में आज भी दलितों की दशा का वास्तविक चित्रण मिलता है। इनकी दशा और दुर्दशा में कोई परिवर्तन नहीं आया है। पुलिस को समाज की व्यवस्था को सुचारू रूप चलाने के लिए सारे अधिकार कानून ने दिये हैं । जिसका संचालन कुछ वर्ग तक ही सीमित लगता है । पुलिस बर्बरता को कैसे कम किया जाय । इसका कोई हल नहीं नजर आता । किसी ने अपराध किया है तो पुलिस को अधिकार नहीं कि वह किसी की सजा को निर्धारित करे और सजा दे। पर शायद कानून का दुर्पयोग कानून के रखवाले ही सरेआम कर रहे हैं।
कहीं किसी की जान जाये तो पुलिस के कान में जूं तक नहीं रेगती और इस बच्ची के इस छोटे से अपराध की इतनी बड़ी सजा । जिस अपराध का अभी तक निर्धारण भी नहीं हुआ है। आखिर कैसे बचे इन पुलिसिया आतंक से समाज यही सवाल जेहन में है।

"जिंदगी की जद्दोजहद में - इंसान"

जिंदगी की जद्दोजहद में,
इंसान
छूना चाहता है बुलंदी को,
आशाओं की लौ
जलती है , बुझती है
कभी-कभी
दूर तक दिखती है राह,
जिस पर चलता है इंसान,
कांटों की चुभन में ,
कंकडों की ठोकरों में,
कपकपाती सर्द में,
चिलचिलाती धूप में,
बारिश की बूदों में,
नहीं थकता
नहीं झुकता
और
नहीं मानता है हार,
खुद से खुद की है तकरार
करता है कोशिशें बार-बार
एक आशा , एक उम्मीद
लिये चलता है दिल में
कि शायद-
होगें सपने सकार,
जिंदगी की जद्दोजहद में इंसान
छूना चाहता है बुलदी को।
खामोश ख्वाहिशें,
कुछ दबी फरमाइशों,
के बीच
मुस्काराती है ये जिदगी,
करती है बात खुद से,
देती है हौसला,
कम करती है फासला,
ये जद्दोजहद ही है
जिंदगी ।।

"वो लड़की"

फटे पुराने कपड़े तन पर लिए,
झाड़ियों में घूमती वो,
हाथ में कुल्हाड़ी
और
सर पर लकड़ी का बोझ,
नंगे पांव सर्द हवाओं के बीच,
आंखों से टपकते आंसू उसके
कांटों के बीच टहलती वो,
कटकटाते दांतों की आवाज,
थरथराता उसका बदन,
ठंड के आगोश में ले लिया था
सांवली सूरत को,
हर रोज नजर आती थी
वो लड़की,
कुछ अर्सा गुजरा
सब कुछ वैसा ही है,
पर वो लड़की नहीं है,
याद है -
उसका चेहरा,
उसका बाल -
जिस पर दो फीते लाल रंग के बधे थे।
मासूमियत से भर चेहरा,
अब बहुत दूर जा चुका है ,
जहां उसे सर्द हवाएं छू भी नहीं सकती।

Monday, February 2, 2009

.......वीर-शहीद.........


गर्व है उन पर राष्ट्र को,
जो आज प्राप्ति हैं वीरगति को,
गूंजती है तालियां नाम पर उनके,
आखें छलकती हैं साहस पर उनके।
क्या जोश था इन वीरों का ?
जो सामने से ये लड़े,
न खौफ था मौत का ,
न डरे लड़ते रहे ,
अन्तिम सांस तक ,
वीरता के साथ ही,
वीरगति को प्राप्ति की।।
उल्लास है, हर्ष है
खामोश सा हवाओं में
दर्द तो है हमें , ये शहीद
और गर्व है भारती को ,
कारनामा जो तुमने किया,
शत-शत नमन करता है भारत ,
जो ऐसे बेटों को जन्म दिया ।।
शहीदों को समर्पित ।

Sunday, February 1, 2009

समयचक्र

सूरज की धूमिल किरणें
जब पड़ती हैं मुख पर
पीलापन लिये नजर आती हैं
शांत हो जाता है चंचलमन
ये प्रतीक है गोधूलि के
रात के आने का
नयी शुरूआत का
अंत देता है सदैव
नयापन, नया युग
बदलाव की दिशा
प्रारम्भ से अंत है
यही नियम है
यही चक्र है
यही नियति है
समय की
ब्रम्हाण्ड की भी ।