जन संदेश

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Saturday, May 30, 2009

कैसा अपना बचपन था [ एक कविता ]

आईस पाइस का खेल खेलते ,
मिट्टी के घर बनाते थे,
फिर बिगाड़ देते थे ,
मां से थोड़े समान मांगते
फिर एक चूल्हे पर उसे पकाते थे,
बनता क्या कुछ याद नहीं,
फिर भी अच्छा लगता था ,

नदियों में किनारे पर जा जाकर,
भीगते और सब को भीगाते थे,
कंकड़ ,और शीपी को लेकर,
उसकी एक माला बनाते थे,
बंदरों की तरह उछलकर ,
छोटे पेड़ो पर चढ़जाते थे,
कभी बात बात पर गुस्सा होते ,
रोते , चिढ़ते , मारते ,
फिर भी एक साथ हो जाते थे,
ऐसा अपना बचपन था.

झूठी कहानी भूतों वाली से,
अपने साथियों को डराते थे,
स्कूल से झूठा बहाना बनाकर ,
खेतों में हम छिप जाते थे,
मम्मी के मार से बचने को ,
न जाने क्या क्या जतन बताते थे,

दादी से अपने हम झूठी बाते मनवाते थे,
कभी सबेरे उठकर रोते,
तो कभी सब को हसाते थे,
ऐसा ही अपना बचपन था ,

खेतों में लोट पोट कर ,
फसलों को तोड़ तोड़कर ,
गायों को खिलाते थे,
सुबह सुबह दूध को पीकर,
अपनी मूछ बनाते थे ,
और शीशे में देख खुद को ,
हम भी बड़े बन जाते थे ,
कुछ ऐसा अपना बचपन था ।

आज सभी बीती बातें ,
एक कोने में धुंधली हैं ,
सोच सोच कर अच्छा लगता है ,
कैसा अपना बचपन था ।

रूख्सत २००९ कार्यक्रम का रंगारंग समापन .........मुख्य अतिथि " राहुल देव " एवं " आलोक मेहता जी "


माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय , नोएडा कैंपस में आज " रूख्सत २००९ " का आयोजन हुआ । इस समारोह के मुख्य अतिथि " सीएनएबी के सीईओ राहुल देव और नई दुनिया दिल्ली संस्करण के संपादक आलोक मेहता जी " रहे । कार्यक्रम की शुरूआत अतिथियों के स्वागत और सरस्वती वंदना एवं दीप प्रज्वलन से हुआ । यह कार्यक्रम " रूख्सत २००९ " मास कम्युनिकेशन के स्नात्कोत्तर के छात्र को विदाई दी गयी ।

कार्यक्रम के दौरान राहुल देव जी छात्रों के बीच अपने जीवन और पत्रकारिता के बारे में अपने विचार व्यक्त किये । कई प्रकार से वर्तमान चुनौतियों और समाज के विकास पर बल दिया । साथ ही छात्रों के भविष्य की शुभकामनाएं दी । मुख्य अतिथि आउटलुक के प्रधान संपादक आलोक मेहता ने भी अपनी ३० वर्षों की लंबी पत्रकारिता के बारे में चर्चा की । साथ ही अच्छे पत्रकार और कुशल जीवन की मंगल कामनाएं दी ।


सबसे आकर्षण रहा जूनियर छात्रों का गायन और पुरस्कार वितरण । कार्यक्रम के आखिरी सत्र में छात्रों ने जमकर मस्ती की , और अपने सीनियर को रंगारंग विदाई दी । सकुशलता और हर्षोल्लास के साथ समापन हुआ " रूख्सत २००९ " का ।

Thursday, May 28, 2009

हिन्दी साहित्य का आधुनिक काल - " भारतेन्दु हरिशचंद्र " [ आलेख ]

हिंदी साहित्य का आधुनिक काल तत्कालीन राजनैतिक गतिविधियों से प्रभावित हुआ। इसको हिंदी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ युग माना जा सकता है, जिसमें पद्य के साथ-साथ गद्य, समालोचना, कहानी, नाटक व पत्रकारिता का भी विकास हुआ। इस काल में राष्ट्रीय भावना का भी विकास हुआ। इसके लिए श्रृंगारी ब्रजभाषा की अपेक्षा खड़ी बोली उपयुक्त समझी गई। समय की प्रगति के साथ गद्य और पद्य दोनों रूपों में खड़ी बोली का पर्याप्त विकास हुआ। भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र तथा बाबू अयोध्या प्रसाद खत्रीने खड़ी बोली के दोनों रूपों को सुधारने में महान प्रयत्न किया।

इस काल के आरंभ में राजा लक्ष्मण सिंह, भारतेंदु हरिश्चंद्र, जगन्नाथ दास रत्नाकर, श्रीधर पाठक, रामचंद्र शुक्ल आदि ने ब्रजभाषा में काव्य रचना की। इनके उपरांत भारतेंदु जी ने गद्य का समुचित विकास किया और आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने इसी गद्य को प्रांजल रूप प्रदान किया। इसकी सत्प्रेरणाओं से अन्य लेखकों और कवियों ने भी अनेक भांति की काव्य रचना की। इनमें मैथिलीशरण गुप्त, रामचरित उपाध्याय, नाथूराम शर्मा शंकर, ला. भगवान दीन, रामनरेश त्रिपाठी, जयशंकर प्रसाद, गोपाल शरण सिंह, माखन लाल चतुर्वेदी, अनूप शर्मा, रामकुमार वर्मा, श्याम नारायण पांडेय, दिनकर, सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा आदि का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के प्रभाव से हिंदी-काव्य में भी स्वच्छंद (अतुकांत) छंदों का प्रचलन हुआ।

हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है ।भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म 1850 में काशी के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में हुआ ।भारतीय नवजागरण के अग्रदूत के रूप में प्रसिद्ध भारतेन्दु जी ने देश की गरीबी, पराधीनता, शासकों के अमानवीय शोषण का चित्रण को ही अपने साहित्य का लक्ष्य बनाया । हिन्दी को राष्ट्र-भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में उन्होंने अपनी प्रतिभा का उपयोग किया । भारतेन्दु जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। हिंदी पत्रकारिता, नाटक और काव्य के क्षेत्र में उनका बहुमूल्य योगदान रहा। भारतेन्दु जी ने 'हरिश्चंद्र पत्रिका', 'कविवचन सुधा' और 'बाल विबोधिनी' पत्रिकाओं का संपादन भी किया। भारतेन्दु जी एक उत्कृष्ट कवि, सशक्त व्यंग्यकार, सफल नाटककार, जागरूक पत्रकार तथा ओजस्वी गद्यकार थे। भारतेन्दु जी ने मात्र ३४ वर्ष की अल्पायु में ही विशाल साहित्य की रचना की।

उन्होंने पांच वर्ष की अवस्था में ही निम्नलिखित दोहा बनाकर अपने पिता को सुनाया और सुकवि होने का आशीर्वाद प्राप्त किया-

लै ब्योढ़ा ठाढ़े भए श्री अनिरुध्द सुजान।
वाणा सुर की सेन को हनन लगे भगवान।।

भारतेंदु जी ने श्रृंगार के संयोग और वियोग दोनों ही पक्षों का सुंदर चित्रण किया है।
देख्यो एक बारहूं न नैन भरि तोहि याते
जौन जौन लोक जैहें तही पछतायगी।
बिना प्रान प्यारे भए दरसे तिहारे हाय,
देखि लीजो आंखें ये खुली ही रह जायगी।
भारतेंदु जी कृष्ण के भक्त थे और पुष्टि मार्ग के मानने वाले थे।वे कामना करते हैं -
बोल्यों करै नूपुर स्त्रीननि के निकट सदा
पद तल मांहि मन मेरी बिहरयौ करै।
बाज्यौ करै बंसी धुनि पूरि रोम-रोम,
मुख मन मुस्कानि मंद मनही हास्यौ करै।
भारतेंदु जी के काव्य में राष्ट्र-प्रेम भी भावना स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है ।
भारत के भुज बल जग रच्छित,
भारत विद्या लहि जग सिच्छित।
भारत तेज जगत विस्तारा,
भारत भय कंपिथ संसारा।
भारतेन्दु जी की प्रमुख कृतियां - भारत दुर्दशा ,अंधेर नगरी, प्रेम माधुरी ,राग-संग्रह ,विनय प्रेम पचासा ,प्रेम फुलवारी इत्यादि हैं ।

Tuesday, May 26, 2009

भक्तिकाल के महाकवि " मलिक मुहम्मद जायसी " - आलेख

मलिक मुहम्मद जायसी हिन्दी साहित्य के भक्ति काल की निर्गुण प्रेमाश्रयी शाखा के कवि हैं । हिंदी साहित्य का भक्ति काल 1375 वि0 से 1700 वि0 तक माना जाता है। यह युग भक्तिकाल के नाम से प्रख्यात है। यह हिंदी साहित्य का श्रेष्ठ युग है।हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ कवि और उत्तम रचनाएं इस युग में प्राप्त होती हैं।भक्ति-युग की चार प्रमुख काव्य-धाराएं मिलती हैं : ज्ञानाश्रयी शाखा, प्रेमाश्रयी शाखा, कृष्णाश्रयी शाखा और रामाश्रयी शाखा, प्रथम दोनों धाराएं निर्गुण मत के अंतर्गत आती हैं, शेष दोनों सगुण मत के। जायसी उच्चकोटि के सरल और उदार सूफी कवि थे ।

जायसी का जन्म सन १५०० के आसपास का माना जाता है । जायसी का जन्म स्थल उत्तर प्रदेश का जायस नामक स्थान माना जाता है । जायसी का जीवन सामान्य रहा । खेती बारी से ही जीवन निर्वाह किया ।
जायसी की कई कृतियों में गुरू शिष्य की परंपरा का वर्णन मिलता है । इनकी कुल २१ कृतियों के उल्लेख प्रमुख रूप से मिलते हैं इनमें प्रमुख है -पद्मावत, अखरावट, आख़िरी कलाम, कहरनामा, चित्ररेखा । जायसी की कृति पद्मावत से बड़ी ख्याति प्राप्त की । इसमें पद्मावती की प्रेम-कथा का रोचक वर्णन हुआ है। रत्नसेन की पहली पत्नी नागमती के वियोग का अनूठा वर्णन है। इसकी भाषा अवधी है और इसकी रचना-शैली पर आदिकाल के जैन कवियों की दोहा चौपाई पद्धति का प्रभाव पड़ा है।

जायसी की मृत्यु १५५८ में हुआ । भक्तिकाल के अन्य कविओं में तुलसीदास , सूरदास एवं कबीरदास रहे ।

Monday, May 25, 2009

पढ़े हिन्दी , बोलें हिन्दी , और लिखे हिन्दी ..............जीते इनाम ( कविता प्रतियोगिता सूचना )

हिन्दी साहित्य मंच द्वारा एक कविता प्रतियोगिता का आरंभ जून माह से हुआ है । इस प्रतियोगिता के लिए प्रतिभागी अपनी रचना मई माह के अंतिम दिन तक भेज सकते हैं । कविता किसी विषय विशेष पर नहीं है अतः प्रतिभागी अपनी इच्छानुसार विषय चयन कर सकते हैं । इस प्रतियोगिता में छंदबद्ध एवं छंदमुक्त कविता स्वीकार होगी । कविता की आकार लघु एवं विस्तृत हो सकता है । ( शब्द बंधन नहीं है )

अभी तक हिन्दी साहित्य मंच की इस प्रतियोगिता के लिए साहित्य प्रेमियों का उत्साह हमारे लिए प्रेरणाश्रोत है । जिस तरह से लोगों ने हिन्दी साहित्य की ओर अपनी रूचि दिखाई है वह काबिले तारीफ है । इस मंच द्वारा कविता प्रतियोगिता के विजेताओं की घोषणा जून माह के प्रथम सप्ताह में की जायेगी । कविता " यूनिकोड या क्रूर्तिदेव " फांट में ही भेजें । ३१ मई के बाद की प्रविष्टियां स्वीकार नहीं होगी ।

पढ़े हिन्दी , बोलें हिन्दी , और लिखे हिन्दी ..............। हिन्दी भाषा और हिन्दी साहित्य के विकास हेतु " हिन्दी साहित्य मंच " का एक प्रयास जिसमें आपकी भागीदारी जरूरी है ।अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें ।

संचालक ( हिन्दी साहित्य मंच )

जो भरा नहीं है भावों से " राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी " - आलेख

द्विवेदी युग के प्रमुख कविओं में मैथिलीशरण गुप्त का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता
है । राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी को खड़ी बोली को नया आयाम देने वाले
कवि के रूप में भी जाना जाता है । गु्प्त जी ने खड़ी बोली को उस समय
अपनाया जब ब्रजभाषा का प्रभाव हिन्दी साहित्य में अपना प्रभाव फैला चुका
था । श्री पं महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से खड़ी बोली को अपनी
रचनाओं का माध्यम बनाया और अपनी कविता के द्वारा खड़ी बोली को एक
काव्य-भाषा के रूप में निर्मित करने में अथक प्रयास किया । हिन्दी कविता
के लंबे इतिहास में कवि गुप्त जी ने अपनी एक शैली बनायी यह थी - पवित्रता,
नैतिकता और परंपरागत मानवीय सम्बन्धों की रक्षा । राष्ट्रकवि गुप्त जी की
प्रमुख कृतियां रही - पंचवटी , जयद्रथ वध , यशोधरा एवं साकेत ।


मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म झांसी में हुआ । विद्यालय में खेलकूद को ध्यान देते हुए
पढ़ाई को पूरी न कर सके । घर में ही हिन्दी, बंगला, संस्कृत साहित्य का
अध्ययन किया। गुप्त जी ने बाल्यकाल से १२ वर्ष की आयु में ब्रजभाषा में
कविता रचना आरम्भ किया ।जल्द ही इनका संपर्क आचार्य महावीर प्रसाद
द्विवेदी से हुआ और इनकी रचनाएं खड़ी बोली मासिक पत्रिका "सरस्वती " में
प्रकाशित होने लगी । गुप्त जी का पहला कविता संग्रह "रंग में भंग " तथा
बाद में "जयद्रथ वध " प्रकाशित हुआ । सन् १९१४ ई. में राष्टीय भावनाओं से
ओत-प्रोत "भारत भारती' का प्रकाशन किया । जिससे कवि मैथिली शरण गुप्त जी
ख्याति भारत भर में फैल गयी । गुप्त जी नें साकेत और पंचवटी लिखी उसके बाद
गांधी जी के संपर्क आये । गांधी जी ने मऔथिली शरण जी को " राष्ट्रकवि "
कहा ।

गुप्त जी अपनी कलम से संपूर्ण देश में राष्ट्रभाक्ति की भावना भर दी । गुप्त जी की कलमसे ये स्वर निकले -

'जो भरा नहीं है भावों से
जिसमें बहती रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।'


मैथिलीशरण गुप्त के जीवन में राष्ट्रीयता के भाव कूट-कूट कर भर गए थे। इसी कारण उनकी सभी रचनाएं राष्ट्रीय विचारधारा से ओत प्रोत है
। 12 दिसंबर 1964 को चिरगांव में ही उनका देहावसान हुआ।

Sunday, May 24, 2009

एक नौकरी के लिए क्या क्या करना पड़ता है ................?

अपनी सी वी बना लो अच्छी सी ............कुछ ऐसे बिन्दुओं को हाईलाइट कर देना जिससे तुम्हारा व्यक्तित्व कुछ अलग या सबसे अलग नजर आये और हां एक ही पेज की बनाना क्योंकि आजकल यही ट्रेंड है समझ गये ना और कोई बात हो तब मिसकाल देना और वहां पहुंचते ही मेरा रिफ्रेंस देना जिससे तुम्हारी कुछ मदद शायद हो जाये ............ठीक है सर । अच्छा अब फोन रखता हूँ आफिस के लिए निकलना है मुझे भी .......जीसर । एण्ड लास्टली आल द बेस्ट ........कूल माइंड होकर अपना इंटरव्यू देना । ओके सर जी बाय एण्ड थैंक्स यू .............। ड्रेस के लिए कुछ ऐसा पहना जाये जो शालीन लगे और सभ्य भी पर अगर जाब देना होगा तो क्या कपड़े ही देखकर देंगें पर फिर भी ध्यान तो जाता ही है पहनावे पर ........................चलो अब बहुत सवाल हुआ अपने आपसे जल्दी तैयार होकर निकलना होगा ........वरना बस तो निकल जायेगी ही साथ में जाब मिलने का मौका भी ................. जल्दी जल्दी बस स्टैण्ड पर पहुंचते हुए चलो शुक्र है अभी समय कुछ बाकी है बस के आने का .............. इंतजार करते करते चलो चाय ही पी लिया जाय .......... दुकान से चाय पीते हुए बास का इंतजार करना मुश्किल न था ... बस आयी पर बाप रे कितनी भीड़ है चढ़ना है इस मेले में ठेल-ठाल के ...............किसी तरह से अंदर हुए तो बीच में अपने आप ही आ पहुंचे पीछे वालों की मदद से । कपड़े का तो सत्यानाश ही होगया । पर चलो साफ तो है ही ..........बमुशकिलन टिकट के पैसे जेब निकाल पाया वो भी तब जब पास की सीट पर बैठी लड़की को फाइल दिया तब ..................आराम से खड़े होना भी कितना मुश्किल है कोई आगे से तो कोई पीछे धक्का देते हुए कुचलता निकल जा रहा है सबको जल्दी है......................जिस चैनल तक जाना है वह अब आने वाला ही है इसलिए बार बार झकना पड़ रहा है खिड़की से कही स्टैण्ड आगे न चला जाये ...........................बस स्टैण्ड से उतर कर पूछना पड़ा मेरे साथ लड़की भी उतर गयी पर उससे न पूछा कुछ भी । बताये हुए रास्ते पर चलते हुए मंजिल पर आ धमके ..................कुछ लोग पहले से ही मौजूद थे । मैं भी एक कोने में खड़ा हो गया अपनी फाइल पकड़े कुछ देर में वो साथ वाली लड़की भी आ पहुंची ( बस वाली ) । उसने मुझे ना देखा ........ मैं गेटकीपर के पास जाकर कहा जो सर ने कहा था कहने को .......................उसने कुछ देर रूकने को कहा मैं फिर से अपने को कोने में कर लिया । लड़की भी पास ही खडी थी पर फिर भी बात न की हमने ।।।। गेटकीपर ने मुझे बुलाया और अंदर जाने के लिए कहा ..................मैं अंदर गया डरता हुआ । वर्मा जी के सामने की सीट पर बैठ गया फिर उन्होंने ने जो जो पूंछा ............... मैं बताता चला गया । कोई खास बाते न हुई फिर मुझसे कुछ देर रूकने को कहा ........................ मैं बाहर आ गया खुश भी था कि अभी तक सब कुछ ठीक ही ठाक था । बाहर आकर चैन से कुर्सी पर बैठा पानी पीकर । मेरे पास लड़की बैठी रही और बार बार शायद अपनी बारी का इंतजार कर रही थी । मैंने उसे छेड़ दिया । अरे आप भी यहां । उसने कहा ..............हां नौकरी की तलाश हम भी आये हैं .................आप कैसे ? अरे हम भी उसी के लिए आये हैं । आपक तो इंटरव्यू हो गया ना । हां हो ही गया है ( मैंने कहा ) .................... कुछ देर ऐसे ही बातें होती रही उसका नं नहीं आया था अभी तक और मुझे दुबारा से बुलाया सर ने और कहा कि आप जाईये जशेा होगा मैं बता दूंगा आपके सर को ........................मैं खुश था बाहर आया और लड़की के पास खड़े होते हुए बोला बेस्ट आफ लक और मैं तो अब चलता हूँ ............. bye . शाम को फिर से मैंने अपने गुरू जी को काल की तो फोन किया उन्होंने और कहा यार एक ही जाब तो थी और वह किसी और को मिल गयी ........ मैं दुखी हो गया सर में बहुत समझाया कि कभी न कभी तो सफलता मिलेगी ही ..................... मैं एक दिन किसी काम के लिए फिर से बस से ही ज रहा था और संयोग वश वो लड़की मिल गयी हाय हैलो हुआ ।।।।। मैंने पूंछा आप का क्या हुआ कहीं जाब मिली ................... वह मुस्कराई और कही कि मुझे वहीं जाब मिल गयी जहां आप भी इंटरव्यू देने आये थे ........................उसने कहा और आपका क्या ? मैं कहा मैं भी जाब कर रहा हूँ किसी चैनल में ( झूठ बोल दिया ) । फिर आगे उतर कर लिया । शायद यही है किस्मत कितना कुछ करने पर भी एक नौकरी के लिए क्या क्या नहीं करना पड़ता ।।

Thursday, May 21, 2009

पूर्व प्रेमी का खत - हास्य

यह किसी अखबार में प्रकाशित और वाया ईमेल हमें प्राप्त हुई । आप भी आनंदित हो इसे पढ़कर ।


ई सब कुछ का है भईया...........? ? आलेख [ भूतनाथ ]

...........अरे बिलागर बंधुओं...........हम ढेरों दिनों से यह सोचता रहा हूँ.......कि जो लोग-वोग ब्रांडेड-वरान डेड करते रहते हैं.....इसमें तनिको सच भी है...कि झूठो-मूठो ही लोग ब्रांड नाम के पीछे हलकान रहते हैं....!!

............
एक बताओ हमका बताओ तो भइया.....कि हमको तन ढकने के लिए कपड़ा....पैर को साफ़-सुथरा बनाए रखने के लिए जूता.....और जीवन की सब जरूरतों को पूरा करने के लिए कुछो--कुछो चाहिए ही होता है.... अगरचे जे कोई ब्रांड आदि का नहीं होता तो का ससुरा एकदम "ख़त्म"होता है......??

.........
हम लोगन के बाप दादा जो झकास धोती-कुरता पहिन-पहिन कर जिनगी गुजार कर इहलोक सिधार गिये..... लोग आदमी नहीं थे का......??.....जो चीज़ दू पईसा में उपलब्ध होती है......उसके लिए ब्रांड नाम पर दस पईसा खर्च करके लोग बाग़ का जताते हैं....और जादे पईसा खर्च करके बार-बार किसको सुनाते हैं.....??
......अरे बंधुओं.....तुमरे बाप-ददा-परदादा-लकड़दादा-सकड़दादा-फकड़दादा......सब के सब इंहे सब जईसन-तयिसन कपड़ा-लत्ता पहिन वहिन कर समूचा जिनगी बेहतरीन ढंग से जी कर चले गए.....उसका दसो पईसा जिनगी तुम सब लोग ब्रांडेड वैगरह के झंडे पहराने वाले तुम सब लोग जी सकते हो का......????
......अरे भईया जो कुछ वो खा गए..... सब तो खाना दूर का बात......तुम सबको सब देखने को भी नसीब में नहीं है......!!......दिन-रात ब्रांडेड-ब्रांडेड करते रहते हो......बड़ी-बड़ी कंपनियों की थैलियाँ भरते रहते हो.... उनके नुमायिन्दों को उंचा वेतन देते रहते हो.....!!.......अरे भईया कभी तो सोचो कि सब है तो आख़िर है क्या...!!

......
एक बात बताएं बिलागर भईया.....??"संसार में सबसे ज्यादा धन आदमी के अंहकार का पोषण करके कमाया जाता है......तमाम ब्रांडेड चीज़ों में उनके जबरदस्त दाम के अनुपात में क्वालिटी हो या ना हो.... मगर उनको इस्तेमाल करने वाले लोगों का अंहकार बेशक बहुत पुष्ट होता है.....अपने अंहकार की पूर्ति के आदमी बहुत कुछ करता है.....और ब्रांड नाम का ईजाद उसके इसी अंहकार नाम की पूर्ति के लिए कुछ बेहद ही चालाक लोगों ने किया है....और यह क्षेत्र इस कदर पहला-फूला कि कालांतर में अनेकों लोगों ने इस नटवरलालगिरी को अपना लिया ......वे लोग जल्द ही कंपनी बन गए......और फिर बहुराष्ट्रीय कंपनी.....!!और जल्द ही विश्व-व्यापार की नकेल इनके हाथ में गई......जैसा कि ये चाहती भी थीं......!!!!

...........
बस एक ही बात पूछूँगा बिलागर बंधुओं आपसे.....कि जो भी चीज़ आपके हाथ में है.....अपनी उपयोगिता.....क्वालिटी....महत्त्व.....और अन्य चीज़ों के हिसाब से और उसके अनुपात से उसका मूल्य कितना वाजिब है.....??क्या यह सच नहीं हम धनवान लोग अपने अंहकार का उंचा मूल्य बनाए रखने के लिए तमाम चीज़ों का मूल्य उंचा बनाए रखने में मदगार होते हैं.....तुर्रा यह कि अमुक चीज़ ब्रांडेड है......!!

.........
दोस्तों जो लोग ब्रांडेड नहीं इस्तेमाल करते.....वो आदमी नहीं होते.....??......जो लोग सीधा-साधा- सरल जीवन जीते हुए ऊँचे से ऊँचे मानक स्थापित करते हैं.....वो लोग आदमी नहीं होते......??......जो लोग चीज़ों को अपने अंहकार के सन्दर्भ में ना लेकर उसकी उपयोगिता के परिप्रेक्ष्य में जांचते हैं.....क्या वो पागल होते हैं....??

............
शरीर की सुरक्षा के लिए बनाए गए आवरण को.......जीवन में काम आने वाली उपयोगी चीज़ों को