जन संदेश

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Thursday, July 24, 2014

पाकिस्तानियों_के_10_सिर_लाओ!

कितने जवानों का बलिदान करना है मोदी को! ये राष्ट्रीयहित तो नहीं है मित्रों? अब बातचीत कर राष्ट्र विरोधी फैसला कर रहे हैं।जबसे मोदी- नवाज की मुलाकात हुई है 19 बार पाकिस्तान ने फायरिंग की, हमने 3 जवान खो दिए।
वैदिक की ओछी हरकत के बाद पाकिस्तान से बातचीत के लिए क्यों उतावली है मोदी सरकार? क्या भरोसे के लायक है पाकिस्तान? लाइन आफ कंट्रोल पर बार- बार सीज फायर का उल्लंघन। जवानों की कुर्बानी का मजाक बना रही मोदी सरकार!
 ये वही मोदी हैं जो ईट का जवाब पत्थर से देने की बात करते थे। क्या हो गया मोदी को? जब पाकिस्तान ने शहीद हेमराज का सिर काटा गया था तो सुषमा स्वराज ने कहा था- "हम 10 सिर काटेंगे।"
क्या हुआ बकरी क्यों बन गई मोदी सरकार? अब कैसा जनमत चाहिए सरकारी को। निकम्मेपन से आगे बढ रही है सरकार।

Saturday, June 28, 2014

डर

सोचा कभी सच्चाई का सामना करूंगा। लेकिन कब और कैसे? सही समय की तलाश में शहर दर शहर भटकता रहा।दोस्तों की महफिलें गुमसुम सी होने लगी थी।कई सालों बाद एक शाम ट्रिन- ट्रिट्रिन कर फोन घनघना उठा।औपचारिक बातचीत हुई।साहस के आगे डर की जीत हुई।मन ही मन व्याकुल हो उठा था। फिर एक लंबी सांस और अपने रास्ते पर चलते रहे।
अरसा गुजर गया है सच आज भी दफ्न है। और दुनिया के सामने एक सभ्यता की मूर्ति बना दिन महीने की तरह गुजरता रहा हूँ।

Sunday, June 15, 2014

कविता "दोस्तों ये यूं तो नहीं"

बादलों की गडगडाहटा,
पक्षियों की चहचहाहट।
हवा की सरसराहट,
और
मेंढक की टरटराहट।
दोस्तों ये यूं ही नहीं
बल्कि मानसून का स्वागत है।।

पत्तों की खरखराहट,
भास्कर की शर्माहट।
प्रियतमा की अकुलाहट,
और
मोर की थिरकावट।
दोस्तों ये यूं ही नहीं है
बल्कि मानसून का स्वागत है।।

सांसों की हडबडाहट,
चेहरे की वो बनावट।
मिलने की चुलबुलाहट,
और
इश्किया घबराहट।।
दोस्तों ये यूं ही नहीं है
बल्कि मानसून का स्वागत है।



Saturday, May 31, 2014

रावणों के झुंड में-(कविता)नीशू तिवारी

चिथड़े-चिथड़े नोच कर,
रक्तरंजित रूह उसकी।
मांस के लोथड़े में कहीं,
मानवता आज सड़ गई।।

दर्द भी तिलमिला उठा,
मौनव्रत थी धारणा उसकी।
मूक दर्शक रावणों के झुंड में,
माँ भी नग्न हो गई।।

(बदायूं )

Thursday, May 29, 2014

हस्ताक्षर मौन है(कविता)

हस्ताक्षर मौन हैं, पहचान बनकर।
हूं उपस्थित आज, अनजान बनकर।।

सब्र को अपने चुनौती कौन देता है भला?
कर सकूं अपराध तो हो बोध इसका।।

मेरे मिटने से भला क्या हो सकेगा इस धरा का ?
रात है कहती है हर रोज सुबह उस सूर्य से।।

है नियति का खेल यह, किसको पता।
कौन डूबे और किसका होगा उदय।।


हस्ताक्षर मौन है, पहचान बनकर।।