tag:blogger.com,1999:blog-4058741992995012637.post3365643396999876385..comments2023-11-05T03:58:59.215-08:00Comments on मीडिया व्यूह: मुझको भूल जाना और मुस्कराना तुमAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/16883786301435391374noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-4058741992995012637.post-70473765359358024992007-09-22T06:04:00.000-07:002007-09-22T06:04:00.000-07:00अच्छी कविता है.अच्छी कविता है.संजीव कुमारhttps://www.blogger.com/profile/13372636058856142747noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4058741992995012637.post-27897612581314479322007-09-22T03:18:00.000-07:002007-09-22T03:18:00.000-07:00सच कहूँ तो यह कविता, कविता के पैमानो पर जमीं नही ह...सच कहूँ तो यह कविता, कविता के पैमानो पर जमीं नही है। <BR/><BR/>कुछ पक्तियों में आप भटक रहे है। शब्दों का हेर फेर कर इसे और भी सुन्दर बनाया जा सकता था। <BR/><BR/>कविता का भाव बहुत सुन्दर है किन्तु उतना न्याय आपने शब्दों के साथ नही किया। <BR/><BR/>आपको भरमाना मेरा मकसद नही है सिर्फ इतना कहूँगा कि लेखनी के साथ न्याय करों अन्याय नही।Pramendra Pratap Singhhttps://www.blogger.com/profile/17276636873316507159noreply@blogger.com