बात भारत की करें तो यू पी में सबसे ज्यादा मर्डर के केस दर्ज हैं । जबकि रेप केस में एम पी सबसे आगे हैं । यूपी की मुख्यमंत्री की चुनावी जीत में यह बात कही गयी कि राज्य को गुड़ागर्दी और दहशत से मुक्त राज्य बनाना उनकी प्राथमिकता है पर यह बात पूरी तरह से आंकडे झूंठे साबित करते हैं । खुलेआम दिन दहाडे हत्या की जाती है और पुलिस यह दलील देती है कि कोई गवाह ही नहीं है वारदात का । लोकसभा चुनाव के दौरान सुल्तानपुर संसदीय क्षेत्र के विधायक धनंजय सिंह पर क्षेत्रीय पार्टी के एक नेता के मर्डर का आरोप है । सच्चाई बहुत ही भयानक है । जिसका कोई ठोस इलाज नहीं दिखता ।
जन संदेश
Friday, July 31, 2009
दिल्ली अपनी प्यारी दिल्ली आज भी है नं एक की पायदान पर ..........................(बचाव कैसे हो आखिर ? )
दिल्ली में अपहरण के बाद मर्डर की घटनाएं आम होती जा रही हैं । ११वीं के छात्र रिभु चावला की हत्या के एक बार दिल्ली पुलिस की सक्रियता पर उगलियां उठना स्वाभाविक है । अगर बात आंकडों की करें तो केन्द्र शासित प्रदेशों में दिल्ली बलात्कार और मर्डर में सबसे ऊपर है। केन्द्र शासित प्रदेशों में बलात्कार के ६४१ मामले दर्ज है जिनमें ५९८ मामले दिल्ली से हैं । दिल्ली पुलिस बहुत से मामले को दबाने का भी प्रयास करती है ।जिससे दर्ज हुए केस की संख्या कम हो सके । आम जनता की गुहार दिल्ली पुलिस अनसुना कर देती है या फिर बहुत दिनों तक थाने का चक्कर लगाने के बाद मामला दर्ज किया जाता है ।
Wednesday, July 29, 2009
युवाओं से नैतिकता का आईना देख सकते है राजनीति के धुरंधर
भारत का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर में राजनीतिक सरगर्मियां जोरशोर पर है । राज्य की विधानसभा में जिस तरह से पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती ने हंगामा मचाया है वह नैतिकता के बिल्कुल विपरीत है । साथ ही पार्टी प्रमुख होने के नाते कम से कम उन्हें तरह के उदाहरण नहीं देने चाहिए । विधानसभा में अगर शोपियां मामले पर अध्यक्ष नें बहस को लेकर उनकी मांग ठुकरा दी तो क्या उन्हें अध्यक्ष की कुर्सी तक जाकर माइक उखाड़ने की कोई जरूरत नहीं । इसके विपरीत २००६ के सेक्स स्कैण्डल में वर्तमान मुख्यमंत्री उमर अब्बदुल्ला को निशाना बनाना । परन्तु यहां पर इक बात तब और साफ हो गयी जब सी बी आई ने मुख्यमंत्री को क्लीन चिट दे दी । और विपक्षी पार्टी को मुंह की खानी पड़ी ।
राजनीति में नैतिकता का तो सवाल ही नहीं बनता है चाहे किसी भी हद तक राज्य सरकार या केन्द्र सरकार को गिरना पड़े । लेकिन जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने जिस तरह से सदन में अपनी बात कही वह काबिले तारीफ है । उन्होंने सीधे तौर पर अपना आक्रोश व्यक्त करते हुए अपना इस्तीफा राज्यपाल को दिया । सी बी आई की रिपोर्ट को देखते हुए राज्यपाल ने इस्तीफा ना मंजूर कर दिया । वैसे भी जब तक न्यायालय किसी को आरोपी साबित नहीं करता तब तक किसी को अपराधी नहीं माना जा सकता ।
जम्मू कश्मीर की राजनीतिक हलचल का सबसे ज्यादा फायदा अलगाववादी उठा सकते हैं । इसलिए कम से कम इन नेताओं को सदन या फिर कहीं भी कुछ ऐसा नहीं कहना या करना चाहिए जिससे इस तरह की ताकतें लाभ उठा सकें । और देश तथा राज्य की संप्रभुता को खतरा पहुंचें ।
राजनीति में नैतिकता का तो सवाल ही नहीं बनता है चाहे किसी भी हद तक राज्य सरकार या केन्द्र सरकार को गिरना पड़े । लेकिन जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने जिस तरह से सदन में अपनी बात कही वह काबिले तारीफ है । उन्होंने सीधे तौर पर अपना आक्रोश व्यक्त करते हुए अपना इस्तीफा राज्यपाल को दिया । सी बी आई की रिपोर्ट को देखते हुए राज्यपाल ने इस्तीफा ना मंजूर कर दिया । वैसे भी जब तक न्यायालय किसी को आरोपी साबित नहीं करता तब तक किसी को अपराधी नहीं माना जा सकता ।
जम्मू कश्मीर की राजनीतिक हलचल का सबसे ज्यादा फायदा अलगाववादी उठा सकते हैं । इसलिए कम से कम इन नेताओं को सदन या फिर कहीं भी कुछ ऐसा नहीं कहना या करना चाहिए जिससे इस तरह की ताकतें लाभ उठा सकें । और देश तथा राज्य की संप्रभुता को खतरा पहुंचें ।
लेबल:
उमर अब्दुलला,
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मनोरंजन या संस्कृति पे आघात
"भारत की महान संस्कृति पर क्या "हमला नही हो रहा है ?" क्या आपको नहीं लगता की हमारे घरो मे नित्यदिन चलने वाले मनोरंजक सीरियल जिन्हे हम अपने परिवार के साथ देखते है, हमारी संस्कृति की ख़राब पेशकश इन सीरियलो द्वारा हो रही है ?आपके बच्चो पर इनका क्या असर होगा ?। देखने मे ये सीरियल पारिवारिक लगते है और बङे चाव से हम अपने परिवार के साथ बैठ कर देखते है। और अचानक कोई ऐसा द्रिश्य जो की आपत्तीजनक अवस्था मे होता है, तब हम उस चैनल को हटा देते है क्यो?
हमे लगता है की सायद हम ऐसा करेगें तो बच्चे उस अश्लिल द्रिश्य को न देख पाये। पर जब हम ऐसा करते होगे तब बच्चो के मन कुछ सवाल तो उठते ही होगें।आज कल टिवी पर आने वाले सीरियल अपने टी.आर.पि रेटिंग को बढाने के लिये जो हथकन्डे अपना रही है, उससे न सिर्फ हमारे संस्कृति पे आघात बल्की हमारे संस्कृति पे एक बदनूमा दाग छोङ रही है, जो भारत जैसे देश जहां की पहचान ही उसकी संस्कृति से होती है के लिये एक चिन्ता का विषय है। आज कल टिवी पे आने वाले सीरियल मनोरंजन के नाम मारपिट और गाली गलौच परोस रहे है, जिससे हमारे बच्चो की मानसिकता मे बहुत ही ज्यादा परिवर्तन हो गया है। सीरियलो मे आज कल ये दिखाया जाता है कि, कैसे आप अपने भाई के संपत्ती को हङपेगे, कैसे बहू अपने सास से बदला लेगी, कैसे आशीक अपने प्रमिका को पटाता है, और कैसे बेटा अपने माँ बाप को घर से बाहर कर देता है। इस प्रकार के सीरियलो को देखने के बाद हमारी मानसिकता कैसी होगी ये तो आप समझ ही सकते है। जहां तक हम और आप जानते है, ये तो हमारी संस्कृति हो ही नही सकती। हमे तो ये पता है कि हमारे यहां भाई लक्षमण जैसा और बेटा भगवान राम जैसे होता है। जहां तक हम जानते है हमारे यहा की औरते बलिदानी ममता से परिपुर्ण और अपने पति के साथ हर हालात मे रहने की कसम खाती है, लेकीन जो हमारे सीरियलो मे दिखया जा रहा है की अगर पति ने अपने पत्नी को थप्पङ मारा है तो ये बात तलाक तक पहुचती है,मै ये नही कह रहा हूं कि पति को अपनी पत्नी को थप्पङ मारना चाहिये, यहा मेरे कहने का मतलब बलिदान और शहनसीलता से है। । इस तरह के सीरियल से हमारे संस्कृति पे जो घाव किया जा रहा है वह दंडनीय है।
और सबसे बङी चिन्ता की बात ये है की इस प्रकार के सीरियलो को ज्यादा पसंन्द किया जा रहा है अगर हमे अपनी संस्कृति जिसके लिए हम जाने जाते है, को बचाना है तो हमे इस प्रकार के सीरियलो को नकारना होगा ताकी ये और अपने पैर ना पसार सके।।
हमे लगता है की सायद हम ऐसा करेगें तो बच्चे उस अश्लिल द्रिश्य को न देख पाये। पर जब हम ऐसा करते होगे तब बच्चो के मन कुछ सवाल तो उठते ही होगें।आज कल टिवी पर आने वाले सीरियल अपने टी.आर.पि रेटिंग को बढाने के लिये जो हथकन्डे अपना रही है, उससे न सिर्फ हमारे संस्कृति पे आघात बल्की हमारे संस्कृति पे एक बदनूमा दाग छोङ रही है, जो भारत जैसे देश जहां की पहचान ही उसकी संस्कृति से होती है के लिये एक चिन्ता का विषय है। आज कल टिवी पे आने वाले सीरियल मनोरंजन के नाम मारपिट और गाली गलौच परोस रहे है, जिससे हमारे बच्चो की मानसिकता मे बहुत ही ज्यादा परिवर्तन हो गया है। सीरियलो मे आज कल ये दिखाया जाता है कि, कैसे आप अपने भाई के संपत्ती को हङपेगे, कैसे बहू अपने सास से बदला लेगी, कैसे आशीक अपने प्रमिका को पटाता है, और कैसे बेटा अपने माँ बाप को घर से बाहर कर देता है। इस प्रकार के सीरियलो को देखने के बाद हमारी मानसिकता कैसी होगी ये तो आप समझ ही सकते है। जहां तक हम और आप जानते है, ये तो हमारी संस्कृति हो ही नही सकती। हमे तो ये पता है कि हमारे यहां भाई लक्षमण जैसा और बेटा भगवान राम जैसे होता है। जहां तक हम जानते है हमारे यहा की औरते बलिदानी ममता से परिपुर्ण और अपने पति के साथ हर हालात मे रहने की कसम खाती है, लेकीन जो हमारे सीरियलो मे दिखया जा रहा है की अगर पति ने अपने पत्नी को थप्पङ मारा है तो ये बात तलाक तक पहुचती है,मै ये नही कह रहा हूं कि पति को अपनी पत्नी को थप्पङ मारना चाहिये, यहा मेरे कहने का मतलब बलिदान और शहनसीलता से है। । इस तरह के सीरियल से हमारे संस्कृति पे जो घाव किया जा रहा है वह दंडनीय है।
और सबसे बङी चिन्ता की बात ये है की इस प्रकार के सीरियलो को ज्यादा पसंन्द किया जा रहा है अगर हमे अपनी संस्कृति जिसके लिए हम जाने जाते है, को बचाना है तो हमे इस प्रकार के सीरियलो को नकारना होगा ताकी ये और अपने पैर ना पसार सके।।
प्रस्तुति- मिथिलेश दुबे की
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