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Friday, February 20, 2009

प्रिये...............आजकल तुम नहीं आती हो.......मेरे ख्यालों में,

प्रिये,
आजकल तुम नहीं आती हो,
मेरे ख्यालों में,
अकेलापन अच्छा नहीं लगता,
ये जानती हो तुम,
कमरे के अंधेरे में,
आंखें ढूढती है तुमको,
एक आस लिये,
कि शायद आज आओगी,
पर
तुम नहीं आती हो,
एक उम्मीद लिये सोता हूँ मैं,
कि शायद आज आओ,
पर नहीं आयी तुम,
मेरे कमरे का वातावरण,
बार-बार तुम्हारी याद दिला ,
रहा है ,
खुद में महसूस कर रहा हूँ
तुम्हारी खुशबू को,
बंद आंखे दिखा रही हैं,
तुम्हारा चंचल यौवन ,
और
स्वछंद मन को,
चेहरे पर बिखरी मुस्कान को,
चांदनी को देख ,
ऐसा लगता है मानों तुम्हारा नूर हो,
तुम ही उतर आयी हो ,
प्रकृति के गोद में,
खामोश हूँ- सोचता हूँ तुमको,
कि शायद आज आ जाओ?
बहुत दिन बीत गये हैं,
मुझे सोये हुए,
आज सो रहा हूँ ,
यही सोच कर की शायद
तुम आओगी,
तुम आओगी प्रिये।

3 comments:

nitin mishra said...

zabardast hai bhai sahab

MANVINDER BHIMBER said...

स्वछंद मन को,
चेहरे पर बिखरी मुस्कान को,
चांदनी को देख ,
ऐसा लगता है मानों तुम्हारा नूर हो,
तुम ही उतर आयी हो ,
प्रकृति के गोद में,
खामोश हूँ- सोचता हूँ तुमको,
कि शायद आज आ जाओ?

बहुत sunder bhaaw हैं ......शब्द भी sunder है

Udan Tashtari said...

बहुत भावपूर्ण सुन्दर रचना..बधाई.