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Monday, April 7, 2008

नींंम का पेड

आसमां में आग बरसा रहा है सूरज,
फैल रही है लू की लपटें
और
उठ रही है
गर्म हवा की धूल
मेघ लेकर नहीं लौटा,
आषाढ़ का पहला दिन।
तपती धरती
और
धुआं-धुआं आसमां के बीच
जीवन झुलसता
धरती भट्टी की भाति ,
धधकता प्रचंड गर्मी में जीवन,
डीहाइड्रेशन का शिकार हो रहा,
ऐसे में
गांव का नीम का पेड़ की छा़व
जो राहत दे रहा ।

3 comments:

KRAZZY said...

bahut hi acchha varnan kiya is garmi ka,jisme ek aadmi k liye sirf neem ka ped hi ek sahara hai................

राज भाटिय़ा said...

बहुत अच्छी कविता हे लेकिन मुझे डर लगता हे ऎसी गर्मी मे भारत आना पडा तो वो नीम का पेड कहां से लाउ गा

रश्मि प्रभा... said...

chaanw denewala neem .......
pure kaavya ka aadhaar hai