जन संदेश
Friday, August 31, 2007
हंसगुल्ले
आज के इस व्यस्त जिन्दगी मे हंसना भी जरूरी है सो पेश है कुछ हंसगुल्ले आपके लिए------------
१- दो व्यक्ति मरने के बाद यमलोक पहुँचे। वहाँ पहुँचकर पहले ने दूसरे से पूछा-'तुम कैसे मरे थे?'
दूसरा व्यक्ति बोला- ' क्या बताऊं यार मैंने अपने घर में चोर को घुसते देखा था । जब मै घर में अंदर पहुचा, तब तक चोर कहीं छिप गया। मैंने उसे कहां -कहां नही खोजा पर वह मिला नहीं। इसी हैरानी से मैं मर गया।'
इस पर पहले व्यक्ति ने कहा-' अरे यार तुम अगर फ्रिज खोल के देख लेते, तो न मैं मरता और न तुम। हा----
२- मोहन- मैं ऐसी जोशीली कहानी सुना सकता हूँ कि सिर के बाल खड़े हो जाय।
सोहन -तो उस गंजी को सुनाओ ।
३- ग्राहकः यह मच्छरदानी कितने की है।
दुकानदारः सौ रूपये की। साहब, इसमें कोई मच्छर नहीं घुस सकता ।
ग्राहकःमुझे नहीं लेनी। जब इसमें मच्छर नहीं घुस सकता , तो मैं कैसे घुस सकता हूँ।
४-राजेश- सुशील सेः यार, आज तो मैं सारा पेपर खाली ही दे आया हूँ । एक प्रश्न भी नही हल किया।
सुशीलः मूर्ख यह क्या किया तूने? अब निरीक्षक यहीं समझेगें की तूने मेरी नकल की है।
५- बराती दूल्हे को घोड़ी पर रस्सी से बाधकर ले जा रहे थे। एक व्यक्ति ने पूछा- जनाब इसको रस्सी से क्यों बांध रखा है?
एक बाराती बोलाः यह दूल्हा असल में भिखारी है। जब भी कोई पैसे फेंकता है, तो यह घोड़ी से उतर कर पैसे बटोरने लगता है
Thursday, August 30, 2007
मीडिया पर लगाम लगाना कितना जरूरी है?
आप ने कभी सोचा है कि मीडिया जो कुछ हमें टी वी पर दिखाती है उसमें क्या दिखाना चाहिए, क्या नही दिखाना चाहिए? मीडिया हमें हमारे आस-पास से लेकर , राष्टीय और अन्तरराष्टीय खबरों से अवगत कराती है यहाँ तक तो ठीक है परन्तु अब प्रतिस्पर्धा के कारण टी वी चैनल अपने स्वार्थ के लिए मानवता का गला घोटते है। जब हम किसी को आत्मदाह करने का सजीव प्रसारण देखते है या फिर किसी महिला की नग्न तस्वीर देखतें हैं या फिर किसी चोर या अपराधी को पुलिस द्वारा मोटर साइकिल मे बांधकर घसीटते दिखाते है ,तो प्रश्न यह उठता है कि इस जगह पर उस पत्रकार को मदद करनी चाहिए या कि खबर की कवरेज दिखाई जानी चाहिए ।यहाँ यह सोचना जरूरी हो जाता है कि जो कुछ भी चैनल दिखा रहे हैं उसका समाज पे क्या प्रभाव होगा?
अतः इस प्रकार निष्कर्तः यही कहना हे कि भारतीय सूचना एंव प्रसारण मंत्रालय को इस प्रकार के टी वी चैनल पर रोक लगानी चाहिए जो की अपने फायदे के लिए कुछ भी परोस सकते है जो की गैर जिम्मेदाराना हैं मंत्रालय को एक प्रासरण के लिए आचार संघिता बनाना चाहिए तथा साथ ही साथ कानून को प्रभावी ढ़ग से लागू भी किया जाना चाहिए ताकी मीडिया पर शिकंजा कसा जा सके और मनमाने रवैये को परिवर्तित किया जा सके।
नेहरू कप पर कब्जा
भारत का नेहरू कप फुटबाल के फाइनल में सीरिया को १-० से हरा कर ओनजीसी नेहरू कप जीत कर अन्तर्राष्टीय टूर्नामेंट जितने मे सफलता प्राप्त की। भारतीय फुटबाल टीम के कप्तान वाई चुग भूटिया इस जीत से काफी उत्साहित दिखे। वैसे सीरिया और भारत कामैच एक तरफा होने की उम्मीद थी क्योंकि सीरिया फीफा विशव रैकिंग में भारत से ४० पायदान ऊपर है भारत में फुटबाल की स्थिति बहुत ही दयनीय है परन्तु यह कप जीत कर एक नयी आशा की किरण दिखी है भारत मे पिछले १५ दिनों में ६ मैच खेले फआइनल को मिलाकर जिसमे भारत का प्रदर्शन उन्दा रहा।
भारतीय फुटबाल टीम के कोच बाब हाटन भी फआइनल की जीत से बहुत प्रसन्न नजर आये उन्होंने कप्तान भूटिया और स्टार स्ट्राइकर सुनील छेत्री की सराहना की।वाई चुंग भूटिया ने प्रतियोगिता मे सबसे ज्यादा १३ गोल दागे। एन पी प्रदीप के ही गोल की वजह से भारत को यह कप हासिल हो सका है। कुल मिलाकर अच्छे खेल की वजह से आज भारत के पास यह सफलता है
भारत में वैसे क्रिकेट सबसे ज्यादा लोकप्रिय खेल है परन्तु यहां खेले गये फाइनल मुकाबले में पत्रकार तथा दर्शकों की सख्या में भारी बढोत्तरी देखी गई।देशके नामी- गिरामी हस्तियों ने हिस्सा लिया। भारतीय खेल मंत्रालय को फुटबाल को आगे बढाने के लिए व्यापक स्तर पर उपाय करने की जरूरत है जिससे भारतीय फुटबाल टीम अन्तरराष्टीय प्रतियोगिता मे बेहतर प्रदर्शन कर सके तथा फुटबाल मे भी भारत का नाम रोशन हो सके
Wednesday, August 29, 2007
एग्नेस से ' मदर टरेसा तक
कक्षा में पढाते-पढाते उनकी नजर खिड़की पे ठहर जाती, स्कूल के पीछे एक झोपडपट्टी थी जो कक्षा की खिडकी से साफ दिखाई पड़ती थी। उस झोपड़पट्टी में फटेहाल , दुःखी, अनाथ तथा बहुत ही गरीब लोग रहते थे। वह रोज खिड़की से उनकी हालत देखती थीं। उनका मन पीडा से भर जाता था, उन लोगों की दयनीय दशा देखकर उनके हृदय में सेवामयी माँ का भाव उत्तपन हुआ। तीन भाई-बहनों में सबसे छोटी और सबकी लाडली नन्हीं एग्नेस के बारे में किसी ने सोचा भी नहीं थआ कि एक दिन वह 'मदर टेरेसा' के रूप में सम्पूर्ण विश्व की सेवा करगी। विश्व की इस महान विभूति का जन्म अल्बानिया में हुआ था। आयरलैण्ड होते हुए टेरेसा भारत आई। यहां उनकी कर्मभूमि कामुख्य केनद्र कोलकाता था। उन्हें एक बार एक ऐसी मरणासन्न महिला मिली जिदके शरीर को चीटियों और चूहों ने कुतर रखा था। उसे वे एक अस्पताल में ले गई, पर अस्पताल मे महिला को भर्ती करना अस्वीकार कर दिया। आखिर में उनके सत्याग्रह के आगे डाक्टरों ने उस महिला को भर्ती कर लियता । इस घटना मे उनको बहुत उद्वेलित किया और ऐसे मरीजों के लिए उन्होंने ' निर्मल हृदय आश्रम' की स्थापना की।
मदर टेरेसा को जहां कहीं भी कोई असहाय , लावारिस, और बीमार व्यक्ति दिखता या ऐसे व्यक्ति के विषय में सूचना मिलती वे उसे वहां ले आती और स्नेह, सहानुभूति के साथ उसकी सेवा और उपवार करतीं। मदर टेरेसा ने कुष्ठ रोगियों के पुनर्वास तथा उपचार के लिए विशेष बस्तियाँ बसाई। एक बार एक अमेरिकी सीनेटर ने ऐसी बस्तियों का दौरा किया एक शिविर में उन्होंने देखा कि वह एक बीमार व्यक्ति की सेवा में लगी हुई हैं । रोगी उल्टी, दस्त व खून से लतपथ था। यह दृश्य देखकर वह मदर के सामने श्रद्दापूर्वक झुककर बोले, "क्या मैं आपसे हाथ मिला सकता हूँ।" मदर अपने हाथों को देखकर बोली ," अभी मेरे हाथ साफ नही हैं।" सीनेटर मे भव विहृल होकर उनके हाथ को अपने सिर पर रख लिया और कहा," इन पवित्र हाथओं को गन्दा कहक इनका अपमान मत कीजिए।" ५ सितम्बर १९९७ को मदर टेरेसा ने कहा , " मैं अब और सांस नहीं ले सकती।" इसके बाद उनहें बेचैनी महसूस हुई, डाक्टर को बुलाया गया ,पर वह हमेशा के लिए इस संसार को छोड़ गई।
प्रेषक - अर्चना यादव
Tuesday, August 28, 2007
विश्व हिन्दी सम्मेलन
अमेरिका के न्यूयार्क में तृतीय विश्व हिन्दी सम्मेलन समाप्त हुआ विश्व हिन्दी सम्मेलन में विश्व के कई देशों से विद्वानों ने हिस्सा लिया तथा ३६ विद्वानों को हिन्दी के विकास के लिए सम्मानित किया गया।
हिन्दी को ४९ करोड ६३ लाख लोग बोलते है तथा चीनी को लगभग एक अरब ३ करोड लोग प्रयोग करते है तथा अग्रेजी भाषा को ५०-६० करोड लगभग प्रयोग करते है इस तरह से हिन्दी विश्व की सबसे ज्यादा बोली जाने शैली भाषा मे एक है
विश्व हिन्दी सम्मेलन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को शामिल होना ?था परन्तु व्यस्त कार्यक्रम होने की वजह से अपने प्रतिनिधि के रूप में डा कर्ण सिंह जी को भेजा था । हिन्दी के उत्थान के लिए यह सम्मेलन आयोजित किया गया पहला हिन्दी सम्मेलन मुम्बई में हुआ था इस प्रकार सम्मेलन अपने उद्देश्यों में कामयाब रहा क्योंकि सभी विद्वतजन ने अपनी विचार धारा को विश्व मंच के पटल पर रखकर अवगत कराया।
संयुक्त राष्ट्र संघ के अध्यक्ष बन की मून ने सम्मेलन को सम्बोधित किया तथा संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषाके रूप में रखने का प्रस्ताव पारित हुआ , इस हिन्दी सम्मेलन से हिन्दी काभला सम्भव नहीं है मात्र एक तरह की पैसे की बरबादी के अलावा कुछ नहीं । सम्मेलन से अगर हिन्दी में सुधार होता तो बात ही क्या थी।
Monday, August 27, 2007
मीडिया का बदलता स्वरूप
आज युग भाग-दौड भरा है किसी को समय नही है कि वह अपना ध्यान पेपर और सारी खबरों को पढें। ऐसे मे ये जरूरी हो जाता है कि सारी खबरों को आसानी से किस प्रकार जाना जाय तो इस काम को आसान किया है टी वी और इन्टरनेट के माध्यम से ताजा जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
मीडिया का दायित्व समाज के आसपास जो कुछ भी घटित हो रहा होता है को जनता के समक्ष सत्यरूप में प्रस्तुत करना होता है परन्तु आज की मीडिया अपने उद्देश्य को लेकर चलने मे असफल हो रहा है या कहें की मीडिया का लक्ष्य बदल गया है आज की मीडिया केवल अपना आर्थिक पक्ष ले कर चल रही हे अब पत्रिकारिता को एक कैरियर के रूप में देखा जाता है । पत्रकार भी अब साँप , बिच्छू तक सीमित हो चुके है कोई नयी सोच नयी लेकर नहीं आ रहे है वो केवल मसाले दार खबर को ही प्राथमिकता देते हैं ।
अतः यहाँ जरूरत है कि मीडिया अपने दायित्व को समझे तथा समाज को राह दिखाये । तथा इन साँप के खेल को छोड नयी सोच समाज को दे। अतः जरूरी है कि प्रबन्धक के पद पर एक सम्पादक हो जो लाभ की बात तो सोचे पर समाज को दाँव पर न रख कर।
Sunday, August 26, 2007
टेनिस का भारत में क्रेज
भारत की जनसंख्या विश्व में दूसरे नम्बर पर है पर टेनिस की बात की जाय तो इसका नं कौन है? पता नही । मै कल नोएडा स्थित स्टेडियम में १० हजार डालर ईनामी आई टी एफ टूर्नामेंट का फाइनल देखने गया था इस प्रतियोगिता का आयोजन भारत में टेनिस को बढावा देने तथा विदेशी खिलाडियों को भारत में लाना था। मै जब वहाँ पहुँचा तो मुकाबला शुरू था और मैंने पाया की वहाँ पर दर्शकों की संख्या न के बराबर है कोर्ट के बाहर पत्रकार ज्यादा और दर्शक कम । वैसे भारत मे क्रिकेट सबसे लोकप्रिय खेल है पर इतनी बडी अबादी में टेनिस पसंद करने वालों की संख्या न के बराबर है अगर भारत के टेनिस महारथी की बात की जाय तो पुरूषों मे लिएण्डर पेस , महेश भूपति , रोहन सरीखे ही कुछ नाम को गिनाया जा सकता और महिलाओं में सानिया मिर्जा तथा ओबेराय बहनें हैं।
लिएण्डर और महेश की जोडी ने पुरूष के कई डब्लस मुकाबले जीते परन्तु सिंगल्स मे कभी भी विदेशियों के सामने टिक नहीं सके। सानिया जी ने १२ आई टी एफ तथा एक डब्लू टी एफ अब जीता है वैसे उन्होंने कई बार उलट फेर किया है पर क्या बात है कि इनकी धाक विश्व के चार ग्रैंडस्लैम मे नहीं चलती है। पहले या फिर दूसरे दौर से ज्यादा का सफर नही तय कर पाती है, वैसे ही ओबे राय बहनें भी है।
बच्चे------------------- भविष्य भारत के
यूनिसेफ सर्वे से पता चला है(२००६) कि भारत की जी डी पी में बाल मजदूरी से साढें तीन प्रतिशत आता है और यह कुल मजदूरी का सत्रह प्रतिशत है।
चाय की दुकान पर प्लेट साफ करता रामू, ट्रैफिक जाम के बीच टाइम पत्रिका बेचता हुआ श्याम और कूडे में से काम की चीजें उठाती हुइ गुडिया। क्या यही है अतुल्य भारत।
बाल मजदूरी अधिनियम कानून से मात्र भारत के भविष्य की दशा में सुधार नहीं होने वाला है बल्कि सरकार को इनके विकास एंव उत्थान के लिए स्थाई कार्यक्रम निर्धारित करना होगा । माना की अब १४ वर्ष से कम उम्र के बच्चों से काम लेना कानूनी अपराध होगा पर क्या किया जाय कि इन बच्चों के हाथ मे काम की जगह किताब और पीठ पर कचरे की जगह स्कूली बैग हो।
केवल कानून बनाने से समस्या हल का नहीं होने वाला है पूरे दिन काम करके ये बच्चे मात्र १५ से २० रूपये प्रतिदिन से ज्यादा नहीं कमा पाते जो कि उनके भोजन के लिए भी पर्याप्त नही होता है अतः यहाँ पर विचारणीय है कि है कि समस्या से छुटकारा कैसे पाया जाय? कानून न केवल पन्नों तक ही न हो बल्कि उसका क्रियान्वयन भी होना चाहिये ताकि बच्चों के साथ-२ भारत का भी भविष्य उज्जवल हो
Friday, August 24, 2007
रेडियो एफ और युवा पीढी
रेडियो एफ और युवा पीढी
वर्तमान समय में रेडियो सम्पूर्ण भारत के साथ बडे शहरों की जरूरत बन गया है, हमारे देश मैं भैगोलिक विभिन्नताऐ होने के साथ सास्कृतिक विभिन्नताऐं है जहां पर २८ राज्यों में १८ भाषा विभिन्न लोकगीत एंव विभिन्न सस्कृतियां है इतनी विभिन्नताऐं होने के साथ सम्पूर्ण भारत एक है जिसका समावेश रेडियो एफ एम में प्रतिविम्बित है
एफ एम रेडियो एक सांस्कृतिक क्षेत्र का ,एक भाषा , एक सस्कृति का उस विशेष क्षेत्र की झलक दिखाता है जो भारत केविभिन्न शहरों में वहां की भाषा , संस्कृति के अनुभव अलग-२ है जैसे दिल्ली क्षेत्र के आधुनिक समाज, मुम्बई का मराठी समाज,म लखनऊ का नवाबी तहजीव, कोलकाता में बंगाली इस प्रकार एफ एम रेडियो विभिन्न शहरों में वहां की स्थानीयबोलचाल कीभाषा मैं कार्यक्रम पेश करता है।
इस प्रकार एफ एम रेडियो स्थानीय खबरें , स्थानीय भाषा मैं उस क्षेत्र के रहन सहन के साथ कार्यक्रम प्रस्तुत करता है।
इस कारण उस क्षेत्र के युवा वर्ग में वही संस्कृति आ रही है हमारे समाज मै युवा वर्ग की सोच बदलने से ही समाज बदलता है एफ एम रेडियो पर गीत संगीत के साथ युवा वर्ग सभ्यता को दर्शा रही है इसलिए एफ एम रेडियो युवा वर्ग के आचरण का निर्माता बन चुका है
Thursday, August 23, 2007
अगर आदमी के पूँछ होती"""""""""""""""""""""""""
अगर आदमी के पूँछ होती"""""""""""""""""""""""""
कल्पना करें की आपके पूँछ हो तो क्या होता? चलिए जनाब हम आप को ले चलते हैं पूँछों की काल्पनिक दुनिया में। जब हम किसी व्यक्ति से मिलते है तब हम हाथ मिलाते हैं पर आप आराम से अपनी पूँछ इधर-उधर हिलाकर सामने वाले की पूँछ से अपनी पूँछ मिलाकर खुशी का इजहार करने के लिए एक दूसरे से पूँछें ऐठ लेते। हम अपनी पूँछ के लिए अलग से स्टाइलिस कपडें खरीदते और पूँछ को अलग-२ तरह से सजाते तथा पूँछों के भी अलग-२ स्टाइल प्रचलित होते। जब आप सिनेना घर में फिल्म देख रहे होते और कोई हास्य सीन आता तो आप ताली के लिए हाथ की जगह पूँछसे थपथपाहट करते। हमारी पूँछ की आवश्कता बहुत बढ जाती कि कोई वस्तु, कोई समान आसानी से उठाया जाता। पूँछों के देखभाल के लिए टेल केयर सेंटर तथा टेल स्पेसलिस्ट होते साथ ही साथ टेल डिजाइनर होते।
कितना अच्छा होता अगर पूँछ होती लोग अपनी जुल्फों को पूँछों से हटाते और पूँछों से अगल-बगल बैठे लोगों को छेंडते और परेशान करते ।
काश ये सच होता।
फेडरर फिफ्टी
फेडरर फिफ्टी
स्विटजरलैंण्ड के रोजर फेडरर ने सिंग्लस में अपने खिताबों की संख्या पचास कर ली है ऐसा करने वाले वह दुनिया के नवें खिलाडी है सिनसिनाटी मास्टर्स टेनिस में उन्होंने अमेरिका के जेम्स ब्लैक को हराकर यह उपलब्धि हासिल की । "किंग" फेडरर के खिताबों का विवरण इस प्रकार है।
वर्ष - संख्या - खिताब
२००१ - १ - मिलान।
२००२ - ३ - हैम्बर्ग, सिडनी,विसना।
२००३ - ७ - दुबई, हैली, मार्देली, म्युनिख, टेनिस मास्टर्स, विएना,विंबल्डन।
२००४ - ११ - आस्ट्रेलियन ओपन, बैंकाक,कनाडा एएमएस, इंडियन वेल्स एएमएस, टेनिस मास्टर्स
कप, यूएस ओपन, विंबल्डन ।
२००५ - ११ - एटीपी मास्टर्स सिनसिनाटी, एतीपी मास्टर्स सीरीज, हैम्बर्ग, एटीपी मास्टर्स सीरीज, इंडियन वेल्स, एटीपी मास्टर्स सीरीज मियामी, बैंकाक, दोहा, हैली,रोटरडम,यूएस ओपन, विंबल्डन।
२००६ - १२ - एटीपी मास्टर्स सीरीज कनाडा, एटीपी मास्टर्स सीरीज इंडियन वेल्स, एटीपी मास्टर्स सीरीज मैडिड, एटीपी मास्टर्स सीरीज मियामी, आस्ट्रेलियन ओपेन, बासेल ,दोहा, हैली, टेनिस मास्टर्स कप , टोक्यो, यूएस ओपेन, विंबल्डन ।
२००७ - ५ - एटीपी मास्टर्स सीरीज हैम्बर्ग, आस्ट्रेलियन ओपेन, दुबई, विंबल्डन, सिनसिनाटी
Wednesday, August 22, 2007
मरने का किसे है गम ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मरने का किसे है गम ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
नामचीन हस्तियों की जिन्दगी का दस्तूर भी अजीब है। मरने से पहले और बाद दोनों ही सूरतों में उनकी चर्चा बनी रहती है। जिस पर उनकी मौत यदि विवादस्पद परिस्थितियों में हुई हो, त्रासदीपूर्ण हो अथवा दर्दभरी हो तो कहना ही क्या ? जीवन में जिस पब्लिसिटी के लिए वो लालायित रहते हैं, मृत होकर उन्हें सहज ही मिल जाती है। अब सेलेब्रटी माडल अन्ना निकोल स्मिथ को ही ले लीजिए। उनकी आकस्मिक मृत्यु ने उन्हें अमेरिका में ही नहीं दुनिया भर में प्रसिद्दी दिला दी है। अन्ना की चर्चा के चर्चे, ओप्रा विंफे जैसी प्रभावशाली हस्ती की लोकप्रियता को भी पछाड रहे हैं। गौरतलब है कि मरने के उपरान्त स्मिथ पर होने वाली इन्टरनेट सर्चेज ने ओप्रा के बाबत होने वाली ने सर्च को २५ के मुकाबले १ से बहुत पीछे छोड दिया है। यानी जीवन-मरण की इस लडाई में एक मृत सेलेब्रटी ने जीवित हस्ती को चुनौती दे डाली है।
इन्टरनेट सर्चेज में विगत कई वर्षों से अपनी बादशाहत कायम रखने वालीं ओप्रा को भले हि इस तख्ता पलट में कोई दिलचस्पी न हो, परन्तु उक्त रिसर्च मानवीय स्वभाव के अजीबोगरीब पहलू पर रोशनी डालती है। गौर फरमायें कि किसी भी हस्ती की मृत्यु पर, उस पर होने वाली इन्टरनेट सर्च में एकाएक इजाफा होता है। उदाहरण स्वरूप जान लेनन अपनी २५वीं पुण्यतिथि पर टाप १० मोस्ट सर्च्ड सेलेब्रिटी सूची में पहली पायदान पर पहुच गये थे। आनलाइन लोकप्रियता में मार्लिन मुनरो की जीवनरेखा भी सबसे लम्बी मानी जाती है।
नामचीन हस्तियों की जिन्दगी का दस्तूर भी अजीब है। मरने से पहले और बाद दोनों ही सूरतों में उनकी चर्चा बनी रहती है। जिस पर उनकी मौत यदि विवादस्पद परिस्थितियों में हुई हो, त्रासदीपूर्ण हो अथवा दर्दभरी हो तो कहना ही क्या ? जीवन में जिस पब्लिसिटी के लिए वो लालायित रहते हैं, मृत होकर उन्हें सहज ही मिल जाती है। अब सेलेब्रटी माडल अन्ना निकोल स्मिथ को ही ले लीजिए। उनकी आकस्मिक मृत्यु ने उन्हें अमेरिका में ही नहीं दुनिया भर में प्रसिद्दी दिला दी है। अन्ना की चर्चा के चर्चे, ओप्रा विंफे जैसी प्रभावशाली हस्ती की लोकप्रियता को भी पछाड रहे हैं। गौरतलब है कि मरने के उपरान्त स्मिथ पर होने वाली इन्टरनेट सर्चेज ने ओप्रा के बाबत होने वाली ने सर्च को २५ के मुकाबले १ से बहुत पीछे छोड दिया है। यानी जीवन-मरण की इस लडाई में एक मृत सेलेब्रटी ने जीवित हस्ती को चुनौती दे डाली है।
इन्टरनेट सर्चेज में विगत कई वर्षों से अपनी बादशाहत कायम रखने वालीं ओप्रा को भले हि इस तख्ता पलट में कोई दिलचस्पी न हो, परन्तु उक्त रिसर्च मानवीय स्वभाव के अजीबोगरीब पहलू पर रोशनी डालती है। गौर फरमायें कि किसी भी हस्ती की मृत्यु पर, उस पर होने वाली इन्टरनेट सर्च में एकाएक इजाफा होता है। उदाहरण स्वरूप जान लेनन अपनी २५वीं पुण्यतिथि पर टाप १० मोस्ट सर्च्ड सेलेब्रिटी सूची में पहली पायदान पर पहुच गये थे। आनलाइन लोकप्रियता में मार्लिन मुनरो की जीवनरेखा भी सबसे लम्बी मानी जाती है।
Monday, August 20, 2007
मैथिल कोकिल कवि - विद्यापति
मैथिल कोकिल कवि - विद्यापति
हिन्दी साहित्य के अभिनव जयदेव के नाम से विद्यापति प्राख्यात है। बिहार मे मिथिला क्षेत्र के होने के कारण इनकी भाषा मैथिल थी। इनकी भाषा मैथिल होने के बावजूद़ सर्वाधिक रचनाऐ संस्कृत भाषा मे थी, इसके अतिरिक्त अवहट्टा भाषा मे रचना करते थे। विद्यापति के जन्म के सम्बन्ध मे विद्वानों मे मतभेद है, कुछ तो इन्हे दरभंगा जनपद के विसकी नामक स्थान को मानते है। विद्यापति का वंश ब्राह्मण तथा उपाघि ठाकुर थी। विसकी ग्राम को इनके आश्रय दाता राजा शिवसिंह ने इन्हे दान मे दिया था। इनका पेरा परिवार पैत्रिक रूप से राज परिवार से सम्बद्ध था। इनके पिता गणपति ठाकुर राम गणेश्वर के सभासद थे। इनका विवाह चम्पा देवी से हुआ था। विद्यापित कि मृत्यु सनम 1448 ई0 मे कार्तिक त्रयोदशी को हुई थी।
विद्यापति ने मैथिल, अवहट्ट, प्राकृत ओर देशी भाषओं मे चरित काव्य और गीति पदों की रचना की है। विद्यापति के काव्य में वीर, श्रृंगार, भक्ति के साथ-साथ गीति प्रधानता मिलती है। विद्यापति की यही गीतात्मकता उन्हे अन्य कवियों से भिन्न करती है। जनश्रुति के अनुसार जब चैतन्य महाप्रभू इनके पदों को गाते थे, तो महाप्रभु गाते गाते बेहोश हो जाते थे। भारतीय काव्य एवं सांस्कृतिक परिवेश मे गीतिकाव्य का बड़ा महत्व था। विद्यापति की काव्यात्मक विविधता ही उनकी विशेषता है।
विद्यापति संस्कृत वाणी के सम्बन्ध मे टिप्पणी करते हुये कहते है कि संस्कृत भाषा प्रबुद्ध जनो की भाषा है तथा इस भाषा से आम जनता से कोई सरोकार नही है प्राकृत भाषा मे वह रस नही है जो आम आदमी के समझ मे आये। इसलिये विद्यापति अपभ्रंश(अवहट्टा) मे रचनाये करते थें। अवहट्ट के प्रमाणिक कीर्ति लता और कीर्ति पताका है।
विद्यापति की तीनो भाषओं की रचनाऐ निम्नलिखित है-
1)-- अवहट्ट - कीर्तिलता और कीर्तिपताका।
2)-- संस्कृत-- मणिमंजरी, पुरूष परिक्रमा, वर्णकृत्य भूपरिक्रमा, पुरूषपरीक्षा, लिखनावली, दुर्गाभक्ति तंरगणिनी, गंगा वाक्यपली, दान वाक्यली, गया पत्तलक, व्याड़ी भक्ति तरंगणी।
3)- गोरक्षविलय, पदावली।
''देसिल बयना सब जन मिठ्ठा '' उक्त पक्तिं के अनुसार वि़द्यापति के अनुसार उन्हे अपनी भाषा मे भावो को व्यक्त्ा करना अनिवार्य था, उसकी पूर्ति के उन्होने पदावली मे की। पदावली की भाष मैथिल है जिस पर ब्रज का प्रभाव दिखता है। मिथिला कि प्राचीन भाषा ही उसकी 'देसिल बयना' है। विद्यापति ने उसे स्वयं भी मैथिल भाषा नही कहा है। विद्यापति की यह पदावली कालान्तर मे पूर्वोत्तर भारत बंगाल मे प्रचलित हो चुकी थी। विद्यापति का प्रभाव उनके उत्तराधिकारी सूर पर भी पडता है।
विद्यापति द्वारा रचित ''राधा-कृष्ण'' से सम्बन्धित मैथिल भाषा मे निबद्ध पदों का संकलित रूप विद्यापति पदावली के नाम से विख्यात है विद्यापति के पदों का संकलन जार्ज गिर्यसन, नरेन्द्र नाथ गुप्ता, रामवृक्ष बेनी पुरी, शिव नन्दन ठाकुर आदि विद्वानों ने किया हैं। विद्यापति के पदों मे कभी तो धोर भक्तिवादिता तो कभी घोर श्रृंगारिकता दिखती है, इन्ही विभिन्नतओं के कारण विद्यापति के विषय मे यह भी विवाद है कि उन्हें किा श्रेणीके कवि मे रखा जाये। कुछ कवि तो उन्हें भक्त कवि के रूप मे रखनें को तैयार नही थे। विद्यापति द्वारा कृष्ण-राधा सम्बन्धी श्रृंगारी पद उन्हे भक्ति श्रेणी में रखने पर विवाद था। विद्वानों का कहना था कि विद्यापति भी रीतिकालीन कवियों की भातिं रा्जाश्रय मे पले बड़े हुये है इसलिये उनकी रचनाओं मे श्रृंगार प्रधान बातें दखिती है। इसलिये इन्हे श्रृंगार का कवि कहने पर बल दिया गया है।
विद्यापति के सम्बन्ध में एक बात प्रमुख है कि उनके पद्यों में राधा को प्रमुख स्थान दिया गया है। उसमे भी नख-शिख वर्णन प्रमुख है। विद्यापति के काव्य की तुलना सूर के काव्य करे तो यह प्रतीत होता है कि सूर ने राधा-कृष्ण का वर्णन शैशव काल मे है तो विद्यापति ने श्रीकृष्ण एवं राधा के वर्णन तरूणावस्था का है जिससे लगता है कि विद्यापति का उद्देश्य भक्त का न होकर के श्रृंगार का ही हैं।
भक्त की दृष्टि से अगर विद्यापति के काव्य को देखा जाये तो यह देखने को मिलता था कि तत्कालीन परिवेश एवं परिस्थितियों के कारण उनका भाव श्रृंगारिक हो गया हैं। विद्यापति के पदों को अक्सर भजन गीतों के रूप मे गाया जाता रहा है। विद्यापति ने राधा-कृष्ण का ही नही शिव, विष्णु राम आदि देवताओं को विषय मानकर रचनाऐ की है। विद्यापति द्वारा रचित महेश भक्ति आज भी उड़ीसा के शिव मन्दिरों मे गाई जाती है। दैव प्रचीन ग्रन्थवली के अनुसार भक्त अपने आराध्य को किसी भी रूप मे पूजा कर सकता है, इस आधार पर विद्यापति भक्त कवि भी सिद्ध होते है।
विद्यावति के पद्य :---
1
देख-देख राधा रूप अपार,
अपरूष के बिहि आनि मिराओल,
खिति तल लावण्य सार,
अगहि अंग अनंग मुरझायत
हेरय पड़य अधीर।
2
भल हरि भल हर भल तुअ कला,
खन पित बासन खनहि बद्यछला।
खन पंचानन खन भुज चारि
खन संकर खन देव मुरारि
खन गोकुल भय चराइअ गाय
खन भिखि मागिये डमरू बजाये।
3
कामिनि करम सनाने
हेरितहि हृदय हनम पंचनाने।
चिकुर गरम जलधारा
मुख ससि डरे जनि रोअम अन्हारा।
कुच-जुग चारु चकेबा
निअ कुल मिलत आनि कोने देवा।
ते संकाएँ भुज-पासे
बांधि धयल उडि जायत अकासे।
तितल वसन तनु लागू
मुनिहुक विद्यापति गाबे
गुनमति धनि पुनमत जन पाबे।
महाशक्ति-मीडिया व्यूह समझौते के अर्न्तगत यह लेख महाशक्ति से लिया गया है।
हिन्दी साहित्य के अभिनव जयदेव के नाम से विद्यापति प्राख्यात है। बिहार मे मिथिला क्षेत्र के होने के कारण इनकी भाषा मैथिल थी। इनकी भाषा मैथिल होने के बावजूद़ सर्वाधिक रचनाऐ संस्कृत भाषा मे थी, इसके अतिरिक्त अवहट्टा भाषा मे रचना करते थे। विद्यापति के जन्म के सम्बन्ध मे विद्वानों मे मतभेद है, कुछ तो इन्हे दरभंगा जनपद के विसकी नामक स्थान को मानते है। विद्यापति का वंश ब्राह्मण तथा उपाघि ठाकुर थी। विसकी ग्राम को इनके आश्रय दाता राजा शिवसिंह ने इन्हे दान मे दिया था। इनका पेरा परिवार पैत्रिक रूप से राज परिवार से सम्बद्ध था। इनके पिता गणपति ठाकुर राम गणेश्वर के सभासद थे। इनका विवाह चम्पा देवी से हुआ था। विद्यापित कि मृत्यु सनम 1448 ई0 मे कार्तिक त्रयोदशी को हुई थी।
विद्यापति ने मैथिल, अवहट्ट, प्राकृत ओर देशी भाषओं मे चरित काव्य और गीति पदों की रचना की है। विद्यापति के काव्य में वीर, श्रृंगार, भक्ति के साथ-साथ गीति प्रधानता मिलती है। विद्यापति की यही गीतात्मकता उन्हे अन्य कवियों से भिन्न करती है। जनश्रुति के अनुसार जब चैतन्य महाप्रभू इनके पदों को गाते थे, तो महाप्रभु गाते गाते बेहोश हो जाते थे। भारतीय काव्य एवं सांस्कृतिक परिवेश मे गीतिकाव्य का बड़ा महत्व था। विद्यापति की काव्यात्मक विविधता ही उनकी विशेषता है।
विद्यापति संस्कृत वाणी के सम्बन्ध मे टिप्पणी करते हुये कहते है कि संस्कृत भाषा प्रबुद्ध जनो की भाषा है तथा इस भाषा से आम जनता से कोई सरोकार नही है प्राकृत भाषा मे वह रस नही है जो आम आदमी के समझ मे आये। इसलिये विद्यापति अपभ्रंश(अवहट्टा) मे रचनाये करते थें। अवहट्ट के प्रमाणिक कीर्ति लता और कीर्ति पताका है।
विद्यापति की तीनो भाषओं की रचनाऐ निम्नलिखित है-
1)-- अवहट्ट - कीर्तिलता और कीर्तिपताका।
2)-- संस्कृत-- मणिमंजरी, पुरूष परिक्रमा, वर्णकृत्य भूपरिक्रमा, पुरूषपरीक्षा, लिखनावली, दुर्गाभक्ति तंरगणिनी, गंगा वाक्यपली, दान वाक्यली, गया पत्तलक, व्याड़ी भक्ति तरंगणी।
3)- गोरक्षविलय, पदावली।
''देसिल बयना सब जन मिठ्ठा '' उक्त पक्तिं के अनुसार वि़द्यापति के अनुसार उन्हे अपनी भाषा मे भावो को व्यक्त्ा करना अनिवार्य था, उसकी पूर्ति के उन्होने पदावली मे की। पदावली की भाष मैथिल है जिस पर ब्रज का प्रभाव दिखता है। मिथिला कि प्राचीन भाषा ही उसकी 'देसिल बयना' है। विद्यापति ने उसे स्वयं भी मैथिल भाषा नही कहा है। विद्यापति की यह पदावली कालान्तर मे पूर्वोत्तर भारत बंगाल मे प्रचलित हो चुकी थी। विद्यापति का प्रभाव उनके उत्तराधिकारी सूर पर भी पडता है।
विद्यापति द्वारा रचित ''राधा-कृष्ण'' से सम्बन्धित मैथिल भाषा मे निबद्ध पदों का संकलित रूप विद्यापति पदावली के नाम से विख्यात है विद्यापति के पदों का संकलन जार्ज गिर्यसन, नरेन्द्र नाथ गुप्ता, रामवृक्ष बेनी पुरी, शिव नन्दन ठाकुर आदि विद्वानों ने किया हैं। विद्यापति के पदों मे कभी तो धोर भक्तिवादिता तो कभी घोर श्रृंगारिकता दिखती है, इन्ही विभिन्नतओं के कारण विद्यापति के विषय मे यह भी विवाद है कि उन्हें किा श्रेणीके कवि मे रखा जाये। कुछ कवि तो उन्हें भक्त कवि के रूप मे रखनें को तैयार नही थे। विद्यापति द्वारा कृष्ण-राधा सम्बन्धी श्रृंगारी पद उन्हे भक्ति श्रेणी में रखने पर विवाद था। विद्वानों का कहना था कि विद्यापति भी रीतिकालीन कवियों की भातिं रा्जाश्रय मे पले बड़े हुये है इसलिये उनकी रचनाओं मे श्रृंगार प्रधान बातें दखिती है। इसलिये इन्हे श्रृंगार का कवि कहने पर बल दिया गया है।
विद्यापति के सम्बन्ध में एक बात प्रमुख है कि उनके पद्यों में राधा को प्रमुख स्थान दिया गया है। उसमे भी नख-शिख वर्णन प्रमुख है। विद्यापति के काव्य की तुलना सूर के काव्य करे तो यह प्रतीत होता है कि सूर ने राधा-कृष्ण का वर्णन शैशव काल मे है तो विद्यापति ने श्रीकृष्ण एवं राधा के वर्णन तरूणावस्था का है जिससे लगता है कि विद्यापति का उद्देश्य भक्त का न होकर के श्रृंगार का ही हैं।
भक्त की दृष्टि से अगर विद्यापति के काव्य को देखा जाये तो यह देखने को मिलता था कि तत्कालीन परिवेश एवं परिस्थितियों के कारण उनका भाव श्रृंगारिक हो गया हैं। विद्यापति के पदों को अक्सर भजन गीतों के रूप मे गाया जाता रहा है। विद्यापति ने राधा-कृष्ण का ही नही शिव, विष्णु राम आदि देवताओं को विषय मानकर रचनाऐ की है। विद्यापति द्वारा रचित महेश भक्ति आज भी उड़ीसा के शिव मन्दिरों मे गाई जाती है। दैव प्रचीन ग्रन्थवली के अनुसार भक्त अपने आराध्य को किसी भी रूप मे पूजा कर सकता है, इस आधार पर विद्यापति भक्त कवि भी सिद्ध होते है।
विद्यावति के पद्य :---
1
देख-देख राधा रूप अपार,
अपरूष के बिहि आनि मिराओल,
खिति तल लावण्य सार,
अगहि अंग अनंग मुरझायत
हेरय पड़य अधीर।
2
भल हरि भल हर भल तुअ कला,
खन पित बासन खनहि बद्यछला।
खन पंचानन खन भुज चारि
खन संकर खन देव मुरारि
खन गोकुल भय चराइअ गाय
खन भिखि मागिये डमरू बजाये।
3
कामिनि करम सनाने
हेरितहि हृदय हनम पंचनाने।
चिकुर गरम जलधारा
मुख ससि डरे जनि रोअम अन्हारा।
कुच-जुग चारु चकेबा
निअ कुल मिलत आनि कोने देवा।
ते संकाएँ भुज-पासे
बांधि धयल उडि जायत अकासे।
तितल वसन तनु लागू
मुनिहुक विद्यापति गाबे
गुनमति धनि पुनमत जन पाबे।
महाशक्ति-मीडिया व्यूह समझौते के अर्न्तगत यह लेख महाशक्ति से लिया गया है।
Sunday, August 19, 2007
तसलीमा नसरीन की "लज्जा"
तसलीमा नसरीन की "लज्जा"
अपनी पुस्तक का विमोचन करने आयी प्रख्यात बांग्लादेशी लेखिका और नारीवादी तसलीमा नसरीन को बीते ९ अगस्त को कट्टरपंथियों की बदसलूकी का सामना करना पडा । यदि कार्यक्रम के आयोजक व पत्रकार नसरीन के सामने नहीं आये होते तो हमलावर लेखिका का बुरा हाल कर सकते थे, तसलीमा को बचाकर बाहर निकालने में एक तेलगू साहित्यकार और कई पत्रकार घायल हो गये।
हमलावर की अगुवाई मजलिस इत्तिहादुल मुस्लमीन (एमआई एम) के तीन विधायक कर रहे थे। प्रतिबन्धित उपन्यास "लज्जा" के बाद कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों के निशाने पर आई नसरीन ने कहा कि " यह हमला उनकी हत्या की साजिश भी हो सकता है लेखिका भारत में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रही हैं।
नसरीन की हालिया पुस्तक " शोध" के तेलगू अनुवाद का विमोचन समारोह समाप्त होने को ही था कि विधायक अफसर खान , अहमद पाशा व मौजुम खान के अगुवाई में एम आई एम के करीब ४० कर्याकर्ता अचानक विमोचन
समारोह स्थल प्रेस क्लब परिसर मे घुसे और लेखिका के खिलाफ नारेबाजी करने लगे तथा नसरीन पर किताबें और कागज फेकें । तसलीमा ने कोलकाता जाते हुए कहा कि " अन्ततः कट्टपंथियों की हार होगी और लोकतंत्र तथा अभियक्ति की आजादी कि जीत होगी उन्होंने कहा कि " छोटे से समूह का प्रतिनिधित्व करने वाला समूह मुझे शारीरिक रूप से नुकसान पहँचा सकता है पर उन्हें भ्रम है कि वे ऐसा कर मेरी आवाज भी दबा देगें लेकिन वे गलती कर रहे हैं।
इस हमले की निदां मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी, सूचना प्रसारण मंत्री प्रियरंजन दास मुंशी तथा भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर आदि समेत पूरे भारत ने किया तथा भविष्य में ऐसी धटनाऐं ना हो क्योंकि यह हमला स्त्री समाज के आधुनिक सोच पर था पर क्या ये लोग सफल हो पायेगें? कभी नही
प्रेषक - निशान्त
Saturday, August 18, 2007
भारतीय टेनिस स्टार सानिया का शानदार सफर
भारतीय महिला टेनिस खिलाडी सानिया मिर्जा इन दिनों अपने जीवन के स्वर्णिम सफर पर हैं।उन्होंने डब्लयूटीए की जारी विश्व रैंकिग में २९ वाँ स्थान हासिल किया है । जो कि उनके कैरियर की अब तक की सबसे उन्दा रैंकिग है इसके पहले उन्होंने ६ लाख डालर इनामी ईस्ट वेस्ट बैंक क्लासिक टूर्नामेंट में पूर्व विम्बडन चैम्पियन दुनिया की नं १ खिलाडी स्विटजरलैण्ड की मार्टिना हिंगिस को सीधे सेटों ६-२, २-६, ६-४ से करारी शिकस्त दी। यह सानिया द्वारा किया गया दूसरा बडा उलट फेर था।
सानिया चोट से उबरने के बाद से अच्छा प्रदर्शन किया है जिस की बदौलत वो स्टेनफोर्ड ओपेन के फाइनल तथा एक्यूरा क्लासिक टेनिस टूर्नामेंट के सेमीफाइनल में पहुँची पर वहाँ पर मारिया शारापोवा से ६-२, ६-१ से मात्र ६१ वें मिनट में ही समपर्ण कर दिया, पर इस समय सनिया कि शान जगजाहिर है। ग्रैन्ड स्लैम के लिए अपनी मजबूत दावेदारी पेश की है ।
निशान्त
Saturday, August 11, 2007
कौन है तेज, आबादी या रोज़गार
''आबादी से भी तेज गति है रोज़गार के अवसरों की", कम से कम नेशनल सैम्पल सर्वे आर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट तो इसी तरफ इशारा कर रही है। जो हाल ही में एक नामी-गिरामी अखबार के प्रथम पृष्ठ पर छपी थी। रिपोर्ट में दिये गये आँकड़ों की मानें तो आजादी के बाद पहली बार देश में रोजगार के अवसर आबादी से अधिक तेजी से बढ़े हैं।2000-05 के बीच आबादी 2.35 की दर से बढ़ी जबकि रोजगार के अवसर 2.80 के हिसाब से बढ़े हैं।अब जबकि कुछ ही दिनों के बाद हमारा देश 60 साल का हो रहा है, ऐसे में इस तरह के आँकड़े थोड़ी उम्मीद तो दिलाते ही हैं। लेकिन अधिक खुश होने ज़रूरत नहीं है, क्योंकि आज की तारीख में भी भारत की आधे से भी ज्यादा आबादी बेरोजगार है।
'नासकाम' की रिपोर्ट का हवाला दिया जाये तो आने वाले 5 से 10 सालों में आई टी, बीपीओ तथा रिटेल सेक्टर में बेरोजगार के अवसर बेतहाशा बढ़ने वाले हैं। जरूरत होगी रोजगारपरक शिक्षा की; जोकि उन अवसरों को सफलताओं में तब्दील कर सके।
कुछ ही दोनों पहले मेरे एक मित्र ने बात-बात में कहा था कि पैसा तो मार्केट में बह रहा है, लेकिन ज़रूरत है पैसे को पकड़ने का गुर सीखने की।
लगता है वे सही थे।
'नासकाम' की रिपोर्ट का हवाला दिया जाये तो आने वाले 5 से 10 सालों में आई टी, बीपीओ तथा रिटेल सेक्टर में बेरोजगार के अवसर बेतहाशा बढ़ने वाले हैं। जरूरत होगी रोजगारपरक शिक्षा की; जोकि उन अवसरों को सफलताओं में तब्दील कर सके।
कुछ ही दोनों पहले मेरे एक मित्र ने बात-बात में कहा था कि पैसा तो मार्केट में बह रहा है, लेकिन ज़रूरत है पैसे को पकड़ने का गुर सीखने की।
लगता है वे सही थे।
Thursday, August 2, 2007
आधुनिक भारत की बदलती तस्वीर
आधुनिक भारत की बदलती तस्वीर
भारत वर्ष हमेशा से अपनी प्राचीन सभ्यता एंव सस्कृति के लिये जाना जाता रहा है और समय के साथ परिवर्तन होना स्वाभाविक भी है परन्तु एक बात ये ध्यान देने की है कि हम जिस सभ्यता को अपनाने की तरफ झुक रह रहें वास्तव में वो हमारी ही संस्कृति को हमेशा से ही महान मानते हैं पाश्चात्य सस्कृति में काफी कुछ अच्छाई विद्यमान है परन्तु आज हम उनकी सभ्यता से जो भी ग्रहण कर रहें वो हमेशा से ही हमारी संस्कृति के खिलाफ रहा है उदाहरण के लिए खुलापन , माता-पिता को सम्मान न देना , शराब एंव धूम्रपान और एक अलग जीवन भाग -दौड भरा। अब प्रश्न यह है कि हमारे युवा को यह समाज इतना क्यों आकर्षित कर रहा है? अगर जहाँ तक अगर हम उनके नजरिये से देखें तो केवल एक ही नजर आता है कि फैशनपरस्ती और साथ-२ माता पिता का बच्चों की तरफ ध्यान न देना। हम आगे बढे जरूर पर इस तरह तो नही। विकास हो लेकिन अपने सभ्यता को भुलाकर नहीं ।
भारत वर्ष हमेशा से अपनी प्राचीन सभ्यता एंव सस्कृति के लिये जाना जाता रहा है और समय के साथ परिवर्तन होना स्वाभाविक भी है परन्तु एक बात ये ध्यान देने की है कि हम जिस सभ्यता को अपनाने की तरफ झुक रह रहें वास्तव में वो हमारी ही संस्कृति को हमेशा से ही महान मानते हैं पाश्चात्य सस्कृति में काफी कुछ अच्छाई विद्यमान है परन्तु आज हम उनकी सभ्यता से जो भी ग्रहण कर रहें वो हमेशा से ही हमारी संस्कृति के खिलाफ रहा है उदाहरण के लिए खुलापन , माता-पिता को सम्मान न देना , शराब एंव धूम्रपान और एक अलग जीवन भाग -दौड भरा। अब प्रश्न यह है कि हमारे युवा को यह समाज इतना क्यों आकर्षित कर रहा है? अगर जहाँ तक अगर हम उनके नजरिये से देखें तो केवल एक ही नजर आता है कि फैशनपरस्ती और साथ-२ माता पिता का बच्चों की तरफ ध्यान न देना। हम आगे बढे जरूर पर इस तरह तो नही। विकास हो लेकिन अपने सभ्यता को भुलाकर नहीं ।
Wednesday, August 1, 2007
विश्व की ५० शक्तिशाली व्यवसायी महिलाओं में तीन भारतीय
विश्व की ५० शक्तिशाली व्यवसायी महिलाओं में तीन भारतीयविश्व की प्रमुख बिजनेस पत्रिका फार्चयून ने अपने ताजा अंक मे जारीविश्व की सबसे शकि्तशालि व्यवसायी महिलाओं की सूची मे जिन तीन भारतियनामों को रखा है वे हैं-चन्द्रा कोचर, नैना किदवई और किरण मजूमदार शाँ।उक्त सूची में फ्रासं की टेलिकाम कम्पनी अल्काटेल ल्यूसंट की सीईओपैटीशिया रूसो को पहला स्थान प्राप्त हुआ है। वहीं आईसीआईसीआई बैंक की उपप्रबन्ध निदेशक चन्द्रा कोचर को ३७वाँ स्थान प्राप्त हुआहै।एच एसबीसी इन्डिया की सीईओ नैना किदवई को सूची में ४१वाँ स्थान प्रप्तहै,जबकि बायोकान की प्रमुख मंजूमदार शा का नाम ४८वें स्थआन पर है। देश कीइन तीन महिलाओं को अन्तरराष्टीय स्तर पर मिली मान्यता से पहले भारत मेंजन्मी और अन्तरराष्टीय साफ्त डिन्क कम्पनी पेप्सीको की प्रमुख इन्द्रानूयी को इसी पत्रिका ने अमेरिका में सबसे शक्तिशाली व्यवसायी महिला बतायाथा।
प्रेषक
निशान्त
प्रेषक
निशान्त
फैसला मुम्बई बम काण्ड का
फैसला मुम्बई बम काण्ड का
आखिरकार १९९३ के मुम्बई बम विस्फोट मामले में प्रतीक्षा की लगभग सभी घडियां समाप्त हो गई। यह मामला कई मायनों में ऐतिहासिक है। सबसे पहले तो यह कि विश्व में अपनी तरह की इस पहली व्यापक आतंकी वारदात की सुनवाई ने एक रिकार्ड बनाया। इसके अतिरिक्त बम विस्फोट की साजिश के सरगना के हाथ न आने के बाद भी कई अभियुक्त को फांसी की सजा सुनाई गई। इस मामले मे फिल्म अभिनेता संजय दत्त को छह साल की सजा सुनाया जाना भी अपने आप में मिसाल है। यह सम्भवतः पहली बार है जब किसी इतनी जानी-मानी और लोकप्रिय हस्ती को सलाखों के पीछे जाना पडा - और वह भी तब जब उसे आतंकी नहीं माना गया। मुम्बई बम काण्ड फैसले अनेक सवाल खडे कर रहे हैं? पहला सवाल यह है कि क्या आतंकवाद को अपने बलबूते कुचलने का दावा करने वाले देश में देशद्रोह के अभियुक्त को सजा इतना लम्बा समय लगना चाहिए ? निश्चित रूप से तमाम जटिलताओं और कानूनी बाध्यताओं के बावजूद इस मामले में सजा सुनाने में जरूरत से ज्यादा देर हुई। आतंकी गतिविधियों में लिप्त लोगों को सजा सुनाने में इतनी देरी करके हम आतंकवाद को से लड नहीं सकते । विडम्बना यह है कि आतंकवाद से जुडे अन्य मामलों में भी आतंकियों को सजा सुनाने में बहुत देर हो रही है।इसका ताजा उदाहरण है १९९५ के बेअंत सिंह हत्याकाण्ड में१२ वर्ष बाद अभियुक्त को सजा सुनाया जाना। इन दोनों मामलों में सजा सुनाई गई उसे अन्तिम फैसला कहा जा सकता है। इन फैसलों के खिलाफ ऊंची अदालतों का दरवाजा खटखटाया जाना स्वाभाविक है। कोई आश्चर्य नहीं कि इन दोनों मामलों के अभियुक्तों को अन्तिम रूप दे सजा सुनाने में अभी देरी हो।
निश्चित रूप से यह ठीक नहीं कि देश को दहला देने वाले मामलों का निबटारा इतनी देर से हो कि उनका प्रभाव ही समाप्त हो जाय। आखिर कौन नहीं जनता कि न्याय में देरी एक प्रकार से अन्याय ही है। जब आतंकवाद से जुडे मामलों का निपटारा होने में आवश्यकता से अधिक विलम्ब होता है तो समूचे राष्ट्र के साथ अन्याय होता है। मुम्बई बम विस्फोट मामले में जहाँ तक संजय दत्त को छह वर्ष की सजा सुनाने की बात है,सजा की घोषणा होते ही उनके प्रति और अधिक सहानुभूति उमडना सहज ही है। अगले कुछ दिनों में संजय दत्त के प्रति और अधिक सहानुभूति देखने को मिल सकती है। इस सहानुभूति का एक अपना महत्व है।लेकिन यह ध्यान रहे कि कानून न तो भावनाओं की परवाह करता है और न ही व्यक्ति विशेष की लोकप्रियता अथवा उसकी सामाजिक पृष्टभूमि को देखता है। संजय दत्त को सजा सुनाया जाना इस बात का प्रमाण है कि कानून की नजर मे सभी बराबर हैं, लेकिन क्या कारण है कि हमारे देश में ऐसे प्रमाण दुर्लभ है? सच तो यह है कि ऐसे मामले उगलियों पर गिने जाने लायक नहीं है। सारा राष्ट्र इस बात को अच्छी तरह जानता-समझता है कि पैसा और प्रभाव रखने वाले लोग अंततः किसी न किसी तरह बच ही निकलते हैं। स्पष्ट है कि संजय दत्त का उदाहरण रखकर ऐसा दावा नहीं किया जा सकता कि कानून की निगाह में सभी बराबर हैं और वह किसी के प्रति कोई भेदभाव नही करता।
प्रेषक
निशान्त
आखिरकार १९९३ के मुम्बई बम विस्फोट मामले में प्रतीक्षा की लगभग सभी घडियां समाप्त हो गई। यह मामला कई मायनों में ऐतिहासिक है। सबसे पहले तो यह कि विश्व में अपनी तरह की इस पहली व्यापक आतंकी वारदात की सुनवाई ने एक रिकार्ड बनाया। इसके अतिरिक्त बम विस्फोट की साजिश के सरगना के हाथ न आने के बाद भी कई अभियुक्त को फांसी की सजा सुनाई गई। इस मामले मे फिल्म अभिनेता संजय दत्त को छह साल की सजा सुनाया जाना भी अपने आप में मिसाल है। यह सम्भवतः पहली बार है जब किसी इतनी जानी-मानी और लोकप्रिय हस्ती को सलाखों के पीछे जाना पडा - और वह भी तब जब उसे आतंकी नहीं माना गया। मुम्बई बम काण्ड फैसले अनेक सवाल खडे कर रहे हैं? पहला सवाल यह है कि क्या आतंकवाद को अपने बलबूते कुचलने का दावा करने वाले देश में देशद्रोह के अभियुक्त को सजा इतना लम्बा समय लगना चाहिए ? निश्चित रूप से तमाम जटिलताओं और कानूनी बाध्यताओं के बावजूद इस मामले में सजा सुनाने में जरूरत से ज्यादा देर हुई। आतंकी गतिविधियों में लिप्त लोगों को सजा सुनाने में इतनी देरी करके हम आतंकवाद को से लड नहीं सकते । विडम्बना यह है कि आतंकवाद से जुडे अन्य मामलों में भी आतंकियों को सजा सुनाने में बहुत देर हो रही है।इसका ताजा उदाहरण है १९९५ के बेअंत सिंह हत्याकाण्ड में१२ वर्ष बाद अभियुक्त को सजा सुनाया जाना। इन दोनों मामलों में सजा सुनाई गई उसे अन्तिम फैसला कहा जा सकता है। इन फैसलों के खिलाफ ऊंची अदालतों का दरवाजा खटखटाया जाना स्वाभाविक है। कोई आश्चर्य नहीं कि इन दोनों मामलों के अभियुक्तों को अन्तिम रूप दे सजा सुनाने में अभी देरी हो।
निश्चित रूप से यह ठीक नहीं कि देश को दहला देने वाले मामलों का निबटारा इतनी देर से हो कि उनका प्रभाव ही समाप्त हो जाय। आखिर कौन नहीं जनता कि न्याय में देरी एक प्रकार से अन्याय ही है। जब आतंकवाद से जुडे मामलों का निपटारा होने में आवश्यकता से अधिक विलम्ब होता है तो समूचे राष्ट्र के साथ अन्याय होता है। मुम्बई बम विस्फोट मामले में जहाँ तक संजय दत्त को छह वर्ष की सजा सुनाने की बात है,सजा की घोषणा होते ही उनके प्रति और अधिक सहानुभूति उमडना सहज ही है। अगले कुछ दिनों में संजय दत्त के प्रति और अधिक सहानुभूति देखने को मिल सकती है। इस सहानुभूति का एक अपना महत्व है।लेकिन यह ध्यान रहे कि कानून न तो भावनाओं की परवाह करता है और न ही व्यक्ति विशेष की लोकप्रियता अथवा उसकी सामाजिक पृष्टभूमि को देखता है। संजय दत्त को सजा सुनाया जाना इस बात का प्रमाण है कि कानून की नजर मे सभी बराबर हैं, लेकिन क्या कारण है कि हमारे देश में ऐसे प्रमाण दुर्लभ है? सच तो यह है कि ऐसे मामले उगलियों पर गिने जाने लायक नहीं है। सारा राष्ट्र इस बात को अच्छी तरह जानता-समझता है कि पैसा और प्रभाव रखने वाले लोग अंततः किसी न किसी तरह बच ही निकलते हैं। स्पष्ट है कि संजय दत्त का उदाहरण रखकर ऐसा दावा नहीं किया जा सकता कि कानून की निगाह में सभी बराबर हैं और वह किसी के प्रति कोई भेदभाव नही करता।
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